जहाँ तहाँ हो रहे ब्लॉगर सम्मेलन की खबरें पढ़ कर हम भी पूरी तरह बगुलाए हुए थे कि कब मौका मिले और चोंच मारें, तभी श्री अरविंद मिश्र जी का फोन घनघनाया, “हम लोग भी कुछ करेंगे ? कुछ नहीं तो बनारस में जितने ब्लॉगर हैं उन्हीं को जुटाकर एक मीटिंग कर लेते हैं ! सांस्कृतिक संकुल में शिल्प मेला लगा है इसी बहाने मेला भी घूम लेंगे और एक-दूसरे से परिचय भी हो जाएगा।“ अंधा क्या चाहे दो आँखें ! मैने कहा, “हाँ, हाँ, क्यों नहीं ! एक पंडित जी को मैं भी जानता हूँ जो पंहुचे हुए कवि और दो-चार पोस्ट पर अटके हुए नए-नए ब्लॉगर हैं। मेरे जवाब से उत्साहित होकर अरविंद जी बड़े प्रसन्न हुए, एक-दो को तो मैं भी जानता हूँ, आप बस समय तय कीजिए सारा इंतजाम हमारा रहेगा।
मेरी तो बाछें खिल गईं। खुशी का ठिकाना न रहा। बहुत दिनो से अरविंद जी की मेहमान नवाजी के किस्से उनके ब्लॉग पर पढ़-पढ़ कर अपनी जीभ लपालपा रही थी। आज उन्होने स्वयम् मौका दे ही दिया। मैने तुरंत अपने कोटे के एकमात्र ब्लॉगर पंडित उमा शंकर चतुर्वेदी ‘कंचन’ जी को फोन मिलाया, “कवि जी ! बनारस में ब्लॉगर सम्मेलन है.! आपको आना है। कवि जी कुछ उल्टा सुन बैठे, “क्या कहा ? पागल सम्मेलन ! ई कब से होने लगा बनारस में ? मूर्ख, महामूर्ख सम्मेलन तो होता है, 1अप्रैल को ! जिसका मैं स्थाई सदस्य हूँ । जाड़े में यह पागल सम्मेलन तो पहली बार सुना ! बनारस में बहुत हैं, बड़ी भीड़ हो जाएगी…! मुझे नहीं जाना।“ मैने सरपीट लिया, अरे नहीं ‘कंचन’ जी पागल नहीं, ब्लॉगर सम्मेलन ! इनकी संख्या बस अंगुली में हैं। अच्छा रहने दीजिए मैं आपको मिलकर समझाता हूँ। शाम को जब मैं उनसे मिला तो पूरी बात जानकर उनकी भी प्रसन्नता का ठिकाना न रहा। कहने लगे, “लेकिन गुरू ई नाम ठीक नहीं लग रहा है..ब्लॉगर ! विदेशी संस्कृति झलक रही है। मैने कहा, “तकनीक आयातित है मगर कलाकार सभी देसी हैं। अपने रंग में ढ़ालना तो हमारा काम है।“ कंचन जी बोले, “चलिए, ठीक है।“
सौभाग्य से ब्लागिंग के दरमियान श्री एम. वर्मा जी की भी बनारस आने की खबर हाथ लग गई। वे अपने भतीजे की शादी के सिलसिले में बनारस आ रहे थे। उनसे संपर्क साधा तो वे भी बड़े प्रसन्न हुए। अपना कोटा पूरा करके जब मैंने अरविंद जी से फोन मिलाया तो वर्मा जी के भी आने की खबर ने उन्हें और भी उत्साहित कर दिया। चार दिसंबर की तिथि तय की गई। स्थान सांस्कृतिक संकुल से बदल कर अरविंद जी का घर हो गया। निर्धारित समय से आधा घंटा पहले ही मैं जाकर ‘नाटी इमली’ चौराहे पर खड़ा, कभी विश्व प्रसिद्ध ‘भरत मिलाप के मैदान’ को देखता तो कभी वर्मा जी और कंचन जी को फोनियाता। मैने सोचा इस मैदान में राम नगर की प्रसिद्ध रामलीला के अवसर पर जब राम-भरत का मिलाप होता है तो कितनी भीड़ होती है ! यहाँ दो ब्लॉगर पहली बार मिल रहे हैं तो सांड़ भी चैन से खड़ा नहीं होने देता ! कभी इधर तो कभी उधर सींग ऊठाए चला आता है।
अधिक इंतजार नहीं करना पड़ा। स्वतः उत्साहित कंचन जी और वर्मा जी के साथ जब हम अरविंद जी के घर पहुँचे तो वहाँ नई कविता के सशक्त हस्ताक्षर व ब्लॉग जगत के श्रेष्ठ कवियों में से एक ‘आर्जव’, ख्याति प्राप्त कलाकार उत्तमा दीक्षित जी के साथ अरविंद जी ने जिस गर्मजोशी के साथ स्वागत किया इसको लिखने के लिए मेरी कलम कम पड़ रही है। सभी से तो मैं उनके ब्लॉग को पढ कर भली भांति परिचित था। लगा ही नहीं कि पहली पार मिल रहा हूँ लेकिन उत्तमा जी को लेकर मेरी स्थिति हास्यासपद हो गई। मैने उन्हें विद्यार्थी समझा मगर जब अरविंद जी ने परिचय कराया कि आप काशी हिंदू विश्वविद्यालय में वरिष्ठ प्रवक्ता हैं तो मेरा माथा ही घूम गया। इतनी सरलता, इतनी विनम्रता से वे मिलीं कि लगा कि ये एक अच्छी कलाकार हैं मगर आज जब उनका ब्लॉग देखा तो महसूस हुआ कि मैं मूरख कितने महान कलाकार के रूबरू बैठकर चला आया और उन्होने किंचित मात्र भी अपनी श्रेष्ठता का एहसास नहीं होने दिया।
अरविंद जी की मेहमान नवाजी की चर्चा न की जाय तो सारा लिखना बेकार। अपनी गिद्ध दृष्टि भी उधर ही अटकी हुई थी। एक से बढ़कर एक गर्मागर्म आईटम..एक खतम नहीं की दूजा शुरू। वे कहते, “एक और ?” मैं कहता, “आप चिंता ना करें, स्थान और लेने का ज्ञान मुझे बखूबी हो गया है !” वर्मा जी, आर्जव जी फोटो खींचने में व्यस्त, हम उधर माल उड़ाने में मस्त। अरविंद जी से मिलकर किसी को भी यह सहज आश्चर्य हो सकता है कि इतनी विनम्रता, प्रसन्नता और सहजता से मिलने वाले व्यक्ति की कलम की धार इतनी कठोर कैसे हो सकती है !
पोस्ट तो लिख दी लगता है। अब सबसे बड़ी समस्या यह है कि फोटू कहाँ से उड़ाई जाय ? अपन तो भैया प्लेट खींचने में जुटे थे फोटुवा तो आर्जव और वर्मा जी खींच रहे थे । देखें उन्हीं के ब्लॉग से उड़ाने का प्रयास करते हैं….
वाह, देवेन्द्र भैया एक फ़ोन हमें भी घनघना देते।
ReplyDeleteसभी को स्नेहमिलन पर हार्दिक शुभकामनाएं ।
बहुत सही शब्द - पागल सम्मेलन! :-)
ReplyDeleteवाह!, काश मेरा फोन भी ऐसा ही होता. धन्यवाद.
ReplyDeleteब्लोगिंग से एक फायदा तो यह हो रहा है कि कॉलिज के दिनों के बाद भी लोगों को तफ़री करने का अवसर मिल रहा है । अभी ज़बलपुर में मौज मस्ती हो रही थी । अब आपने भी मौका ताड़ लिया । एक दो दिन में हम भी अरविन्द जी को पकड़ते हैं ।
ReplyDeleteपाउ लागूं पंडित उमा शंकर चतुर्वेदी ‘कंचन’ जी के, बिल्कुल सही नमकरण किया है. पंडितजी तक हमारा प्रणाम पहुंचाने का कष्ट करें बंधूवर, आज तो चोला प्रसन्न हो गया.
ReplyDeleteरामराम.
देवेन्द्र भाई ,
ReplyDeleteफोटो किसी ने भी खेंची हो वज़न के हिसाब से संतुलन का ख्याल नहीं रखा :)
और फिर ...सभी मूंछें एक तरफ :)
[ आप सब को एक साथ देख कर मन प्रसन्न हुआ काश हम भी वहां होते और अरविन्द जी के आतिथ्य का लाभ ले पाते ]
मूछें...!
ReplyDeleteहा..हा..हा..
अली जी ने ध्यान से चित्र देखा है लगता है .. इस तथ्य से तो हम नावाकिफ़ ही थे.
ReplyDelete“क्या कहा ? पागल सम्मेलन ! ई कब से होने लगा बनारस में ? मूर्ख, महामूर्ख सम्मेलन तो होता है, 1अप्रैल को ! जिसका मैं स्थाई सदस्य हूँ । जाड़े में यह पागल सम्मेलन तो पहली बार सुना ! बनारस में बहुत हैं, बड़ी भीड़ हो जाएगी…!"
चतुर्वेदी जी ने इतना सटीक कैसे समझ लिया .. समझ में नहीं आ रहा है. और फिर समझ लिया तो खुद शामिल क्यों हुए मेरी तो समझ से परे है.
सुन्दर रिपोर्ट .. खुशनसीब हूँ इसका हिस्सा बना
अच्छा लगा यह पढकर, जानकर।
ReplyDelete(आचार संहिता बनी की नहीं यहां ...?)
फोटो खिंचवा लेते पर व्यंजन दिखा कर काहे जुलुम कर रहे हैं।
ReplyDeleteचलो भाई आपको फ़ोटो भी मिल गया.
ReplyDeleteबनारस में ब्लारस।
ReplyDeleteबहुत अच्छी रपट
ReplyDelete@M Varma जी,
ReplyDeleteकवि जी ने फोन में उल्टा सुन लिया था...इसे तो आपने कोड किया ही नहीं ! निर्मल हास्य सृजन के उद्देश्य से लिखी गई पंक्तियाँ हैं..अली सा भी उसी में चार चाँद लगाने का प्रयास कर रहे हैं।..आपके आगमन से ही सब संभव हो सका वरना हम सब एक ही शहर में अजनबी थे।
देवेन्द्र जी
ReplyDeleteमेल मिलाप होता रहे ....तो इससे बढ़िया बात और क्या हो सकती है ....अच्छा लगा जानकार
...शुक्रिया
@राजेश जी,
ReplyDelete..बनारस में बड़ा रस है, ब्लारस भी जुड़ गया। ..वाह!
पण्डितअरविंद मिश्र जी के दर्शन की इच्छा तो हमारे भी मन में हैं..इनके आतिथ्य के चर्चे बहुत सुने हैं..मगर अच्छा लगा यह रिपोर्ट पढकर!!
ReplyDeletehttp://www.phool-kante.blogspot.com/
ReplyDeleteसारा वृत्तांत पढकर मज़ा आ गया। ताऊ के साथ-साथ हमारा भी प्रणाम पहुँचे, पण्डित जी की सेवा में। अगला सम्मेलन करायें तो हमें भी इत्तला कर दें वर्ना हमें बरेली में एक सम्मेलन कराना पडेगा आपको टक्कर देने के लिये। हमेशा सुनते आये हैं, आज देख भी लिया कि बनारस में वाकई रस है।
ReplyDeletenice !
ReplyDeleteसुन्दर रिपोर्ट.....अच्छा लगा जानकार
ReplyDelete...शुक्रिया
सभी को स्नेहमिलन पर हार्दिक शुभकामनाएं ।
ReplyDelete... aanandam-aanandam ... gopaalam-gopaalam ... sabhee ko haardik badhaai !!!
ReplyDeleteबहुत अच्छा लगा पढ़कर और जानकर ..... यह क्रम चलता रहें ..... आभार
ReplyDeleteअरे वाह जी, यह तो खूब रही...वैसे खाया क्या क्या...:)
ReplyDeleteबेगल होने से पागल होना अच्छा है
ReplyDeleteजल्द ही एक पागल सेमिनार करवायेंगे
गल को कैसे पाया जाता है
गल क्या होता है
पागल अच्छा होता है
पागल होना आसान नहीं
पर विचार मंगवाये जायेंगे
जो बिना मंगवाये भेजेंगे
उन्हें सम्मानित किया जाएगा
वैसे अच्छी अलख जल चुकी है
हिन्दी ब्लॉगर सम्मेलन की ज्वाला धधक चुकी है
एम वर्मा जी दिल्ली की ओर से पहुंचे हुए हैं
डॉ. दराल जी ने सही कह रहे हैं
मैं आपके साथ हूं
आप जाल तो फैलायें
सतीश जी, खुशदीप जी, अजय जी
को भी बुला लें
मिलते हैं
मिलने से ही
मन के फूल खिलते हैं
फल मिलते हैं
एक फल गोवा में भी मिला था
शनिवार को गोवा में ब्लॉगर मिलन और रविवार को रोहतक में इंटरनेशनल ब्लॉगर सम्मेलन
रोचक! अच्छा लगा पढकर....."पागल सम्मेलन"... हा हा हा :)
ReplyDeleteभाई आपकी रिपोर्टिंग और उड़ाई हुयी फोटो दोनों ही लाजवाब हैं ..
ReplyDeletebahut badhiya...kaafi rochak prastuti.
ReplyDeleteek baar hamri ikshha bhi hai....koi aise sammelan se juden...achchha laga ...vistrit report!
ReplyDeleteअच्छा लगा यह पढकर.........
ReplyDeleteबहुत ही सुंदर प्रस्तुति। अच्छा लगा- और क्या कहूं----
ReplyDeleteblagar smmelan men smmilit karane ke liye bahut bahut dhnyawad.logon ko essey prakar jodate rahiye.
ReplyDeleteरोचक! अच्छा लगा पढकर....
ReplyDeleteहमें तो न्योता ही नहीं मिला बनारस आने का ........
ReplyDelete:-(
बड़े दिन से आपका ब्लॉग सामने ही नहीं पड़ा सो आ नहीं पाया :-(
ReplyDeleteइंसान गलती कर सकते हैं मगर आत्माएं कैसे भूलने लगीं ? कम से कम अपना अहसास तो दिला दिया करो बुड्ढे को..
शुभकामनायें !
एक शानदार अनुभव।
ReplyDeleteआप सभी के साथ वे पल यादगार हो गए -अब ब्लॉगर तो आधे पागल तो हो नहीं सकते ...!
ReplyDeleteबधाई जी हमे भी बुला लेते
ReplyDeleteBaichain Aatmaon ka Milan....aisa adbhut najara kabhi-kabhaar hi dekhney ko milta hai....ha...ha.ha....
ReplyDeleteआप लिखते बहुत रोचक हैं ....किस्सागोई शायद इसी को कहते हैं !
ReplyDeleteभाषा को एकदम कैजुअली ट्रीट करते हैं इससे रोचकता और संप्रेषणीयता दोनों बढ़ जाती है !
बनारस जाना ज़िंदा-जावेद होने जैसा है , जवान होने जैसा ! सुन्दर लिखा है ! अली जी ने जो कमेन्ट में लिखा वह मैं लिखता पर .......... ऊ अग्गी मार गए ! दुर्भाग्यशाली हूँ कि इधर अपात्रों के ब्लॉग पर ज्यादा समय फूंक दिया , इसलिए आने में विलम्ब हुआ , क्षमा चाहूँगा !
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