6.12.10

ब्लॉगर सम्मेलन

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                          जहाँ तहाँ हो रहे ब्लॉगर सम्मेलन की खबरें पढ़ कर हम भी पूरी तरह बगुलाए हुए थे कि कब मौका मिले और चोंच मारें, तभी श्री अरविंद मिश्र जी का फोन घनघनाया, “हम लोग भी कुछ करेंगे ? कुछ नहीं तो बनारस में जितने ब्लॉगर हैं उन्हीं को जुटाकर एक मीटिंग कर लेते हैं ! सांस्कृतिक संकुल में शिल्प मेला लगा है इसी बहाने मेला भी घूम लेंगे और एक-दूसरे से परिचय भी हो जाएगा।“ अंधा क्या चाहे दो आँखें ! मैने कहा, “हाँ, हाँ, क्यों नहीं ! एक पंडित जी को मैं भी जानता हूँ जो पंहुचे हुए कवि और दो-चार पोस्ट पर अटके हुए नए-नए ब्लॉगर हैं। मेरे जवाब से उत्साहित होकर अरविंद जी बड़े प्रसन्न हुए, एक-दो को तो मैं भी जानता हूँ, आप बस समय तय कीजिए सारा इंतजाम हमारा रहेगा।

                         मेरी तो बाछें खिल गईं। खुशी का ठिकाना न रहा। बहुत दिनो से अरविंद जी की मेहमान नवाजी के किस्से उनके ब्लॉग पर पढ़-पढ़ कर अपनी जीभ लपालपा रही थी। आज उन्होने स्वयम् मौका दे ही दिया। मैने तुरंत अपने कोटे के एकमात्र ब्लॉगर पंडित उमा शंकर चतुर्वेदी ‘कंचन’ जी को फोन मिलाया, “कवि जी ! बनारस में ब्लॉगर सम्मेलन है.! आपको आना है। कवि जी कुछ उल्टा सुन बैठे, “क्या कहा ? पागल सम्मेलन ! ई कब से होने लगा बनारस में ? मूर्ख, महामूर्ख सम्मेलन तो होता है, 1अप्रैल को ! जिसका मैं स्थाई सदस्य हूँ । जाड़े में यह पागल सम्मेलन तो पहली बार सुना ! बनारस में बहुत हैं, बड़ी भीड़ हो जाएगी…! मुझे नहीं जाना।“ मैने सरपीट लिया, अरे नहीं ‘कंचन’ जी पागल नहीं, ब्लॉगर सम्मेलन ! इनकी संख्या बस अंगुली में हैं। अच्छा रहने दीजिए मैं आपको मिलकर समझाता हूँ। शाम को जब मैं उनसे मिला तो पूरी बात जानकर उनकी भी प्रसन्नता का ठिकाना न रहा। कहने लगे, “लेकिन गुरू ई नाम ठीक नहीं लग रहा है..ब्लॉगर ! विदेशी संस्कृति झलक रही है। मैने कहा, “तकनीक आयातित है मगर कलाकार सभी देसी हैं। अपने रंग में ढ़ालना तो हमारा काम है।“ कंचन जी बोले, “चलिए, ठीक है।“

                      सौभाग्य से ब्लागिंग के दरमियान श्री एम. वर्मा जी की भी बनारस आने की खबर  हाथ लग गई। वे अपने भतीजे की शादी के सिलसिले में बनारस आ रहे थे। उनसे संपर्क साधा तो वे भी बड़े प्रसन्न हुए। अपना कोटा पूरा करके जब मैंने अरविंद जी से फोन मिलाया तो वर्मा जी के भी आने की खबर ने उन्हें और भी उत्साहित कर दिया। चार दिसंबर की तिथि तय की गई। स्थान सांस्कृतिक संकुल से बदल कर अरविंद जी का घर हो गया। निर्धारित समय से आधा घंटा पहले ही मैं जाकर ‘नाटी इमली’ चौराहे पर खड़ा, कभी विश्व प्रसिद्ध ‘भरत मिलाप के मैदान’ को देखता तो कभी वर्मा जी और कंचन जी को फोनियाता। मैने सोचा इस मैदान में राम नगर की प्रसिद्ध रामलीला के अवसर पर जब राम-भरत का मिलाप होता है तो कितनी भीड़ होती है ! यहाँ दो ब्लॉगर पहली बार मिल रहे हैं तो सांड़ भी चैन से खड़ा नहीं होने देता ! कभी इधर तो कभी उधर सींग ऊठाए चला आता है।

                       अधिक इंतजार नहीं करना पड़ा। स्वतः उत्साहित कंचन जी और वर्मा जी के साथ जब हम अरविंद जी के घर पहुँचे तो वहाँ नई कविता के सशक्त हस्ताक्षर व ब्लॉग जगत के श्रेष्ठ कवियों में से एक ‘आर्जव’, ख्याति प्राप्त कलाकार उत्तमा दीक्षित जी के साथ अरविंद जी ने जिस गर्मजोशी के साथ स्वागत किया इसको लिखने के लिए मेरी कलम कम पड़ रही है। सभी से तो मैं उनके ब्लॉग को पढ कर भली भांति परिचित था। लगा ही नहीं कि पहली पार मिल रहा हूँ लेकिन उत्तमा जी को लेकर मेरी स्थिति हास्यासपद हो गई। मैने उन्हें विद्यार्थी समझा मगर जब अरविंद जी ने परिचय कराया कि आप काशी हिंदू विश्वविद्यालय में वरिष्ठ प्रवक्ता हैं तो मेरा माथा ही घूम गया। इतनी सरलता, इतनी विनम्रता से वे मिलीं कि लगा कि ये एक अच्छी कलाकार हैं मगर आज जब उनका ब्लॉग देखा तो महसूस हुआ कि मैं मूरख कितने महान कलाकार के रूबरू बैठकर चला आया और उन्होने किंचित मात्र भी अपनी श्रेष्ठता का एहसास नहीं होने दिया।

                           अरविंद जी की मेहमान नवाजी की चर्चा न की जाय तो सारा लिखना बेकार। अपनी गिद्ध दृष्टि भी उधर ही अटकी हुई थी। एक से बढ़कर एक गर्मागर्म आईटम..एक खतम नहीं की दूजा शुरू। वे कहते, “एक और ?” मैं कहता, “आप चिंता ना करें, स्थान और लेने का ज्ञान मुझे बखूबी हो गया है !” वर्मा जी,  आर्जव जी फोटो खींचने में व्यस्त, हम उधर माल उड़ाने में मस्त। अरविंद जी से मिलकर किसी को भी यह सहज आश्चर्य हो सकता है कि इतनी विनम्रता, प्रसन्नता और सहजता से मिलने वाले व्यक्ति की कलम की धार इतनी कठोर कैसे हो सकती है !

                           पोस्ट तो लिख दी लगता है। अब सबसे बड़ी समस्या यह है कि फोटू कहाँ से उड़ाई जाय ? अपन तो भैया प्लेट खींचने में जुटे थे फोटुवा तो आर्जव और वर्मा जी खींच रहे थे । देखें उन्हीं के ब्लॉग से उड़ाने का प्रयास करते हैं….

42 comments:

  1. वाह, देवेन्द्र भैया एक फ़ोन हमें भी घनघना देते।
    सभी को स्नेहमिलन पर हार्दिक शुभकामनाएं ।

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  2. बहुत सही शब्द - पागल सम्मेलन! :-)

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  3. वाह!, काश मेरा फोन भी ऐसा ही होता. धन्यवाद.

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  4. ब्लोगिंग से एक फायदा तो यह हो रहा है कि कॉलिज के दिनों के बाद भी लोगों को तफ़री करने का अवसर मिल रहा है । अभी ज़बलपुर में मौज मस्ती हो रही थी । अब आपने भी मौका ताड़ लिया । एक दो दिन में हम भी अरविन्द जी को पकड़ते हैं ।

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  5. पाउ लागूं पंडित उमा शंकर चतुर्वेदी ‘कंचन’ जी के, बिल्कुल सही नमकरण किया है. पंडितजी तक हमारा प्रणाम पहुंचाने का कष्ट करें बंधूवर, आज तो चोला प्रसन्न हो गया.

    रामराम.

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  6. देवेन्द्र भाई ,
    फोटो किसी ने भी खेंची हो वज़न के हिसाब से संतुलन का ख्याल नहीं रखा :)
    और फिर ...सभी मूंछें एक तरफ :)

    [ आप सब को एक साथ देख कर मन प्रसन्न हुआ काश हम भी वहां होते और अरविन्द जी के आतिथ्य का लाभ ले पाते ]

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  7. अली जी ने ध्यान से चित्र देखा है लगता है .. इस तथ्य से तो हम नावाकिफ़ ही थे.
    “क्या कहा ? पागल सम्मेलन ! ई कब से होने लगा बनारस में ? मूर्ख, महामूर्ख सम्मेलन तो होता है, 1अप्रैल को ! जिसका मैं स्थाई सदस्य हूँ । जाड़े में यह पागल सम्मेलन तो पहली बार सुना ! बनारस में बहुत हैं, बड़ी भीड़ हो जाएगी…!"
    चतुर्वेदी जी ने इतना सटीक कैसे समझ लिया .. समझ में नहीं आ रहा है. और फिर समझ लिया तो खुद शामिल क्यों हुए मेरी तो समझ से परे है.

    सुन्दर रिपोर्ट .. खुशनसीब हूँ इसका हिस्सा बना

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  8. अच्छा लगा यह पढकर, जानकर।
    (आचार संहिता बनी की नहीं यहां ...?)

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  9. फोटो खिंचवा लेते पर व्यंजन दिखा कर काहे जुलुम कर रहे हैं।

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  10. चलो भाई आपको फ़ोटो भी मिल गया.

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  11. @M Varma जी,

    कवि जी ने फोन में उल्टा सुन लिया था...इसे तो आपने कोड किया ही नहीं ! निर्मल हास्य सृजन के उद्देश्य से लिखी गई पंक्तियाँ हैं..अली सा भी उसी में चार चाँद लगाने का प्रयास कर रहे हैं।..आपके आगमन से ही सब संभव हो सका वरना हम सब एक ही शहर में अजनबी थे।

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  12. देवेन्द्र जी
    मेल मिलाप होता रहे ....तो इससे बढ़िया बात और क्या हो सकती है ....अच्छा लगा जानकार
    ...शुक्रिया

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  13. @राजेश जी,
    ..बनारस में बड़ा रस है, ब्लारस भी जुड़ गया। ..वाह!

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  14. पण्डितअरविंद मिश्र जी के दर्शन की इच्छा तो हमारे भी मन में हैं..इनके आतिथ्य के चर्चे बहुत सुने हैं..मगर अच्छा लगा यह रिपोर्ट पढकर!!

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  15. http://www.phool-kante.blogspot.com/

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  16. सारा वृत्तांत पढकर मज़ा आ गया। ताऊ के साथ-साथ हमारा भी प्रणाम पहुँचे, पण्डित जी की सेवा में। अगला सम्मेलन करायें तो हमें भी इत्तला कर दें वर्ना हमें बरेली में एक सम्मेलन कराना पडेगा आपको टक्कर देने के लिये। हमेशा सुनते आये हैं, आज देख भी लिया कि बनारस में वाकई रस है।

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  17. सुन्दर रिपोर्ट.....अच्छा लगा जानकार
    ...शुक्रिया

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  18. सभी को स्नेहमिलन पर हार्दिक शुभकामनाएं ।

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  19. ... aanandam-aanandam ... gopaalam-gopaalam ... sabhee ko haardik badhaai !!!

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  20. बहुत अच्छा लगा पढ़कर और जानकर ..... यह क्रम चलता रहें ..... आभार

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  21. अरे वाह जी, यह तो खूब रही...वैसे खाया क्या क्या...:)

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  22. बेगल होने से पागल होना अच्‍छा है
    जल्‍द ही एक पागल सेमिनार करवायेंगे
    गल को कैसे पाया जाता है
    गल क्‍या होता है
    पागल अच्‍छा होता है
    पागल होना आसान नहीं
    पर विचार मंगवाये जायेंगे
    जो बिना मंगवाये भेजेंगे
    उन्‍हें सम्‍म‍ानित किया जाएगा

    वैसे अच्‍छी अलख जल चुकी है
    हिन्‍दी ब्‍लॉगर सम्‍मेलन की ज्‍वाला धधक चुकी है
    एम वर्मा जी दिल्‍ली की ओर से पहुंचे हुए हैं

    डॉ. दराल जी ने सही कह रहे हैं
    मैं आपके साथ हूं
    आप जाल तो फैलायें
    सतीश जी, खुशदीप जी, अजय जी
    को भी बुला लें

    मिलते हैं
    मिलने से ही
    मन के फूल खिलते हैं
    फल मिलते हैं

    एक फल गोवा में भी मिला था

    शनिवार को गोवा में ब्‍लॉगर मिलन और रविवार को रोहतक में इंटरनेशनल ब्‍लॉगर सम्‍मेलन

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  23. रोचक! अच्छा लगा पढकर....."पागल सम्मेलन"... हा हा हा :)

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  24. भाई आपकी रिपोर्टिंग और उड़ाई हुयी फोटो दोनों ही लाजवाब हैं ..

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  25. bahut badhiya...kaafi rochak prastuti.

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  26. ek baar hamri ikshha bhi hai....koi aise sammelan se juden...achchha laga ...vistrit report!

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  27. बहुत ही सुंदर प्रस्तुति। अच्छा लगा- और क्या कहूं----

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  28. blagar smmelan men smmilit karane ke liye bahut bahut dhnyawad.logon ko essey prakar jodate rahiye.

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  29. रोचक! अच्छा लगा पढकर....

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  30. हमें तो न्योता ही नहीं मिला बनारस आने का ........
    :-(

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  31. बड़े दिन से आपका ब्लॉग सामने ही नहीं पड़ा सो आ नहीं पाया :-(
    इंसान गलती कर सकते हैं मगर आत्माएं कैसे भूलने लगीं ? कम से कम अपना अहसास तो दिला दिया करो बुड्ढे को..
    शुभकामनायें !

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  32. एक शानदार अनुभव।

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  33. आप सभी के साथ वे पल यादगार हो गए -अब ब्लॉगर तो आधे पागल तो हो नहीं सकते ...!

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  34. बधाई जी हमे भी बुला लेते

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  35. Baichain Aatmaon ka Milan....aisa adbhut najara kabhi-kabhaar hi dekhney ko milta hai....ha...ha.ha....

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  36. आप लिखते बहुत रोचक हैं ....किस्सागोई शायद इसी को कहते हैं !
    भाषा को एकदम कैजुअली ट्रीट करते हैं इससे रोचकता और संप्रेषणीयता दोनों बढ़ जाती है !

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  37. बनारस जाना ज़िंदा-जावेद होने जैसा है , जवान होने जैसा ! सुन्दर लिखा है ! अली जी ने जो कमेन्ट में लिखा वह मैं लिखता पर .......... ऊ अग्गी मार गए ! दुर्भाग्यशाली हूँ कि इधर अपात्रों के ब्लॉग पर ज्यादा समय फूंक दिया , इसलिए आने में विलम्ब हुआ , क्षमा चाहूँगा !

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