19.1.11

पतंग

आवा राजा चला उड़ाई पतंग ।

एक कन्ना हम साधी
एक कन्ना तू साधा
पेंचा-पेंची लड़ी अकाश में
अब तs ठंडी गयल
धूप चौचक भयल
फुलवा खिलबे करी पलाश में

काहे के हौवा तू अपने से तंग । [आवा राजा चला...]

ढीला धीरे-धीरे
खींचा धीरे-धीरे
हम तs जानीला मंझा पुरान बा
पेंचा लड़बे करी
केहू कबले डरी
काल बिछुड़ी जे अबले जुड़ान बा

भक्काटा हो जाई जिनगी कs जंग । [आवा राजा चला...]

केहू सांझी कs डोर
केहू लागेला अजोर
कलुआ चँदा से मांगे छुड़ैया
सबके मनवाँ मा चोर
कुछो चले नाहीं जोर
गुरू बूझा तनि प्रेम कs अढ़ैया

संझा के बौराई काशी कs भंग। [आवा राजा चला...]

24 comments:

  1. बचपन की याद दिला दी जब गाँव में कुछ इसी तरह से हमलोग भी खेला करते थे . अच्छी रचना

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  2. वाह भइया वाह,गजब, आज त असली मज़ा आय गय इ कविता में.

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  3. जिया हो राजा देवेंदर पाँड़े!! कमाल के पेंच लगवले हऊआ!! एक दम ईर, बीर,फत्ते वाला मजा आए गईल!!

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  4. क्या बात है देवेंद्र जी
    मज़ा आ गया , ये ज़बान पढ़ कर बहुत अच्छा लगा ,बहुत दिनों बाद इस के दर्शन हुए


    काल बिछुड़ी जे अबले जुड़ान बा
    भक्काटा हो जाई जिनगी कs जंग । [आवा राजा चला...]
    वाह !

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  5. भईया वाह का बात बा हो, गजब लिखे है भईया जी , बधाई ।

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  6. बहुत ही सुंदर,बहुत ही देशज,एकदम चकाचक बनारसी कवित्व.....

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  7. मजा आय गयल ....."संझा के बौराई काशी कs भंग।".

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  8. पतंग उड़ाते समय यह गाना, माहौल इससे अच्छा हो ही नहीं सकता है।

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  9. ढीला धीरे-धीरे
    खींचा धीरे-धीरे
    .....हम तs जानीला मंझा पुरान बा
    पेंचा लड़बे करी
    केहू कबले डरी
    काल बिछुड़ी जे अबले जुड़ान बा...............
    बहुत ही सुंदर,
    बधाई ।

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  10. देवेन्द्र जी,

    ठेठ देशी इस्टाइल में यह पोस्ट.....मजा आ गईल.....बहुता बढ़िया.....जे बवस्था हुई जाये तो का बात है...कन्कौव्वा का मजा दुगुना हुई जाये.....

    बनारस की बोली.....बनारसी पान की तरह है ....और क्या कहूँ.....बढ़िया

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  11. kya baat hai sir...ek dum se bachpan ka drishya aankho ke samne aa gaya...:)

    bahut khub!!

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  12. एही के देर रहल, मजा आय गयल...
    बहुत दिना के बाद सुनली, 'छुड़ैया'

    आप मुझे वापस घर ले गए कुछ देर के लिए, अच्छा लगा ये पढना, आभार।

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  13. पेंचा लड़बे करी
    केहू कबले डरी
    काल बिछुड़ी जे अबले जुड़ान बा

    भक्काटा हो जाई जिनगी कs जंग

    बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति..

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  14. आपने पढते हुए मैंने खुद को कन्ना बांधते हुए महसूस किया :)

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  15. एक कन्ना हम साधी
    एक कन्ना तू साधा
    अनगिनत अर्थ लिए हुए हैं यह साधारण सी लगने वाली पंक्तियाँ । इस गीत को पढ़ते हुए इसकी भाषा की खनक सुनाई दे रही है ।

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  16. जिय राजा गुलजारगंज -काहों पाण्डे जी फगुनहट का शंखिया फूक दिहा काहो !

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  17. ढीला धीरे-धीरे
    खींचा धीरे-धीरे
    हम तs जानीला मंझा पुरान बा
    पेंचा लड़बे करी
    केहू कबले डरी
    काल बिछुड़ी जे अबले जुड़ान बा...


    वाह देवेन्द्र जी वाह ... क्या गज़ब की रचना है ... लोक गीत की याद आ गयी ... बहुत बढ़िया .....

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  18. खूबे पतंग उडवल राजा

    दिल के आज जुड्वल राजा

    जीव ब्रह्मके जोड़ देखवल।

    भक्काटे के छोड़ दिखवल॥

    इहे सत्य ह सब जानेला ।

    माया में मन कब मानेला ॥

    मंझा के चमकाव राजा ।

    तब्बे बाजी यश के बाजा ॥

    बाक़ी -

    घाल मेल तू कइले बाट।

    कवन राह तू धइले बाट ॥

    भोजपुरी में भिडल काशिका ।

    बचा के रख्खा सजग नासिका ॥

    बाक़ी भाव अनूठा लागल ।

    कविताई कई दिहलस पागल ॥

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  19. कंचन जी..

    वाह! आखिर तौआ गइला न !मजा आ गयल । लेकिन एक बात बतावा..

    आपस में तालमेल न होई त चली का ?
    काशिका भोजपुरी से न सटी त चली का ?
    काशिका भोजपुरी कs एक विधा हौ
    ऐहसे एकर कौनो मान घटी का ?

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  20. भाषा प्यारी है भाई.

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  21. ye kun si bhaashaa hai? pooree samajh nahee aayee . shubhakaamanaayen.

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