तनहाई नहीं रहती
जब कोई नहीं होता
सुबह-सबेरे
चहचहाते पंछी
(थोड़ा सा दाना फेंको, पानी का कटोरा भर दो, मस्त हो गीत गाते हैं।)
दिन भर
काफिला बना कर दौड़ते रहने वाली श्रमजीवी चीटियाँ
(चुटकी भर आंटे से नहला दो, कैसे भूत जैसे दिखते हैं ! )
गंदगी से घबड़ाकर हमेशा मुंह धोती रहने वाली
सफाई पसंद मक्खियाँ
किचन में उछलते रहने वाले चूहे
(जिन्हें पकड़कर पड़ोसी के दरवाजे पर चुपके से छोड़ने में कितना मजा आता था!)
शाम होते ही
ट्यूब की रोशनी के साथ
घर में साधिकार घुस आने वाले पतंगे
पतंगों की तलाश में
छिपकली
जाल बुनती मकड़ियाँ
रात भर खून के प्यासे मच्छर
चौबीस घंटे सतर्क रहने वाला पालतू कुत्ता
हरदम मौके की तलाश में
दबे पांव कूदने की फिराक में
पड़ोस के बरामदे से झांकती काली बिल्ली
फुदक-फुदक कर
मेन गेट से घर में घुसकर
कुत्ते को चिढ़ाते रहने वाले शरारती मेंढक
हमेशा बात करते रहने वाले
पेड़-पौधे
और भी हैं बहुत से जीव
जीते हैं डरे-डरे
इंद्रियों के एहसास से परे
जो मुझे खुश रखते हैं
नहीं रहने देते
तनहाँ।
........................................
आदरणीय देवेन्द्र पाण्डेय जी
ReplyDeleteनमस्कार !
बहुत सुन्दर प्रस्तुति....शुभकामनाएं...आभार
वाह देवेन्द्र जी.. कमाल का लिखते है!!! आनंद आया पढ़कर... बहुत खूब!
ReplyDeleteपेड़-पौधे
ReplyDeleteऔर भी हैं बहुत से जीव
जीते हैं डरे-डरे
इंद्रियों के एहसास से परे
जो मुझे खुश रखते हैं
नहीं रहने देते
तनहाँ।
..............wakai kitna kuch saath rahta hai
और भी हैं बहुत से जीव
ReplyDeleteजीते हैं डरे-डरे
इंद्रियों के एहसास से परे
जो मुझे खुश रखते हैं
नहीं रहने देते
तनहाँ...
बहुत बार अकेले होने पर ध्यान से देखा है इस जीव-जंतुओं को और बिलकुल ऐसे ही कुछ एहसास हैं मेरे।
.
किसी के न रहने पर भी तनहाँ न रहने के कारणों ने तो अभिभूत कर दिया.
ReplyDeleteशायद यह एहसास ही तो तनहाई का शोर है
छोटे छोटे मित्र आपको कहा एकान्त देंगे?
ReplyDeleteमुबारक हो यह जहां।
ReplyDeleteये जीव जन्तु परिवार का एक हिस्सा बन कर साधिकार हमारे जीवन में प्रवेश कर जाते हैं।
ReplyDeleteबच्चो कि किलकारियां , फेरीवाले कि पुकार, गाड़ियों से निकली भोंपू कि आवाज़, इत्यादि... इन सबके के होते भी कभी-कभार तनहा ही है हम सब.
ReplyDeleteये जीव जन्तु न जाने कब हम्रारे जीवन का एक हिस्सा बन कर हमारी तनहाइयों को हर लेते हैं.. परन्तु जिन्हें हम रोज देखते हैं, और अचानक एक दिन वो दिखाई नहीं देते तो मन वैसे ही दुखी होता जैसे किसी अपने के लिए..
ReplyDeleteबहुत गहराई से विचार किया है आपने... उनके बारे में भी जो इंद्रियों के एहसास से परे हैं.. बहुत खूब
तन्हाई का एहसास स्वयं के मन का है वरना कौन कहाँ तन्हा है ? कभी कभी भीड़ में भी तन्हा होने का एहसास होता है
ReplyDeleteवाह.....वाह.....अदभुत ......शानदार.....कुछ हटकर .....प्रशंसनीय|
ReplyDeleteapane parivesh ko bahut sookshmata se avlokan karte hai aap....sabke sath hamesha chahalpahal e rahe...
ReplyDeleteपेड़-पौधे
ReplyDeleteऔर भी हैं बहुत से जीव
जीते हैं डरे-डरे
इंद्रियों के एहसास से परे
जो मुझे खुश रखते हैं
नहीं रहने देते
तनहाँ।
sach kaha kitna kuchh hai aas-paas ,bahut sundar rachna .
सीय राम माय सब जग जानी करहूँ प्रणाम जोरि जुग पानी
ReplyDeleteतत त्वम् असि ....
समग्र नैसर्गिक तंत्र के साथ तादात्म्य बनाकर रखने वाला व्यक्ति कहाँ अकेला रह सकता है भला ?
बहुत ही सुन्दर कविता
कीचन=किचन
आदरणीय अरविंद जी,
ReplyDelete..किचन ..यहाँ तो सुधार ही दिया।
..आभार आपका।
और भी हैं बहुत से जीव
ReplyDeleteजीते हैं डरे-डरे
इंद्रियों के एहसास से परे
जो मुझे खुश रखते हैं
नहीं रहने देते
तनहाँ...
आदमी तनहा कहाँ रहता है यादें कब पीछा छोडती है और जब इन्सान नहीं, कुछ और होता है |शानदार.....
जो बंदा जड़-चेतन में अभिव्यक्त हो रही अभिव्यक्ति को समझने के प्रयास हो वो कभी भी तनहा कैसे रह सकता है. पाण्डेय जी कुछ लोग तन्हाइयों से घबराते हैं और कुछ भीड़ भाड़ से परन्तु मुझे लगता है की आप दोनों ही स्थितियों में सहज रहते होंगे.
ReplyDelete@VICHAR SHOOVYA....JI,
ReplyDeleteमेरे लिए अकेले में सहज रहना आसान है भीड़-भाड़ में सहज होना भीड़ पर भी निर्भर करता है।
बेजुबान मित्रों की दोस्ती में अकेलापन कहाँ रह सकता है ?
ReplyDeleteदिन भर
ReplyDeleteकाफिला बना कर दौड़ते रहने वाली श्रमजीवी चीटियाँ...
संवेदनाओं से भरी बहुत सुन्दर कविता...
बधाई....
अगर किसी को ऐसा एकांत मिल जाए तो समाज में खुलेआम घूम रहे दोपाये जानवरों की इस दुनिया में एकांतप्रिय होना ही पसंद करेगा.. आपकी नज़र को दाद देते हैं हम!!
ReplyDeleteबहुत सुन्दर ।
ReplyDeleteकभी फूल को देखा ?
वह भी बड़ा प्यारा लगता है ।
तेज नज़र है आपकी ! शुभकामनायें !
ReplyDeleteIndriyon ke ehsaas se pare ki duniya bahuy hi kam logon ko naseeb hoti hai...aap dhanya hain aur aapki kavita roopi udgaar ati uttam.
ReplyDeleteये अहसास सब को कहां होता है ! साधुवाद !
ReplyDeleteबहुत सुन्दर वर्णन किया है आपने.जीव ही नहीं हवा भी चलती है तो मजा देता है.और टीन के छत वाले घर में रहो और ओले बरसें तो और भी मजा आता है.
ReplyDeleteअपने अंदर झांको,ध्यान करो तो और भी मजा आता है.
हमेशा बात करते रहने वाले
ReplyDeleteपेड़-पौधे
और भी हैं बहुत से जीव
जीते हैं डरे-डरे
इंद्रियों के एहसास से परे
जो मुझे खुश रखते हैं
नहीं रहने देते
तनहाँ।
वाह, क्या खूब लिखा है आपने। ये ही तो हमारे वास्तविक सहचर हैं जो हमें खूश रखते हैं।
बहुत अच्छी कविता।
मुझे भी इनका साथ प्यारा है ...बहुत अच्छी लगी कविता ..बहुत अच्छी......
ReplyDeleteसही! सुन्दर!
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