टूटा मौन
पसर गया सन्नाटा
वैसे ही जैसे
थमता है शोर
जब आते हैं गुरूजी
कक्षा में
लड़नी होगी
परिवर्तन की लड़ाई
सुधरेगी तभी
लोकशाही
कहीं लोग
खाने के लिए जी रहे हैं
कहीं लोग
जीने के लिए भी नहीं खा पा रहे हैं
कोई सोचता है
क्या-क्या खाऊँ
कोई सोचता है
क्या खाऊँ?
बढ़ा है भ्रष्टाचार
बढ़ी है मंहगाई
अभी तो है
अंगड़ाई
आगे और है
लड़ाई
दे कर
यक्ष प्रश्नों का बोझ
बता कर
समाधान का मार्ग
चले गये गुरूजी
कक्षा से
पसर गया सन्नाटा
छा गई खामोशी
कहीं यह
तूफान से पहले की तो नहीं ?
ऐसे मौके पर
गाते थे बापू
एक भजन
रघुपती राघव राजाराम
सबको सम्मति दे भगवान।
Nice post .
ReplyDeleteऔर देखिए एक भेंट आपके लिए
मेंढक शैली के हिंदी ब्लॉगर्स के चिंतन का स्टाइल
जब तक नेता मेंढक प्रवृत्ति नहीं त्यागेंगे तब तक वे सबके कल्याण की बात सोच ही नहीं सकते।
होहिहें वही जो राम रचि राखा .......
ReplyDeleteअहंकार के पुतलों को सन्मति
ReplyDeleteसे क्या लेना? जो हमारे लिये मरने को तैयार रहते हैं, हम उनके जीने की तैयारी में सहयोग कैसे करें, यह भी एक प्रश्न है।
जहां जड़ों में मट्ठे की ज़रूरत है वहां पौधे की ऊपरी छंटाई से क्या होगा !
ReplyDeleteसबको सम्मति दे भगवान।
ReplyDeleteसबको सम्मति दे भगवान...
ReplyDeleteसच को प्रतिबिम्बित करती बेहतरीन रचना...
गुरूजी पढ़ा और सिखा तो ठीक ही रहे हैं,भ्रस्टाचार के विरोध में जनचेतना अछ्छि तरह जागरूक हो रही है.ये येक अछ्छी बात है.गुरूजी को कैद कर लिया गया है और लोग सड़क पे उतर आये हैं.
ReplyDeleteमगर यदि जनलोक्पालबिल ही को पास कर दिया जाय और सरकार इसके तहत सारे देश में अनेक कर्मचारियों की भारती करे,जगह - जगह कार्यालय स्थापना करे और भ्रस्टाचार के खिलाफ कार्यवाही सुरु करे,तो जो भ्रस्टाचार इसके कर्मचारी करेंगे उसको कौन देखेगा ?प्रधानमन्त्री,न्यायाधीश,सांसद सब इसके नीचे रहेंगे.ये येक तानाशाही खुद ही स्थापित कर सकती है.
sarthak baat ...sanmati hi chahiye ab...
ReplyDeleteतूफ़ान आ चुका है ।
ReplyDeletesach kaha tufan ke pahle ki khamoshi hai..lekin ab swar sunayi dene lage hain tufan ke.
ReplyDeleteभगवान तो सम्मति देने को तैयार हैं पर ये लेने को कहां तैयार हैं?
ReplyDeleteरामराम.
@@कोई सोचता है
ReplyDeleteक्या-क्या खाऊँ
कोई सोचता है
क्या खाऊँ?..
सही बात भाई जी.आभार.
कहीं लोग
ReplyDeleteखाने के लिए जी रहे हैं
कहीं लोग
जीने के लिए भी नहीं खा पा रहे हैं
कोई सोचता है
क्या-क्या खाऊँ
कोई सोचता है
क्या खाऊँ?
यतार्थ को दर्शाता गहरा कटाक्ष.........बहुत ही सुन्दर |
सन्मति ..हाँ! भगवान् सबको दे .
ReplyDeletesarthak lekhan .
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