आज एक कविता और पोस्ट कर रहा हूँ। इस वादे के साथ कि अब कुछ दिन चैन से टिपटिपाउंगा। सुरिया जाता हूँ तो लिखने से खुद को रोक नहीं पाता। इसे पोस्ट करने की जल्दी इसलिए कि जब से श्री अरविंद मिश्र जी की बेहतरीन पोस्ट मोनल से मुलाकात पढ़ी तभी से यह कविता बाहर आने के लिए छटपटा रही थी। प्रस्तुत है कविता ...
कैद हैं परिंदे
ज़ख्म उतने गहरे
कैद हैं परिंदे
जिनके पर सुनहरे
चाहते पकड़ना
किरणों की डोर
उड़कर
सूरज की पालकी
के
ये कहार ठहरे
झील से भी गहरी
हैं कफ़स की
नज़रें
तैरते हैं इनमें
आदमी के चेहरे
वे भी सिखा रहे
हैं
गोपी कृष्ण कहना
जानते नहीं जो
प्रेम के ककहरे
आदमी से रहना
साथी जरा संभल
के
ये जिनसे प्यार
करते
उनपे इनके पहरे।
...................................
( चित्र भी वहीं से उड़ा लिया )
अपने वादे के पक्के ...
ReplyDeleteसूरज की पालकी के ये कहार ठहरे .....वाह कितना सुन्दर इन्द्रधनुषी बिम्ब .....
कविता बहुत मार्मिक और पूर्णता लिए है ..सोदेश्य भी ..
झील शब्द बदल कर अगर पाताल या कर दिया जाय तो ? ....
पक्षियों की कैद में होने का बड़ा ही मार्मिक चित्रण किया है।
ReplyDeleteपक्षियों की कैद का मार्मिक चित्रण.......
ReplyDeleteबहुत मार्मिक प्रस्तुति ||
ReplyDeleteमेरी बधाई स्वीकार करें ||
गागर में सागर भर दिया है,
ReplyDeleteपक्षियों के मौन को आवाज़ दिया है !
सार्थक एवं सुन्दर प्रस्तुति
ReplyDeleteबेहतर। अगर आप शब्दों के साथ थोड़ा और खेलें तो और बेहतर हो सकती है।
ReplyDeleteper updesh kushal bahutere
ReplyDeleteपक्षियों पर लिखा मुझे यूँ भी भाता है और आपकी कविता तो है भी बहुत सुंदर.सूरज की पालकी के ये कहार.... शब्द बहुत भले लगे.
ReplyDeleteघुघूतीबासूती
देव बाबू.......शानदार लगी पोस्ट........आखिरी पंक्तियाँ तो बहुत ही पसंद आईं|
ReplyDeleteपक्षियों के दर्द और विवशता का सुन्दर चित्रण ...
ReplyDeletesunder sandesh deti ek marmik rachna.
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति ...
ReplyDeleteबहुत मार्मिक प्रस्तुति.
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति!
ReplyDelete--
यहाँ पर ब्रॉडबैंड की कोई केबिल खराब हो गई है इसलिए नेट की स्पीड बहत स्लो है।
सुना है बैंगलौर से केबिल लेकर तकनीनिशियन आयेंगे तभी नेट सही चलेगा।
तब तक जितने ब्लॉग खुलेंगे उन पर तो धीरे-धीरे जाऊँगा ही!
कविता बहुत मार्मिक और पूर्ण है ......
ReplyDeleteमार्मिक प्रस्तुति, बधाई स्वीकार करें |
ReplyDeleteसही है, आदमी के लिए प्यार एक बंधन है, मुक्ति नहीं!
ReplyDeleteजैसा चित्र वैसी रचना - अति सुन्दर!
ReplyDeleteशुरु के दो छन्द बहुत सुन्दर है......चाहते ....ये कहार ठहरे - अतिसुन्दर.इसके बाद मेरे विचार से येक और छन्द कफस लिए हुए आदमी का वर्णन करता हुआ होता तो और अछ्छा लगता.
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