23.11.11

डंड़ौकी


उठल डंड़ौकी, चलल हौ बुढ़वा, दिल में बड़ा मलाल बा।

बड़कू  क  बेटवा  चिल्लायल, निन्हकू चच्चा भाग जा
गरजत  हौ  छोटकी  क  माई,  भयल सबेरा  जाग जा

घर से  निकसल,  घूमे-टहरे,  चिन्ता धरल  कपार बा
उठल डंड़ौकी, चलल हौ बुढ़वा, दिल में बड़ा मलाल बा।

घर  में  बिटिया  सयान  हौ,  बेटवा  बेरोजगार  हौ
सुरसा सरिस, बढ़ल  महंगाई, बेईमान सरकार हौ

काटत-काटत, कटल जिंदगी, कटत  न  ई जंजाल बा
उठल डंड़ौकी, चलल हौ बुढ़वा, दिल में बड़ा मलाल बा।

हमके लागला दहेज में, बिक जाई सब आपन खेत
जिनगी फिसलत हौ मुठ्ठी से, जैसे गंगा जी कs रेत

मन ही मन ई सोंच रहल हौ, आयल समय अकाल बा
उठल डंड़ौकी, चलल हौ बुढ़वा, दिल में बड़ा मलाल बा।

कल  कह  देहलन, बड़कू हमसे, का  देहला  तू हमका ?
खाली आपन सुख की खातिर, पइदा कइला तू हमका !

सुन  के  भी  ई  माहुर बतिया,  काहे  अटकल प्रान बा!
उठल डंड़ौकी, चलल हौ बुढ़वा, दिल में बड़ा मलाल बा।

ठक-ठक, ठक-ठक, हंसल डंड़ौकी, अब त छोड़ा माया जाल
राम ही साथी, पूत न नाती, रूक के सुन लs, काल कs ताल

सिखा  के  उड़ना,  देखा  चिरई,  तोड़त  माया जाल बा
उठल डंड़ौकी, चलल हौ बुढ़वा, दिल में बड़ा मलाल बा।

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कठिन शब्द..
डंड़ौकी = लकड़ी की छड़ी जिसे लेकर बुजुर्ग टहलने जाते हैं। बच्चों को नींद से जगाने के लिए सोटे के रूप में भी इसका इस्तेमाल कर लेते हैं।
माहुर बतिया = जहरीली बातें।

35 comments:

  1. दिल में बड़ा मलाल बा.....पर कबिता पढ़के कौनो मलाल नय है !

    बड़ा नीक लागल हो ई परयास !

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  2. बुढवा की आत्मा को भगवान् शान्ति दें -कहीं राजघाट से नीचे न झाँकने लगे बुढवा:)
    अद्भुत रचना -हमारे परिवारों की रोज रोज की खिच खिच का सहज दृश्य साकार गयी यह कविता !
    आपसे कविता स्वयमेव झर झर निकल पड़ती है !

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  3. देवेन्द्र जी बहुत ही सुन्दरता से भाव व्यक्त किये हैं ....कई बार पढ़ी ...
    बधाई इस रचना के लिए ...

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  4. देवेन्द्र जी ! रउरा त बड़ा सुघर भोजपुरी लिखले हई ! बहुत बहुत बधाई !

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  5. भले थोड़ा कम बुझाया हो पर आनन्द पूरा आया।

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  6. सुन्दर प्रस्तुति

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  7. सुन्दर......शानदार......'लाग' को दर्शाती ये पोस्ट बहुत ज़बरदस्त है और आपकी बोली चार चाँद लगा रही है.........बहुत पसंद आई |

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  8. लागत हौ ई हमे याद कर लिखले हौआ. हमार भी यही हाल हौ.
    बहुत सुन्दर.

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  9. This comment has been removed by the author.

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  10. सुन्दर प्रस्तुति.

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  11. देवेन्द्र जी यी भोजपुरी कविता बड़ा अच्छ लागल ! अगर एके गीत में बदल दिहल जाय तब और सुन्दर हो जाई ! बधाई बा

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  12. मूलत ; हम भी बनारस के ही हैं लेकिन इ भाषा बुझ तो लेते है पर बोल नाहीं सकत :)

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  13. गाँव की याद आ गयी. माहुर शब्द बहुत दिनों बाद सुना. ये गीत कहीं बिहार के जट्टा-जट्टी वाले गीत की तर्ज पर तो नहीं है?

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  14. बहुत ही मीठी सी रचना .बस दो -चार बार पढ़ना पड़ा . बढ़िया लिखा है.

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  15. भोजपुरी में इतनी सुंदर कविता पहली बार पढ़ी। बेहतरीन लय और रस में डूबी...सादी, सरल, गाँव के चित्र जैसी मोहक। मन खुश हो गया। पटना में काफी दिन रही हूँ और कुछ करीबी मित्र भोजपुरी बोलते थे इसलिए समझ तो लेती हूँ अच्छे से पर बोल नहीं पाती।

    कुछ साल पहले टूटा-फूटा बोल लेती थी, अब तो वो भी नहीं। बहुत बहुत बधाई इस कविता के लिए।

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  16. Where is my comment sir? (check your spam comments)

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  17. बहुतै जब्बर, गुरु .

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  18. सुन्दर प्रस्तुति...

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  19. वाह देवेन्द्र जी ... मजा आइल गया ... का जम के धोल जमाये हो आज ...
    वां ... बहुत ही मस्त लगा ये गीत ...

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  20. धन्यवाद इमरान भाई। 10 कमेंट स्पैम थे। मैं हैरान था कि लोग पढ़ रहे हैं तो कमेंट काहे नहीं कर रहे हैं!

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  21. पांडे जी! मस्त है भाई! एकदम चकाचक... चौचक!! अब का कहें पाबंदी है नहीं त काशी नाथ सिंह चेप देते!!

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  22. @mukti...

    बिहार का जट्टा-जट्टी वाला गीत..!.. मैने नहीं सुने।

    @सलिल भैया..

    काशी नाथ सिंह लिखना ही पर्याप्त है।

    इस पोस्ट पर पूजा जी, भाई ओझा और prkant के कमेंट देख तबियत हरियर हो गई है। घूरे के भाग जगे:-)

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  23. बहुत ही मार्मिक कविता....
    लगा..गाँव का कोई वृद्ध अपने मन की बातें बोल रहा हो...
    भोजपुरी इस कविता को ख़ास बना गयी...

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  24. जिंदगी का सार, खास कर आखिरी चार पंक्तियों मे! बहुत बढ़िया लिखा है, देवेन्द्र भाई!!

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  25. बहुत सुन्दर प्रस्तुति ||

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  26. The more different are among them, in my point of view, Very well written and certainly a pleasure to get into a blog

    From everything is canvas

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  27. हमके लागला दहेज में, बिक जाई सब आपन खेत
    जिनगी फिसलत हौ मुठ्ठी से, जैसे गंगा जी कs रेत
    -----------
    सच्ची बात।

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  28. मैं सवा-डेढ़ हाथ लम्बा बेटन ले कर जाता हूं सैर को। उसका भी कोई भोजपुरी/अवधी नाम है? या मात्र छोटी डंडौकी कहा जायेगा उसे?

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  29. आपसे पूर्वानुमति के बिना इसे फेसबुक पर सांझा कर दिया है...

    हृदयहारी...अद्वितीय !!!!

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  30. वाह, बहुतै मस्त।

    निर्झर प्रतापगढी की याद हो आई। वह भी इसी तरह देशज शब्दों से गजब के भाव प्रकट करते हैं। बहूत खूब।

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  31. उठ जाग मुसाफ़िर भोर भई ...

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