वह
चुपके से आया।
वैसे नहीं
जैसे बिल्ली आती है दबे पांव किचेन मे
पी कर चली जाती है
सारा दूध
वैसे भी नहीं
जैसे आता है मच्छर
दिन दहाड़े
दे जाता है डेंगू
न खटमल की तरह
गहरी नींद
धीरे-धीरे खून चूसते
न असलहे चमकाते
न दरवाजा पीटते
वह आया
बस
चुपके से।
न देखा किसी ने, न पहचाना
सिर्फ महसूस किया
आ चुका है कोई
घर के भीतर
जो कर रहा है
घात पर घात।
तभी तो...
कलकिंत हो रहे हैं
सभी रिश्ते
धरे रह जा रहे हैं
धार्मिक ग्रंथ
धूल फांक रहे हैं
आलमारियों में सजे
उपदेश
खोखले हो रहे हैं
सदियों के
संस्कार
नहीं
कोई तस्वीर नहीं है उसकी मेरे पास
नहीं दिखा सकता
उसका चेहरा
नहीं बता सकता
हुलिया भी
मैं
अक्षिसाक्षी नहीं
भुक्त भोगी हूँ
ह्रदयाघात से पीड़ित हूँ
यह भी नहीं बता सकता
कब आया होगा वह
सिर्फ अनुमान लगा सकता हूँ
तब आया होगा
जब हम
असावधान
सपरिवार बैठकर
हंसते हुए
देख रहे थे
टीवी।
हाँ, हाँ
मानता हूँ
इसमें टीवी का कोई दोष नहीं
था मेरे पास
रिमोट कंट्रोल।
.......................
अक्षिसाक्षी=चश्मदीद गवाह।
बड़ी अब्स्ट्रेक्ट कविता, सनी लियोन की बात तो नहीं कर रहे हैं -अनिन्द्य सौन्दर्य का झटका ऐसे ही होता है :)
ReplyDeletebahut sundar sir.....aapke blog naam ko charitharth karti hui.....
ReplyDeleteअरविंद मिश्र..
ReplyDeleteप्रेरणा तो वहीं से मिली सर...आज लिख पाया। लिंक जानकर नहीं दिया कि कविता का असर कम न हो..पाठक फिर चित्र में रम जांय:-)
ठीक लिखा है आपने ...हमारी असावधानी ही ज़िम्मेदार है ...इस बदलते हुए परिवेश के लिए ....
ReplyDeleteकृपया रिमोट कंट्रोल का दुरूपयोग न करें । :)
ReplyDeleteजी,कब यह हमारे अंतर्चेतन व हमारे सम्स्कार को जेनेटिक स्तर बदल देता है हमें भान बी नहूी होता।
ReplyDeleteवह चुपके से तो नहीं आया ,हमीं ने दावत दी होगी,
ReplyDeleteलगता नहीं कि जल्द हमें राहत होगी !
सामयिक विषय पर सटीक नज़र !
वाह भाई वाह |
ReplyDeleteमजा आ गया ||
बधाई ||
जो जिस भाव से पढ़े उसे वही भाव दिखाए दे.. पांडे जी हर बार की तरह प्रभावित करने वाली कविता..
ReplyDeleteकीचन = किचेन
तश्वीर = तस्वीर
:) पता है यह टाइपिंग की त्रुटि है!!
मै यह नही मानता कि टी. वी. कोई घात कर रही है.
ReplyDeleteAah!
ReplyDeleteबहुत खूब ..विचारों का मंथन करती रचना बधाई
ReplyDeleteपर यह सच है कि टीवी के माध्यम से न जाने कितना कुछ घुसा जा रहा है हमारे घरों में।
ReplyDeletebejod
ReplyDeleteटी वी से बहुत कुछ घरों में घुसाने कि कोशिश हो रही है .. यह आप पर निर्भर है कि किसे आने दें या किसे नहीं ... विचारणीय रचना
ReplyDeleteकाउच पोटैटो का कमाल।
ReplyDeleteहृदय रोग, उच्च रक्तचाप, टाइप २ डायबीटीज --- सब आते हैं ऐसे कि पता नहीं चलता!
हमने अपना जीवन इतना आराम तलब कर लिया है कि इस तरह के कई तत्व चुपके से आ जाते हैं और घर कर लेते हैं हमारे तन में, मन में।
ReplyDeleteसटीक अभिव्यक्ति\
ReplyDeleteसच है, रास्ता तो हमने ही दिया है।
ReplyDeleteविचारों का सटीक मंथन ...
ReplyDeleteसुन्दर प्रस्तुति
ReplyDeleteExcellent writing! Thank you for this wonderful source of information.
ReplyDeleteFrom everything is canvas
बहुत खूब देवेन्द्र भाई! सच है, हम लोगों ने अपना कंट्रोल रिमोट के हाथों मे सौंप दिया है...
ReplyDeleteअच्छा... तो सन्नीलियोनात्मक रचना है :)
ReplyDeleteसुन्दर प्रस्तुति |मेरे नए पोस्ट पर आपका स्वगत है । कृपया निमंत्रण स्वीकार करें । धन्यवाद ।
ReplyDeleteसुन्दर भाव और अभिव्यक्ति के साथ लाजवाब रचना लिखा है आपने! शानदार प्रस्तुती!
ReplyDeleteमेरे नये पोस्ट पर आपका स्वागत है-
http://ek-jhalak-urmi-ki-kavitayen.blogspot.com/
http://seawave-babli.blogspot.com/
bahut kuchh ghat jata hai aur ham anjaan hi rehte hain apne aas-paas ki ghatnaon se... samay rehte jaaag jaayein to behtar ho ham sabhi ke liye..
ReplyDeleteवाह देव बाबू........मुझे तो सस्पेंस का मज़ा आया.......बेहतरीन|
ReplyDeletedekhiye sir lagta hai comment fir se spaim me pahunch gaya hai
ReplyDeleteबेहतरीन प्रस्तुति...विचारणीय..
ReplyDeletebhaut achche vichar liye hue hai ye kavita...kaun hai jo hame dharmik grantho se dur kar rha hai....koi nahin hum khud....hum sab pyar ke bhukhe hain....hame kahaniyon ki bhukh lagti hai....jo jahan se puri ho....vahan jum jate hain....asli pyar na sahi ...nakali dekhkar hi man ka sakoon dhundhne lagte hain...
ReplyDeleteDevendra bhai...
ReplyDeletePadh rahe hain, hum bhi arse se....
Yahan har blog ko...
Par na koi 'Atma, bechain' aisi hai lagi..
Kavita main jo kuchh dikha, wo hai humari bhi vyatha..
Koi yun chup-chap ghar main, sabke hi hai aa ghusa...
Par yahan control hai ki, haath main remote hai..
Aaj 'net', par, de raha, ek aatmghati chot hai...
Ek click se door hain ab, sur, sura aur sundri..
Facebook, twiter main fanskar, rah gaya hai aadmi...
Aaj se hum bhi aapke sahchar hain...aapke blog ka anusaran karte hue..
Shubhkamnaon sahit..
Deepak Shukla..
@ es kavita ke pahle hi comment se meri tippani bhi prabhavit hai.. Achha hai aapne link nahi diya...:)
very nice thinking n expression.thanks for your suggestion
ReplyDeleteabout my blog i will translate it in hindi after some time.
देवेन्द्र भाई, आज बाऊंसर मानकर जाने देते हैं:)
ReplyDeleteवाह! बहुत सुन्दर जी.
ReplyDeleteबाउंसर हो या गुगली,पसंद आई जी.
अच्छी प्रस्तुति के लिए आभार.
मेरे ब्लॉग पर आईयेगा.
महाराज...नई पोस्ट में टीप-बॉक्स क्यों बंद कर दिया है ?
ReplyDeleteअपने ह्रदय के भाव इस रचना में ध्वनित पा रही हूँ...
ReplyDeleteकोटिशः आभार...
इसके आगे क्या कहूँ, सबकुछ कह तो दिया आपने...
WAAH PANDEY JI ..
ReplyDeleteBAHUT KHOOB!!!
मैंने भी भांप लिया.. आप किसकी बात कर रहे हैं..
ReplyDeleteपरिवर्तन इतने महीन तरीके सी ही आता है पता नहीं चल पाता ... फिर आप तो सन्नी लिओन की बात कर रहे हैं ..
ReplyDeleteIn some cases a charge card desire an item towards write certain details downwards with, intended for Chrissake. https://imgur.com/a/QL4lxUs https://imgur.com/a/2oLOMQa https://imgur.com/a/6SJ50IG https://imgur.com/a/jkAT9Uq https://imgur.com/a/cNxXnfR http://smvowr4drp.dip.jp https://imgur.com/a/l2VgOgd
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