12.2.12

आन क लागे सोन चिरैया, आपन लागे डाइन


यह पोस्ट पुनः प्रकाशित  है। उन लोगों के लिए जिन्होने इसे नहीं पढ़ा, उन लोगों के लिए जो इसे पढ़कर भूल गये और उनके लिए भी जो पढ़कर नहीं भूले :-)  काशिका में लिखी इस कविता का शीर्षक है....  

वैलेनटाइन 

बिसरल बसंत अब तs राजा
आयल वैलेनटाइन ।
राह चलत के हाथ पकड़ के
बोला यू आर माइन ।

फागुन कs का बात करी
झटके में चल जाला
ई त राजा प्रेम कs बूटी
चौचक में हरियाला

आन कs लागे सोन चिरैया
आपन लागे डाइन। [बिसरल बसंत…..]

काहे लइका गयल हाथ से
बापू समझ न पावे
तेज धूप मा छत मा ससुरा
ईलू-ईलू गावे

पूछा तs सिर झटक के बोली
आयम वेरी फाइन । [बिसरल बसंत…..]

बाप मतारी मम्मी-डैडी
पा लागी अब टा टा
पलट के तोहें गारी दी हैं
जिन लइकन के डांटा

भांग-धतूरा छोड़ के पंडित
पीये लगलन वाइन। [बिसरल बसंत…..]

दिन में छत्तिस संझा तिरसठ
रात में नौ दू ग्यारह
वैलेन टाइन डे हो जाला
जब बज जाला बारह

निन्हकू का इनके पार्टी मा
बड़कू कइलन ज्वाइन। [बिसरल बसंत…..]

37 comments:

  1. बिल्कुल नहीं भूले हैं, फिर से पढ़कर पूरा आनन्द आ गया...

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  2. बढिया .....
    मजेदार...

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  3. समय बड़ा बलवान ... बहुत खूबसूरत रचना!

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  4. बहुत उम्दा , आंचलिक शब्द अभिव्यक्ति को और सटीक बना देते है..... :)

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  5. ई सब नयका बजार की चमक हवे,जल्दी ही बुझा जइल !
    प्रेम अनायास होवे वाली चीज़ है,अब प्रोग्राम बनावा जात है !

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  6. ई कालजयी रचना है थोडा और विस्तार चाही

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    1. आप फुरसतिया जाव ,तबै बिस्तार होई !

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  7. सार्थक प्रस्तुति । मेरे पोस्ट पर आप आमंत्रिक हैं । धन्यवाद ।

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    1. प्रेमजी ,कभी बिना न्योते के भी आया करो !

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  8. हाथ पकड़े जो माइन होती है
    पैक्ड लेदर में वाइन होती है

    कितनी उत्तम गुज़ारते थे वो
    अपनी तो वेरी फाइन होती है

    वो बसन्ती के प्रेमलीन से थे
    अपनी तो वैलेनटाइन होती है

    लंबे घूंघट मुरीद थे वो सब
    यां बिकनी पे लाइन होती है

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    1. क्या मारा है अली साब,
      यहाँ तो बस,पंडिताइन होती है !

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  9. पाण्डेय जी, हम पहली कैटेगरी में है- जिन्होने नहीं पढ़ा था। पढ़ कर वाकई बहुत मजा आया...तीसरी कैटेगरी में भी रहे होते तो बेशक वही मजा आता।

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  10. बढ़िया व्यंगात्मक रचना है !

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  11. VAH BHAI DEVENDR JI ......KYA KHOOB LIKHA HAI ...BILKUL TEEKHA VYANG ...SATH ME HASY BHI ...BADHAI

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  12. :-) वाह! ज़बरदस्त!

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  13. वेलंताइन सांस्कृतिक उत्थान का पर्व है। :-)

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  14. ha ha ha ha ha ha ha......very nice

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  15. मैंने आपकी यह पोस्ट पहले नहीं पढ़ी थी वालेंतीने दिवस के उपलक्ष में आपकी यह पोस्ट सच में बहुत ही बढ़िया और मज़ेदार रही...आभार

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  16. क्या सुन्दर.... वाह!!
    हार्दिक बधाई...

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  17. दिन , साँझ और रात की बात में भोत घपलात है ।

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  18. समयोचित, सुन्दर रचना. शुभकामनाएं.

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  19. कवितौ पढ़ेन औ बिस्तार की मागौ! रस-लोभी मन-भौंरा भला कब अघात है, ऊ ‘अउरै-अउर’ चिल्लात है! :)

    पसंद आई रचना! जै है!

    ”दुइ रुपया कै चीज बीस मा बिकत हवै,
    मानौ बेलेन्टाइन होइगै महंगाई..!” ~ अशोक ‘अग्यानी’

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  20. एक बात समझमा आई गवा कि अमरेंदर के बोलाये बदे देवेन्दर के भोजपुरी आ अवधिये में कछु लिखे परी।:)

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  21. देवेंदर जी तोहार जवाब नाही

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  22. बडकू कईलन ज्वाईन ...
    दिखे रहा है !
    रोचक !

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  23. लेट्स एन्जॉय वैलेंटाइन ...डियर !

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  24. देवेन्द्र जी!!!!!!!तोहार ई रचना के कउनो जबाब नाही,..सिर्फ!!!!लाजबाब लाजबाब लाजबाब,..

    बेहतरीन सुंदर रचना, बहुत अच्छी प्रस्तुति,

    MY NEW POST ...कामयाबी...

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  25. आनंद आ गया इसे पढ़ के ... जवाब नहीं इसका ....

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