हम भटके
बेचैनी
में
तुम
ठहरे
हातिमताई।
हम सहते
कितने
लफड़े
तुमने
खड़े
खड़े
बदले
कपड़े !
मेहरबान
तुम पर रहती
हरदम ही
धरती माई।
ना जनम
लिया ना फूँका तन
वैसे का
वैसा ही मन
कर डाला
फिर
सुंदर तन
कहाँ से
सीखी
चतुराई ?
बूढ़े हो
दद्दू से
भी
दद्दू के
दद्दू से भी
बच्चा बन
इठलाते
हो
हमे पाठ पढ़ाते
हो
अपनी
चादर धोने में
हम ढोते
पूरा
जीवन
खुद को
निर्मल करने में
तुमको
लगता
बस एक
साल
सच बोलो !
क्या
पतझड़ में
नंगे
होते
शरम नहीं
आई ?
......................
बढ़िया चर्चा पीपल से ....
ReplyDeleteशुभकामनायें !
बढ़िया चर्चा 'पीपल से'.... नहीं भाई , बढ़िया चर्चा 'पीपल की'....
Deleteपीपल को नए अंदाज में पढना अच्छा लगा .
ReplyDeleteमिथिलेश भाई..पीपल को कई अंदाज में पढ़ने का मन करेगा..इसके पास जाइये तो सही:)
Deleteवाह...वाह....
ReplyDeleteअद्भुत कल्पना शक्ति......
बेहतरीन रचना...
सादर
अनु
बिना जनम लिए,
ReplyDeleteबिना शरीर गलाए
कपड़े नए,धुले-धुलाए !
पीपल खड़ा यही समझाए,
रूत आये,रूत जाए,
वो वैसा ही रह जाए !
ठूंठे पर खुश हो,
तब भी जब हरियाये !
संतोष जी ,
Delete'पी'पल और कोपल अत्यन्त सहज घटना है आप समझते क्यों नहीं :)
'पी' यानि कि 'पिया' के साथ पल का यही नतीज़ा सुनते आये हैं अब तक :)
चलिये यही अर्थ लें। 'पी'पल..पिया के साथ पल। क्या बेचैन रूहों को पीपल में पिया की अनुभूति होती है?
Deleteसंतोष जी ने कितनी बढ़िया बात कही है...ठूंठ पर खुश हो, खुश हो तब भी जब हरियाए।
Deleteआभार देवेन्द्र भाई और अली साब का तो जवाब ही नहीं वे तो पता नहीं कहाँ से तोड़ दें ?
Deleteठहरे हातिमताई ने अति सुन्दर कविता लिखवाई . मनभावन अंदाज में ..
ReplyDeleteआभार।
Deleteबहुत खूब ... सच कहूँ तो बहुत ही भोली लगी ये रचना ... जैसे कोई बच्चा दद्दू से मनुहार कर रहा हो ... गज़ब की उड़ान है कल्पना की ...
ReplyDeleteजी..! भोलपन में ही गोल गोल प्रश्नो को बूझने का प्रयास है।
Deleteन जन्म लिया न फूंका तन,
ReplyDeleteवैसे का वैसा ही मन...........
सुंदर अभिव्यक्ति.......आभार.
वाह!... दद्दू जी तो साल मे एक बार नए होते हैं, आपका ब्लॉग तो लगभग हर हफ्ते नई-नई सुंदर-सुंदर पोस्ट से सज उठता है! हर हफ्ते वसंत...! मुबारक!!
ReplyDelete:-))....tukbandi bhida di hai is baar dev babu.
ReplyDeleteजी..आरोप स्वीकार है। तुकबंदी ने मूल बात का वज़न कम कर दिया है।
Deleteवाह... पीपल की सबसे अच्छी तारीफ शायद यही होगी...सुन्दर कविता... आभार
ReplyDeleteलाजबाब !
ReplyDeleteKya baat hai!
ReplyDeleteये तो जीते जी चोला बदलते हैं ।
ReplyDeleteइन्हें शर्म कैसी ! तांक झांक करने की आदत इंसान की ही होती है ।
बेहतरीन रचना ।
डाक्टर साहब ,
Deleteपेड़ अधोवस्त्र , धडोवस्त्र के बजाये शिरोवस्त्र ही पहनते और बदलते हैं यानि कि वे मूलतः नंगे खड़े / गड़े रहते हैं ! उन्हें शर्म कैसी :)
पीपल के बहाने बहुत कुछ कह गए , अच्छी रचना
ReplyDelete:) होठो पर इधर एक मुस्कान थिरक आई !
ReplyDeleteऔर आँखों में ?
Deleteकविता पढ़ते वक्त डा साबह वैज्ञानिक नहीं रहते। दिल से पढ़ते हैं, ओठों से मुस्कुराते हैं आखों का क्या काम:)
Deleteसाहब।
Delete@ सच बोलो क्या पतझड़ में नंगे होते शरम नहीं आयी?
ReplyDeleteपहले आती थी, अब जबसे आदमी बेशरम हो गया है हमने भी शरमाना छोड़ दिया है:) क्यूँ शरमाऊँ? मैने आज तक कोई घोटाला नहीं किया है।
पीपल को पहले भी नहीं आती रही होगी:)
Deletebada achcha prashn kiya hai pipal se .....
ReplyDeleteजी, एक प्रयास जो सफल नहीं हो पाया।
Deleteदाद्दुओं के भी दद्दू को मेरा नमन ... :) .. bahut pyaari rachna ..
ReplyDeleteपाण्डे जी!
ReplyDeleteहमको हमरे पटना के देवी-स्थान वाले पीपल से मिला दिया आपने..! नानागेपन में शर्म कैसी.. नागापन और अश्लील होना दोनों दो बातें हैं.. फिर काहे की शर्म!!
बहुत सुन्दर!! छा गए आप तो, पीपल के पत्तों की तरह!!
टिप्पणी लिखी और मिटा दी ! कुछ शब्द कौंध रहे हैं जैसे चिंतन में हडबडी कविता में गडबडी !
ReplyDeleteपीपल जमीन से जुड़ा है न, इसलिये। हम सब तो कटे हुये ठूंठ हैं, चलते फ़िरते दिखते हैं लेकिन सब बेमानी है।
ReplyDeleteवाह!
Deletebahut gahan aur sarthak abhivyakti
ReplyDeleteshubhkamnayen .
कुछ शब्द स्वीकार हैं....
ReplyDeleteतुकबंदी
चिंतन में हड़बड़ी
कविता में गड़बड़ी
कविता से कुछ बातें जो साफ नहीं हुईं जो कहना चाहता था...
गीता में कृष्ण ने कहा है..जैसे मनुष्य पुरान वस्त्रों को त्याग कर नये वस्त्र धारण करता है वैसे ही आत्मा अजर अमर है..रूग्ण शरीर को त्यागता है और पुनर्जन्म लेकर नये शरीर को धारण करता है। वैसे तो सभी जीव वस्त्र (चर्म या पत्ते)बदलते रहते हैं लेकिन पीपल जैसे पतझड़ में झर-झर झरते हैं..पूरी तरह यकबयक नंगे हो जाते हैं और फर-फर फहराने लगते हैं, वैसा दुर्लभ है। इसे देख लगता है पीपल स्वयम् एक आत्मा है जो हर वर्ष अपने पुराने पत्तों को त्यागता और नवीन को अंगीकृत करता है। क्या पीपल की शाखों का आत्मा से कोई अटूट संबंध है? क्या यही कारण है कि कहा गया है पीपल में आत्मा का वास है?
क्या पीपल ठहरा हुआ हातिमताई है जो एक स्थान पर वर्षों खड़े हो सबका कल्याण करता रहता है?
पतझड़ में अर्थात दुर्दिन में नंगे हो सकने की क्षमता (नंगा होने से आशय सबके सामने सच को स्वीकार कर सकने की क्षमता) हम मनुष्यों में है? पतझड़ में नंगे होते शरम नहीं आई? लिखकर इसी का संकेत देने का प्रयास किया था जिस पर जवाब चाहता था। कौशलेंद्र जी ने कहा भी लेकिन तनिक कसर रह गई, जैसे कविता में भाव स्पष्ट करने में मुझसे रह गई :)
कवि वैज्ञानिक तथ्यों को नजरअंदाज कर भावनाओं के सहारे भी विषयों पर चिंतन करता है। अली सा कहते हैं पीपल शिरोवस्त्र ही धारण करते हैं उनके कहने का आशय यह कि आधा अंग तो जमीन के भीतर गड़ा है फिर उन्हें शर्म कैसी? अब ऐसे तर्क करेंगे तो कवि बेचारा मारा जायेगा:)
ab clear hua aap kya kahna chahte the.
Deleteवाह, जितने कम शब्दों में जितना कुछ कह डाला है, वह सबके लिये संभव नहीं होता है।
ReplyDeleteबहुत ही बढ़िया सर!
ReplyDeleteसादर
बहुत सुंदर प्रस्तुति ... एक कविता पढ़ी थी याद नहीं किस कवि की है .... सारांश यही था कि इंसान पेड़ सेफिर से यौवन मांग रहा है तो पेड़ कहता है कि उसने ताप, सर्दी और बारिश सब सही है तुम तो कुछ सहते नहीं तो तुम पर कैसे यौवन आ सकता है .... हम प्रकृति से इतने कट गए हैं कि कुछ बर्दाश्त नहीं कर पाते ...
ReplyDeleteवाह! कितनी सुंदर बात कही है कवि ने!! पेड़ ताप, सर्दी और बारिश सब सहता है तभी तो चिर युवा बना रहता है। यह बात पीपल के यौवन प्राप्त करने पर कही जा सकती है। आभार इस सुंदर कविता के लिए। आपने पोस्ट को समृद्ध किया।
Deleteइंसान प्रकृति से कट गया है फिर उस पर दुबारा यौवन भला कैसे आए ... सुंदर प्रस्तुति
ReplyDeleteImagination par Excellence......मज़ा आ गया !!!
ReplyDeleteनए ही अंदाज की अद्भुत कविता और नीचे सुंदर विवेचना...
ReplyDeleteसादर।
अच्छी रचना है जी!
ReplyDeleteवाह, क्या बात है!
ReplyDeleteबहुत सुन्दर.येक नया चिंतन,जैसा कभी सोचा नहीं,न कहीं और पढने को मिला.
ReplyDeleteआखिरी लाइन. बहुत सही !
ReplyDeleteपिछले कुछ दिनों से अधिक व्यस्त रहा इसलिए आपके ब्लॉग पर आने में देरी के लिए क्षमा चाहता हूँ...
ReplyDelete.......इस उत्कृष्ट रचना के लिए ... बधाई स्वीकारें.
bahut pyaraaaaa!!!!
ReplyDeleteआखिरी वाली लाइन पढ़कर पीपल बाबा मुस्काये होंगे। :)
ReplyDeleteदेवेन्द्र भाई कमाल कर दिया है आपने अपनी अद्भुत कविता से...भाई वाह...मान गए आपकी लेखनी को...बधाई स्वीकारें
ReplyDeleteनीरज