आकाश से
झर रही है
आग
घरों में
उबल रहे हैं
लोग।
बड़की
पढ़ना छोड़
डुला रही है
बेना
छोटकी
दादी की सुराही में
ढूँढ रही है
ठंडा पानी
टीन का डब्बा बना है
फ्रिज।
हाँफते-काँखते
पड़ोस के चापाकल से
पापा
ला रहे हैं
पीने का पानी
मम्मी
भर लेना चाहती हैं
छोटे-छोटे कटोरे भी।
अखबार में
छपी है खबर
शहर में
कम रह गये हैं
कुएँ
पाट दिये गये हैं
तालाब
नहाने योग्य नहीं रहा
गंगा का पानी
जल गया है
सब स्टेशन का ट्रांसफार्मर
दो दिन और
नहीं आयेगी
बिजली।
...........................
नये तरह के चूल्हे बन गये है आधुनिक शहर..
ReplyDeleteये सब तो वो है जो दिख जाता है कंक्रीट के जंगल में पर यह कविता हमें वहां भी लेजाती है जो नहीं दिखता -- जैसे सूख चुकें हैं संवेदना के जल, जल गया है मानवता का पेड़ और मर चुकी है इंसानियत की जड़।
ReplyDeleteशानदार कमेंट।
Deleteमगर हम समझने को तैयार नहीं ....
ReplyDeleteसच्ची................
ReplyDeleteपढ़ कर और भी गर्मी लगने लगी....
कई शहरों का सच...
ReplyDeleteआनेवाले दिनों में और बुरे हाल होंगे..
बिजली न आने की त्रासदी बखूबी बयान हो रही है ...
ReplyDeleteऐसे में पहाड़ों की वादियों का ध्यान करें , कूल कूल महसूस करने लगेंगे ,यह गारंटी है . :)
ReplyDeleteऔर आप घर से भी गायब रहने लगे :(
ReplyDeleteफोन करने पर पाटा लगता है हुजुर पड़ोसी के घर गए हैं
क्या बात है उधर कोई ठंडई है क्या ?
पड़ोसी ? कौन हैं वे :)
Deleteदुखद लेकिन वास्तविक शब्द चित्र!
ReplyDeleteमानसून का इंतज़ार कीजिये कुछ और दिन। भगवान पर भरोसा करना ज्यादा लाभदायक है :)
ReplyDeleteगर्मी में इंसानी बेबसी और जीवन की जिजीविषा को क्या अद्भुत तरीके से व्यक्त किया है. पोस्ट दिल को छू गयी
ReplyDeleteपरेशानियों का सबब दूसरी दुनिया से आये कोई लोग तो हैं नहीं हैं ?
ReplyDeleteये सब हमारा ही किया धरा है !
बहुत दिनों बाद रूबरू हुआ 'चापाकल' और 'बेना' शब्द से
ReplyDeleteआपकी कविताओं में क्षेत्रीय शब्द (आंचलिकता) दर्शनीय होती है.
बहुत खूबसूरती से हालात का जायजा लिया है ...
बहुत सुन्दर
सटीक चित्रण |
ReplyDeleteइस बार तो कहर बरपा रही है यह गर्मी |
१४ जून तक झारखण्ड में आ जाता था मानसून |
पर लगता है ऐसे ही बीत जाएगा जून |
बहुत ही शानदार पोस्ट।
ReplyDeleteहम्म ..घर फोन करती हूँ तो यही सब सुनने को मिलता है.
ReplyDeleteबिल्कुल सच ... बहुत ही अच्छी प्रस्तुति।
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति!
ReplyDeleteआपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि-
आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल शनिवार (16-06-2012) के चर्चा मंच पर भी होगी!
सूचनार्थ...!
So true. So real.
ReplyDeleteSad. :(
बहुत खूब, उम्दा काव्याकृति
ReplyDeleteमिलिए सुतनुका देवदासी और बनारस के देवदीन रुपदक्ष से रामगढ में,
जहाँ रचा गया मेघदूत।
Oopar wale ke Saath ye concrete ka jangal Bhi aag ugalta hai ...Mahanagar ki trasadi ko ujagar kiya hai aapne ...
ReplyDeleteबहुत बढिया.......
ReplyDeleteसुन्दर गर्मी!
ReplyDeleteगर्मी सुंदर हो गई!(:
Deleteगरमाई अभिव्यक्ति...
ReplyDeleteदो-चार दिन से माताजी ने रट लगा राखी है फ्रिज पानी ठंडा नहीं कर रहा है इसे दिखवा ले... इतनी गर्मी में बेचारा फ्रिज क्या करे....
कितना खूबसूरत चित्र खींचा है गर्मी का, जब बिजली नहीं होती!
ReplyDeleteवैसे दिल्ली आकार मैंने झेला है ऐसा एक अनुभव,..कुछ दिन पहले दिल्ली में जिस मोहल्ले में मैं रहता हूँ, वहाँ दो दिन बिजली नहीं आई थी.
कंक्रीट के जंगलों की हालात बहुत बुरी है.
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