13.10.12

सुबह की सैर

आज सुबह घूमने गया तो कुछ तस्वीरें खीँची। काशी हिंदू विश्वविद्यालय की सेंट्रल लाइब्रेरी के सामने बने लॉन पर बगुले और कौओं को एक साथ घूमते देख कर यह गीत याद आ गया......


काले गोरे का भेद नहीं, हर दिल से हमारा नाता है

कुछ और ना आता हो हम को, हमे प्यार निभाना आता है
जिसे मान चुकी सारी दुनियाँ, मैं बात वही दोहराता हूँ
भारत का रहने वाला हूँ, भारत की बात सुनाता हूँ।



आग बढ़ा तो देखा एक अधकटा  वृक्ष दिखा। कुछ तोते  आते, थोड़ी देर बैठते, आपस में जाने क्या टें..टें..करते  फिर उड़ जाते। मुझे लगा शायद ये अपना घोंसला ढूँढ रहे हैं। 

नश्तर सा चुभता है उर में कटे वृक्ष का मौन
नीड़ ढूँढते पागल पंछी को समझाये कौन?


आगे धान की फूटती बालियों को देखकर मन प्रसन्न हो गया।  फ़िल्म 'उपकार' का सदाबहार देश भक्ति गीत याद आ गया...

"मेरे देश की धरती सोना उगले, उगले हीरे मोती"

33 comments:

  1. देवेन्द्र पाण्डेय के लिए सस्नेह,

    कभी दर्द पंछी का, समझोगे कैसे ?
    अभी तक तुम्हारा बसेरा ना उजड़ा !

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    1. एक शेर याद आया...

      कफ़स में रूदाद-ए-चमन कहते न डर ऐ हमदम
      गिरी हो जिसपे कल बिजली, वो तेरा आशियाँ क्यूँ हो!

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  2. वाह नयनाभिराम

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  3. tasveerein bahut achhi hain ,khaastaur par dhaan dekh kar mujhe apna gaon aur bachpan yaad aa gay...thank you.

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  4. अत्यंत सुन्दर . धान अब पियरा रहा है .,जल्दिये चिउरा लायक हो जायेगा .

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    1. दही चिउरा खायेंगे बैठ जाड़े की धूप में..

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  5. होते है श्वेत सत्य साथ कुछ काले झूठ भी होते है
    कहीं बसते सुंदर नीड़ कही कटे हुए ठूँठ भी होते है

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    1. किंतु काले दिखते अब, श्वेत परिधानों में
      सत्य बदरी से ढंका, काला नज़र आता है।:)

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    2. कभी यहाँ सत्य था, अभी यहाँ लूट है।
      अभी यहाँ नीड़ था, अभी यहाँ ठूँठ है।

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    3. सबका है बस भाग्य दाना, कुदरत है निरपेक्ष।
      बदरी को पहचान ले बस, नीर क्षीर सापेक्ष॥

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    4. उदर में आग लगा रहा, हरा भरा यह धान।
      मरूस्थल में देखा है, क्षुधा तृप्ति व्यवधान॥

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    5. बगुले हैं, कौए हैं, हंस नहीं एक
      ज्ञानशील ही धरें, नीर क्षीर विवेक।

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  6. प्यार निभाना आता है, बस निभाये जा रहे हैं।

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  7. फोटो सब सहेज कर रखिये खेती बाड़ी वाली क्या पता बच्चो के बड़े होने तक बस फोटो में ही रह जाये ये सब और वह पर कंक्रीट का जंगल खड़ा हो ।

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    1. इसीलिए खींच-खींच कर बिलाग में डाले जा रहे हैं। चाहें तो यहाँ से लेकर आप भी सहेज सकती हैं।:)

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  8. विश्व विधालय के खेत देखकर आनंद आ गया .

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  9. अधकटे वृक्ष ने बरबस रोक ही लिया ,शेर भी बहुत प्रभावी बन पड़ा ........

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  10. आपकी सैर अच्छी- ख़ासी होती है !

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  11. वाह बहुत खूबसूरत विवरण सशक्त भाव बहुत अच्छा लगा आपके ब्लॉग में आना |

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  12. आँखों देखा सच हैं ये फ़ोटो !

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  13. पांडेयजी आप भाग्यशाली हैं आप इतने मनोरम कैंम्पस के सन्निकट रहते हैं। आपके फोटोग्राफ्स व चर्चा ने काशी हिंदू विश्वविद्यालय में बिताये सुनहरे दिनों का याद ताजा कर दी।

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  14. ये कैसा दौर आया है 'सच',
    दाना चिड़ियों को भी मयस्सर नहीं !

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  15. आपकी प्रात कालीन सैर आपकी खोजी प्रवृत्ति बहुत मददगार है.

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  16. aapki sair wakai laajwab rahi.....photo dekhkar aanad aa gya ji

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  17. तस्वीरें भी और कैप्शन भी शानदार च जानदार।
    सुबह की सैर तो हमने भी शुरू कर दी है पर ये नजर कहाँ से लाऊँ ? :)

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    1. नज़र तो आपकी हमसे भी जबर है। कमी थी तो बस न घूमने की, वह आपने पूरी कर ली। बस एक कैमरे का जुगाड़ कीजिए और निःसंकोच फोटो खींचते जाइये।:)

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  18. इस सदी के पूर्वार्ध में मैंगो मैन को जितना क्रियेटिव कैमरे ने बनाया उतना किसी और गैजेट ने नहीं। कलम ने तो नहीं ही! :-)

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  19. अरे, ये पोस्ट छूट कैसे गयी थी हमसे? पहला चित्र देखकर इलाहाबाद विश्वविद्यालय का अंग्रेजी विभाग याद आया. आपके द्वारा लिए गए छायाचित्र बहुत जीवंत लगते हैं.

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  20. अब हम भी पक्का घूमने जाने की सोच रहे हैं सुबह-सुबह।

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