आज सुबह घूमने गया तो कुछ तस्वीरें खीँची। काशी हिंदू विश्वविद्यालय की सेंट्रल लाइब्रेरी के सामने बने लॉन पर बगुले और कौओं को एक साथ घूमते देख कर यह गीत याद आ गया......
काले गोरे का भेद नहीं, हर दिल से हमारा नाता है
कुछ और ना आता हो हम को, हमे प्यार निभाना आता है
जिसे मान चुकी सारी दुनियाँ, मैं बात वही दोहराता हूँ
भारत का रहने वाला हूँ, भारत की बात सुनाता हूँ।
आग बढ़ा तो देखा एक अधकटा वृक्ष दिखा। कुछ तोते आते, थोड़ी देर बैठते, आपस में जाने क्या टें..टें..करते फिर उड़ जाते। मुझे लगा शायद ये अपना घोंसला ढूँढ रहे हैं।
नश्तर सा चुभता है उर में कटे वृक्ष का मौन
नीड़ ढूँढते पागल पंछी को समझाये कौन?
आगे धान की फूटती बालियों को देखकर मन प्रसन्न हो गया। फ़िल्म 'उपकार' का सदाबहार देश भक्ति गीत याद आ गया...
"मेरे देश की धरती सोना उगले, उगले हीरे मोती"
देवेन्द्र पाण्डेय के लिए सस्नेह,
ReplyDeleteकभी दर्द पंछी का, समझोगे कैसे ?
अभी तक तुम्हारा बसेरा ना उजड़ा !
वाह!..आभार।
Deleteएक शेर याद आया...
Deleteकफ़स में रूदाद-ए-चमन कहते न डर ऐ हमदम
गिरी हो जिसपे कल बिजली, वो तेरा आशियाँ क्यूँ हो!
वाह नयनाभिराम
ReplyDeletetasveerein bahut achhi hain ,khaastaur par dhaan dekh kar mujhe apna gaon aur bachpan yaad aa gay...thank you.
ReplyDeleteअत्यंत सुन्दर . धान अब पियरा रहा है .,जल्दिये चिउरा लायक हो जायेगा .
ReplyDeleteदही चिउरा खायेंगे बैठ जाड़े की धूप में..
Deleteहोते है श्वेत सत्य साथ कुछ काले झूठ भी होते है
ReplyDeleteकहीं बसते सुंदर नीड़ कही कटे हुए ठूँठ भी होते है
किंतु काले दिखते अब, श्वेत परिधानों में
Deleteसत्य बदरी से ढंका, काला नज़र आता है।:)
कभी यहाँ सत्य था, अभी यहाँ लूट है।
Deleteअभी यहाँ नीड़ था, अभी यहाँ ठूँठ है।
सबका है बस भाग्य दाना, कुदरत है निरपेक्ष।
Deleteबदरी को पहचान ले बस, नीर क्षीर सापेक्ष॥
उदर में आग लगा रहा, हरा भरा यह धान।
Deleteमरूस्थल में देखा है, क्षुधा तृप्ति व्यवधान॥
बगुले हैं, कौए हैं, हंस नहीं एक
Deleteज्ञानशील ही धरें, नीर क्षीर विवेक।
प्यार निभाना आता है, बस निभाये जा रहे हैं।
ReplyDeleteफोटो सब सहेज कर रखिये खेती बाड़ी वाली क्या पता बच्चो के बड़े होने तक बस फोटो में ही रह जाये ये सब और वह पर कंक्रीट का जंगल खड़ा हो ।
ReplyDeleteइसीलिए खींच-खींच कर बिलाग में डाले जा रहे हैं। चाहें तो यहाँ से लेकर आप भी सहेज सकती हैं।:)
Deleteविश्व विधालय के खेत देखकर आनंद आ गया .
ReplyDeleteअधकटे वृक्ष ने बरबस रोक ही लिया ,शेर भी बहुत प्रभावी बन पड़ा ........
ReplyDeleteआपकी सैर अच्छी- ख़ासी होती है !
ReplyDeleteवाह बहुत खूबसूरत विवरण सशक्त भाव बहुत अच्छा लगा आपके ब्लॉग में आना |
ReplyDeleteआँखों देखा सच हैं ये फ़ोटो !
ReplyDeleteपांडेयजी आप भाग्यशाली हैं आप इतने मनोरम कैंम्पस के सन्निकट रहते हैं। आपके फोटोग्राफ्स व चर्चा ने काशी हिंदू विश्वविद्यालय में बिताये सुनहरे दिनों का याद ताजा कर दी।
ReplyDeleteये कैसा दौर आया है 'सच',
ReplyDeleteदाना चिड़ियों को भी मयस्सर नहीं !
आपकी प्रात कालीन सैर आपकी खोजी प्रवृत्ति बहुत मददगार है.
ReplyDeletekhubsurat photos aur behtareen rachna....:)
ReplyDeleteअछ्छा लगा.
ReplyDeleteaapki sair wakai laajwab rahi.....photo dekhkar aanad aa gya ji
ReplyDeleteतस्वीरें भी और कैप्शन भी शानदार च जानदार।
ReplyDeleteसुबह की सैर तो हमने भी शुरू कर दी है पर ये नजर कहाँ से लाऊँ ? :)
नज़र तो आपकी हमसे भी जबर है। कमी थी तो बस न घूमने की, वह आपने पूरी कर ली। बस एक कैमरे का जुगाड़ कीजिए और निःसंकोच फोटो खींचते जाइये।:)
Deleteइस सदी के पूर्वार्ध में मैंगो मैन को जितना क्रियेटिव कैमरे ने बनाया उतना किसी और गैजेट ने नहीं। कलम ने तो नहीं ही! :-)
ReplyDeletenice pictures
ReplyDeleteअरे, ये पोस्ट छूट कैसे गयी थी हमसे? पहला चित्र देखकर इलाहाबाद विश्वविद्यालय का अंग्रेजी विभाग याद आया. आपके द्वारा लिए गए छायाचित्र बहुत जीवंत लगते हैं.
ReplyDeleteअब हम भी पक्का घूमने जाने की सोच रहे हैं सुबह-सुबह।
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