भाग-1
भाग-2
से आगे.....
यहाँ पेड़-पौधे भी खूब लगे हैं। भांति-भांति के फूल खिले हैं। कबूतरों का झुण्ड विशेष आकर्षण का केंद्र है।
भाग-2
से आगे.....
अन्नपूर्णा रेंज की धवल पर्वत श्रृखंलाएँ ही नहीं, झीलों, झरनों और गुफाओं के मामले में भी प्रकृति ने पोखरा को दोनो हाथों से सुंदरता से नवाज़ा है। यहाँ तीन झीलें हैं फेवा ताल, बेगनास ताल और रूपा ताल। मजे की बात यह है कि सभी प्रकृति प्रदत्त झीलें हैं। पहाड़ों में यत्र-तत्र गिरने वाले झरने तो हैं ही, डेविस फॉल जैसा प्रसिद्ध झरना भी है। महेंन्द्र गुफा और गुप्तेश्वर महादेव की गुफाएँ हैं। ओशो ध्यान केंद्र से लौटकर भोजनोपरांत हमने फेवा ताल की ओर रूख किया।
इस झील के चारों तरफ पहाड़ों में कई खूबसूरत दर्शनीय स्थल हैं। बुद्ध का स्तूप तो है ही, ग्लाडिंग के शौकीनों के लिए विश्वस्तरीय पैराग्लाइडिंग की भी व्यवस्था है।
झील का पानी एकदम साफ है। गर्मियों में यहाँ स्वीमिंग की जा सकती है। पानी में बादलों की परछाईं पड़ रही है। यही अगर सुबह का समय होता तो अन्नपूर्णा हिमालय की चोटियाँ, माछा पुछ्रे (फिश टेल) का प्रतिबिंब दिखलाई पड़ता। सूर्य की करणें जब तेज होती हैं तो ऐसा प्रतीत होता है जैसे चाँदी बिखरी पड़ी हो और सूर्योदय-सूर्यास्त के समय ऐसा लगता है मानो सोने की खदान डूबी पड़ी हो। फेवा झील के चारों तरफ बिखरी पहाड़ियों में भी छोटे-छोटे झरने बहते रहते हैं। यदि आपके पास समय हो तो आप इन झरनों का आनंद ले सकते हैं। पर्यटक इन पहाड़ी कंदराओं का खूब आनंद लेते हैं। इन झरनों का पानी काफी ठंडा होता है। गर्मियों में ही इसमें नहाया जा सकता है।
झील के बाचों बीच बाराही देवी का मंदिर है। यह शक्ति की देवी हैं। यह स्थल भी काफी रमणीक है। यहाँ से चारों ओर झील और हिमालय काफी खूबसूरत दिखलाई पड़ते हैं।
यहाँ पेड़-पौधे भी खूब लगे हैं। भांति-भांति के फूल खिले हैं। कबूतरों का झुण्ड विशेष आकर्षण का केंद्र है।
बाराही देवी का भी दर्शन कर ही लीजिए।
इस झील के पास ही डेविस फॉल है। जुलाई-अगस्त के महीनों में यहाँ पानी इतने तेज रफ्तार से गिरता है कि चारों तरफ पानी का धुंध ही दिखलाई पड़ता है। इस समय पानी बहुत कम था। इसकी कहानी यह है कि 31 जुलाई सन् 1961 की दोपहरी में एक स्विस महिला अपने पति के साथ यहाँ स्नान कर रही थी कि अचानक फेवा झील की लहरें उसे बहा ले गईँ। काफी प्रयासों के बाद उसकी लाश बरामद हो पाई। तभी से यह झरना डेविस फॉल के नाम से जाना जाता है।
डेविस फॉल के सामने ही गुप्तेश्वर महादेव की गुफा है। महादेव मंदिर का मेरा खींचा चित्र पुजारी ने डिलीट करवा दिया। आप गुफा देखिये। गुफा लम्बी, चौड़ी और गहरी है। नीचे उतरने के लिए सीढ़ियाँ बनी हैं। पानी टप-टप टपकता रहता है। नीचे उतरने पर एक दद्भुत दृश्य देखलाई पड़ता है!
सीढ़ियाँ उतरने पर अंत में गुफा के मध्य एक दरार दिखलाई पड़ती है। जिससे प्रकाश की एक लकीर-सी छन-छन कर आती है। ध्यान से देखने पर सामने डेविस फॉल का गिरता जल प्रपात दिखलाई पड़ता है। पानी कहाँ चला जाता है समझ में ही नहीं आता! चंद्रकांता के तिलिस्म की तरह खिड़की खुलने पर एक दूसरी ही दुनियाँ नज़र आती है। इसे देख कर मात्र मुग्ध हुआ जा सकता है। इस दृश्य को देखकर मुख से बस यही निकलता है..अद्भुत!
काश! माँ सरस्वती मुझे कुछ और शक्ति देतीं कि मैं इस सुंदरता का सही-सही वर्णन कर पाता!
जारी.....