वैसे तो मुझे सभी प्यार करते हैं मगर सबसे अधिक
मच्छर करते हैं। मैं किसी को मच्छर की तरह प्यार नहीं कर पाता। मैं जब भी किसी को
प्यार करने जाता हूँ आदमी बन जाता हूँ। आदमी के घर पैदा होने के बावजूद आदमी बने
रहना मेरी कमजोरी मान लीजिए। वैसे धरती में कई आदमी हैं जो मुझे मच्छर की तरह
प्यार करते हैं मगर मुझे मच्छर का प्यार अधिक अच्छा लगता है। इसके प्यार में कोई
शंका नहीं रहती। जब मुझे प्यार करवाने का मन नहीं करता मैं आसानी से खुद को
मच्छरदानी में छुपा सकता हूँ। आदमी के प्यार में यह सुख नसीब नहीं होता। आदमी जब
प्यार करके उड़ जाते हैं तभी मैं जान पाता
हूँ कि वे मुझे मच्छर की तरह प्यार कर रहे थे!
जैसे मच्छर मच्छर से प्यार नहीं करता वैसे मुझे
लगता है आदमी भी आदमी से प्यार नहीं करता।
मच्छर
आदमी से, आदमी निरीह जानवरों से अधिक प्यार करते हैं। अब आप कहेंगे मच्छर आपको
कैसे प्यार करते हैं? इसका उत्तर बड़ा आसान है। आप एक ही उदाहरण से समझ जायेंगे। जैसे नेता
जनता से प्यार करता है वैसे ही मच्छर मुझसे प्यार करते हैं। एक नेता दूसरे नेता को
शक की नज़रों से देखता है मगर जनता से बहुत प्यार करता है। मुझे ही नहीं आम
आदमियों को भी नेता का प्यार अच्छा लगता है। तभी आम आदमी आजकल नेता बनने की जुगत
में लगे हैं।
लोग जातिवाद और धर्मवाद की दुहाई देते नहीं थकते।
एक दूसरे पर जातिवाद का, धार्मिक पक्षधरता का आरोप लगाते हैं मगर मैं जानता हूँ कि
जैसे मच्छर मच्छर से प्यार नहीं करते, आदमी आदमी से प्यार नहीं करते, नेता नेता से
प्यार नहीं करते वैसे ही कोई जाति अपने जाति से प्यार नहीं करती।
जाति और धर्म का लबादा ओढ़े आदमी साधारण आदमी से कुछ ज्यादा खतरनाक, कुछ ज्यादा
हिंसक हो जाता है। कभी-कभी मुझे शक लगने लगता है कि आदमी अपनी मक्कारी छुपाने और
असुरक्षा के भय से धर्म और जाति का लबादा ओढ़े रहता है। वरना क्या कारण है कि अवसर
मिलते ही अपनी जाति पर भी अमानवीय हरकत करने से बाज नहीं आता?
आपने कौओँ को लड़ते देखा होगा। कुत्तों को एक
हड्डी के लिए आपस में गुर्राते देखा होगा। पंडों को आपस में जजमान के लिए झगड़ते देखा
होगा। इतने उदाहरण होने के बावजूद पता नहीं क्यों लोग एक दूसरे पर जातिवादिता का,
सांप्रदायिकत का आरोप लगाते हैं! जिस्म, भूख और भोजन के बीच परस्पर जो संबंध है,
वही संबंध एक जीव का दूसरे जीव से होता है। आदमी से इतर दूसरे प्रकार के जीव इस
संबंध को खुलेआम उजागर कर देते हैं मगर आदमी नहीं कर पाता। वह सोचता है मैं इन जीव
जंतुओं से महान एक खास जीव हूँ जो सिर्फ खा ने और मैथुन के लिए
नहीं बना है। गर्व कहता है-हम खाने के लिए नहीं जीते, जीने के लिए खाते हैं। मगर
जब करने में आता है तो कभी निठारी, कभी निर्भया कांड कर डालता है! शर्मिंदा भी होता
है। एक पकड़े जाने पर शर्मिंदा होता है, दूसरे जो पकड़े नहीं जाते वे आदमी होने पर
शर्मिंदा होते हैं। झूठ का पकड़ा जाना हमेशा शर्मिंदगी का कारण होता है लेकिन
कभी-कभी अपवाद भी होते हैं। झूठ पकड़े जाने पर भी कुछ लोग स्वीकार करने में पूरी
उमर गुजार देते हैं। कानूनन जब उनका व्यभिचार सिद्ध हो जाता है तो वे स्वीकार करके
दूसरे आरोप से वंचित, इज्जतदार आदमियों पर एहसान करते हैं। कुछ निर्लज्ज मरते दम
तक लड़ते रहते हैं। पकड़े जाने के बावजूद आशा नहीं छोड़ते, जेल में ही राम-राम जपते
रहते हैं। दूसरे जीव इन सभी अपराध बोध से मुक्त हो जीवन का आनंद लेते हैं। न महानता का दंभ भरते हैं न शर्मिंदा होते हैं।
मुझे आदमी से अधिक इन जीव-जंतुओ पर प्यार आ रहा
है। इनकी कथनी और करनी में कोई फर्क नज़र नहीं आता। सांप देखते ही सावधान हो जाता
हूँ, मुर्गा देखते ही लालच लगने लगता है। मुझे खुद से मच्छरों की नीयत साफ़ दिख रही
है। गली के कुत्ते का रोटी के लिए दौड़ना और मोहल्ले में किसी अजनबी के आने पर देर
तक भौंकना याद आ रहा है।
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जानवर इंसानो से बेहतर है क्योंकि उसकी कथनी करनी में अंतर नहीं .... सटीक अभिव्यक्ति
ReplyDeleteमुकदमा होना चाहिये आपके ऊपर मच्छरों के द्वारा सुप्रीम कोर्ट में ।
ReplyDeleteजब देश में जनता के द्वारा अपना ही क़ातिल चुनने की कवायद शुरू हो चुकी है तो ऐसे में आपका यह मच्छर प्रसंग भी कम रोचक नहीं!! सही जा रहे हैं पाण्डेय जी!
ReplyDeleteअपनों पर सितम, गैरों पर करम। आनन्दमय आलेख।
ReplyDeleteमच्छर के प्यार को समझ सकती हूँ, प्यार न होता तो आज यह आलेख उसके नाम न होता और न होती इतनी साफगोई कि साँप देखकर सावधान हो जाते हैं, मुर्गा देखते लालच :)
ReplyDeleteगहरी नजर है आपकीं
ReplyDeleteलाजवाब प्रस्तुति...
ReplyDeleteबढ़िया रहा !
ReplyDeleteबहुत सही पाण्डेय जी।
ReplyDeleteसुन्दर....
ReplyDeleteमच्छर मच्छर से प्यार नहीं करता ?
ReplyDeleteक्यों बदनाम कर रहे हो इनको ? अपनी बात करो तो फिर भी सही है :)
फिर भी -- आदमी सबसे ज्यादा प्यार -- पैसे से करता है ! :)
ReplyDeleteसरदी भर कोहरे पर खूब ठेला गया। अब मौसम है मच्छर संहिता लिखने का! :-)
ReplyDeleteशत शत नमन है आपको इस महान दर्शन के लिए :-)
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