27.2.14

कहाँ है बसंत ?



द़फ्तर जाते हुए
रेल की पटरियों पर भागते
लोहे के घर की खिड़की से
बाहर देखता हूँ
अरहर और सरसों के खेत
पीले-पीले फूल!
क्या यही बसंत है?

भीतर
सामने बैठी
दो चोटियों वाली सांवली लड़की
दरवाजे पर खड़े
लड़कों की बातें सुनकर
लज़ाते हुए
हौले से मुस्कुरा देती है
लड़के
कूदने की हद तक
उछलते हुए
शोर मचाते हैं!
क्या यही बसंत है?

अपने वज़न से
चौगुना बोझ उठाये
भागती
लोहे के घर में चढ़कर
देर तक हाँफती
प्रौढ़ महिला को
अपनी सीट पर बिठाकर
दरवाजे पर खड़े-खड़े
सुर्ती रगड़ते
मजदूर के चेहरे को
चूमने लगती हैं
सूरज की किरणें!
क्या यही बसंत है?

अंधे भिखारी की डफ़ली पर
जल्दी-जल्दी
थिरकने लगती हैं उँगलियाँ
होठों से
कुछ और तेज़ फूटने लगते हैं
फागुन के गीत
झोली में जाता है
हथेली का सिक्का!
क्या यही बसंत है?

द़फ्तर से लौटते हुए
लोहे के घर से
मुक्ति की प्रतीक्षा में
टेसन-टेसन
अंधेरे में झाँकते
नेट पर
दूसरे शहर की
चाल जांचते
मोबाइल में
बच्चों का हालचाल लेते
पत्नी को
जल्दी आने का आश्वासन देते
मंजिल पर पहुँचते ही
अज़नबी की तरह
साथियों से बिछड़ते
हर्ष से उछलते
थके-मादे
कामगार!
क्या यही बसंत है
……………

24 comments:

  1. मुबारक हो बसंत एक्सप्रेस का सफ़र

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  2. बसंत की प्रचलित अवधारणा मन से निकाल कर जो भी शीत से बाहर आता दिखे, उसे बसंत मान लें।

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    1. जो भी शीत से बाहर आता दिखे, उसे बसंत मान लें..वाह!

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  3. नहीं जी बसंत तो पान बेच रहा है अपनी दुकान में चौराहे वाली :)

    बहुत सुंदर बसंत है !!!!

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  4. बैचन आत्मा ने बसंत की आत्मा से मिलन करा दिया ...सही चिंतन दर्शन ! बधाई !

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  5. बसंत के कितने सारे रंग दिखा दिये आपने .....

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  6. वसंत के कितने-कितने रूप -जब जैसा भाए 1

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  7. अभिव्यक्ति का यह अंदाज निराला है. आनंद आया पढ़कर.

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  8. बसंत उत्सव का प्रतिक है :)

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  9. बहुत बढ़िया बसंतके अनेक रंगों की प्रस्तुति !!

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  10. मन में हो बसंत तो कभी और कहीं नहीं होता उसका अंत...

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  11. सृष्टि के जिस सौंदर्य से मन की आँखों को सुकून मिले, वही बसंत है
    बसंत बच्चे की मुस्कान में
    माँ जो नज़र उतारती है - उसमें
    लड़की के ऊँचे सपनों में
    सफलता में
    बसंत .... आपकी हर एक पंक्तियों में

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  12. उत्साह वर्धन के लिए सभी का आभार।

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  13. सुन्दर रचना

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  14. बहुत सुन्दर अभिवयक्ति।

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  15. जीवन के विविध रूपों में प्रकट होता बसंत ..... बहुत सुन्दर | हमारे ब्लॉग पर कुछ चित्र आपकी प्रतीक्षा में हैं :-)

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  16. आदमी को बसंत की अनुभूति होनी बंद हो गई है,नहीं तो प्रकृति बसंत के आने पर विभोर हो उठती है,पेड़ों पर नए-नए हरे-भरे पत्ते निकल आते हैं ,कीड़े-मकोड़े और सांप - बिस्छु जमीन से निकल आते हैं.............अगर बसंत न आये और ठंडा मौसम बना रहे तो सब प्राणी खत्म हो जाएँ.

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