14.6.15

लड़के

एक लड़का
घर के दरवाजे
धूप में खड़ा
घर से निकला दूसरा
हँसते-खिलखिलाते
दोनों
आपस में मिले

दो लड़के
घर के दरवाजे
धूप में खड़े
घर से निकला तीसरा
हँसते-खिलखिलाते
तीनों
आपस में मिले

तीन लड़के
असाढ़ की धूप में
घर के दरवाजे
धूप में खड़े
घर से निकला चौथा
अब चारों
हँसते-खिलखिलाते
आपस में मिले

सभी
पढ़ने वाले
अच्छे लड़के
घर के दरवाजे
सभी के लिए खुले
घर बुलाता.. ...
आओ, बैठो
कुछ खा-पी लो
बैठ कर बातें करो !

चारों लड़के
नहीं चाहते
घर में बैठना
आपस में बतियाते
जाने क्या-क्या
देर तक
धूप में खड़े!

 ...................


16 comments:

  1. क्या बात है...ऐसे ही होते हैं लड़के..निश्चिन्त, अलमस्त।

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  2. लड़कपन की यह निश्चिंतता तो बड़ा होने से रोकती है। सुंदर प्रस्तुति।

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  3. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल सोमवार (15-06-2015) को "बनाओ अपनी पगडंडी और चुनो मंज़िल" {चर्चा अंक-2007} पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक

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  4. .....और एक बड़ा जो दिल से अभी भी लड़का है, इन चारों लड़कों के लड़कपन को देखते हुए.

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  5. लड़कों का कुछ ऐसा ही होता है लड़कपन
    बहुत खूब !!

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  6. हकीकत ब्या करती रचना !
    मेरे ब्लॉग पर आपका स्वागत है
    manojbijnori12.blogspot.com

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  7. वर्तमान में युवा-चरित्र का सही विश्लेषण.

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  8. आज के लड़के हो या लड़कियां लगभग ऐसा ही करते है पर प्रस्तुती जोर दार है

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  9. आज के लड़के हो या लड़कियां लगभग ऐसा ही करते है पर प्रस्तुती जोर दार है

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  10. अपना बचपन याद करें तो शायद वो भी ऐसा ही मिलेगा ... ये रचना भी उन्ही यादों की उपज लगती है ...

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  11. वाह, क्या बात है

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  12. वाह्ह ब्लॉग पर भी लेखन जारी है आपका .

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