ट्रेन आज राइट टाइम है। रोज के यात्रियों में खुशी की लहर है। खिले-खिले मुखड़े चिड़ियों की तरह चहक रहे हैं। सरसों के फूल रोज से अच्छे लग रहे हैं। बस से जाते-जाते ऊब चुके यात्री बहुत दिनों बाद आपस में बतिया पा रहे हैं। गर्मी के मौसम में सही समय चलती ही है मगर आज यह सिद्ध हुआ कि ठंडी के दिनों में भी ट्रेन सही समय चल सकती है। एक का सही होना कितनों के लिये प्रेरणा दायक हो सकता है! यह अलग बात है कि सही चलने के लिए एक को अधिक श्रम करना पड़ता है, अधिक कष्ट उठाना पड़ता है। लगता है ट्रेन यह समझ चुकी है कि रुक-रुक कर खरगोश की तरह आराम करना और रेस हार जाने के बाद जीवन भर कछुये के ताने सुनने से अच्छा है बिना रुके चलते जाना। सभी ट्रेन से प्रेरणा लेकर अपनी चाल सही कर लेते तो अपना देश विकाससील से विकसित राष्ट्र में परिवर्तित हो जाता!
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50 डाउन के जफराबाद प्लेटफॉर्म नम्बर 1 पर आने की घोषणा हो गई। 6 बजकर 35 मिनट होने को हैं। बड़े शहर में किसी झील के किनारे कोई प्रेमी अपनी प्रेमिका से कह रहा होगा-'तुम्हारे शहर का मौसम बड़ा सुहाना लगे, मैं एक शाम चुरा लूँ अगर बुरा न लगे।' यहाँ संजय जी अण्डा खा कर, चाय पी कर, पान घुला कर मस्त हैं।
ट्रेन आई। सभी चढ़ गये। कुछ बैठे, कुछ खड़े रह गये। जो खड़े हैं वे ऊपर जाने की तैयारी कर रहे हैं। ऊपर जन्नत नहीं, खाली बर्थ है। ऊपर जा कर गुमसुम-गुमसुम, टुकुर-टुकुर, नीचे ताक-झाँक रहे हैं। जलालगंज पुल के ऊपर से गुजरी है ट्रेन। रफ़्तार तेज़ थी। पुल आशिक की तरह थरथराया तो जरूर होगा।
ट्रेन जोर-शोर से चलती जा रही है। रोज के यात्री अपने-अपने गोल से बिछड़ कर, थोडा छितरा कर बैठे हैं। जो गोलबंदी कर पाये हैं वे मुद्दे तलाश कर बहस कर रहे हैं। ताजा मुद्दा जिला पंचायत अध्यक्ष के चुनाव परिणाम का है। मुझे देश की राजनीति में कोई रूची नहीं तो जिला पंचायत की राजनैतिक चर्चा कौन सुने? मैं तो बस इतना जनता हूँ कि हम क्या हैं! रहनुमा बदलने से भेड़ बकरियों की किस्मत नहीं बदलती। इनका जन्म ही दुहे जाने या कसाई के हाथों हलाल होने के लिये होता है। सब व्यर्थ की मैं! मैं! है। खाओ पीयो मस्त रहो। मालिक तुम्हें वक्त से पहले मरने नहीं देगा और वक्त आ ही जाय तो हलाल किये बिना छोड़ेगा नहीं। फिर किस बात के लिए मेरा-तेरा? कसाई किसी का भाई नहीं होता। हाँ, भाई कसाई हो सकता है।
कुछ पढ़े-लिखे लोग मोबाइल पर गाना सुना रहे हैं! मैं पूछूँगा-क्यों सुना रहे हो? तो कहेंगे-सुन रहे है, आप भी सुनिए! मैं कहूँगा-अच्छा नहीं लग रहा है तो लम्बा उपदेश देंगे-संगीत से प्रेम करना चाहिये। इससे स्वास्थ ठीक रहता है, दिनभर की थकान मिट जाती है! इससे अच्छा है जब उनसे निगाह मिले तो उनकी तरफ देख कर हौले से मुस्कुरा दिया जाय। वे भी खुश और अपन भी चैन से।
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50 डाउन अमृतसर हावड़ा ट्रेन में आज भी भीड़ है। 72 वर्षीय महिला लाठी टेकते हुये अपना सीट तलाश रही हैं। उनका पोता टी टी से अनुरोध कर रहा है। दोनों का बर्थ दूर-दूर है। टी टी भी सम्पूर्ण मानवीय सम्वेदना प्रकट करते हुये एक एक यात्री से पूछ रहे हैं-कोई अकेले है भाई? एक ने साहिष्णुता दिखाई, बर्थ मिल गई दादी को। अब वो सुकून से हैं। इक दूजे के सहयोग से सभी एडजस्ट हो गये।
रोज के यात्री आज भी छितरा गये। जिसे जहाँ जगह मिली वहीं बैठ गया। एक चाय वाला चीख रहा है-'चाय! बोलो चाय।' मैंने बोला-चाय! वो अब चाय लेकर आ रहा है। मैंने कहा-'मुझे नहीं चाहिए।' लगता है वह नाराज हो गया। भुनभुनाते हुये जा रहा है। कहीं प्रधान मंत्री बन गया तो अपनी खैर नहीं।
सफ़ेद मटर को हरे रंग में रंग कर एक बाल्टी मटर लिए आ रहा है मटर वाला। अजीब आवाज में चीख रहा है-येssहरा बोलिये, मोटरली हरा बोलिये! मैंने बोला-मोटरली हरा! उसने सुना अनसुना कर दिया। समझदार लगता है। अइसे ही लक्ष्य पर दृढ रहा तो तरक्की करेगा। प्रधान मंत्री नहीं तो जिला मंत्री बन सकता है। बस किसी पार्टी से जुड़ जाय।
सामने एक यात्री दुसरे यात्री को आड इवेन नम्बर का कोई जोक वाला वीडियो दिखा रहा है। सीन उनकी आंखें देख रही हैं, जोक्स मुझ तक भी पहुँच रहा है। मुझे सुनकर हंसी नहीं आ रही है, वे देखकर खिलखिला रहे हैं! मतलब सीन में अधिक जान है। अब आवाजें आनी बन्द हो गईं। वे पहले की तरह शरीफ दिखने लगे।
मेरे बगल में एक वृद्ध दम्पति बैठे हैं। सुल्तानपुर बार्डर से आ रहे हैं, गंगा सागर जा रहे हैं। एक दूसरे पौढ़ व्यक्ति किसी दुसरे बर्थ से निकल कर उनके पास आये और पूछने लगे-पांडे नाहीं आयेन ? दम्पति दुखी होकर बोले-पता नाहीं कहाँ चली गयेन! हम बोले-हमहूँ पाण्डे हई दादा, मान लो पांडे आई गयेन! वे हंसकर बोले-नाहीं, ऊ 71 बरस क हयेन, काफी वृद्ध हयेन, पता नाहीं कहाँ रही गयेन।
पता चला वे 10 लोग हैं जो गंगा सागर स्नान के लिए जा रहे हैं। पहली बार जा रहे हैं। पता नहीं है कि हावड़ा से कितनी दूर है 'गंगा सागर'! बस इतना जानते हैं कि गंगा सागर वहाँ है जहाँ गंगा सागर से मिलती हैं। ईश्वर इनकी यात्रा सुखद बनाये। पुण्य का लाभ हो। मैं तो बस इतना जानता हूँ कि गंगा में डुबकी लगाने से आनंद आता है, पाप नहीं कटता।
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रोचक पोस्ट..
ReplyDeleteहर दिन लोहे के घर पर लिखीं बातें संकलन का रूप ले सकें, मन बनायें।
ReplyDeleteसुझाव के लिए आभार। इन्हीं संभावनाओं पर विचार करने के लिए ब्लॉग में पोस्ट करता जा रहा हूँ।
ReplyDeleteyour thoughts are very interesting and knowledge improving ,thanks for sharing with us.
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