नोट बंदी के फैसले के बाद लोहे के घर में बदहवास 500 के पुराने नोट लिये यात्री अब नहीं दिखते। 8 तारीख के बाद तो यह स्थिति थी कि लालच देकर यात्री भिखारी/वेंडरों से छुट्टा मांग रहे थे। एक भिखारी ने तो झटक ही दिया था-हमको बेवकूफ समझे हो क्या?
अब लोग सिर्फ तारीफ करते हुए ही मिलते हैं। बस जरा सा छेड़ दो। बस इतना कहो कि मोदी ने सब सत्यानाश कर दिया। फिर देखो! कैसे लोग आपको समझना शुरू करते हैं। केजरीवाल की तरह कह कर देखो-बहुत बड़ा घोटाला है! सब आप पर टूट पड़ेंगे। कम नोट मिलने से लोग परेशान हैं लेकिन फिर भी गजब का संतोष और खुशी झलकती है चेहरे से। स्लीपर बोगी में चढ़ने वाले ये वो लोग हैं जिन्होंने परेशानी के सिवा कुछ नहीं पाया लेकिन खुश हैं कि जिन्होंने गलत ढंग से बोरियाँ भरी हैं वे मारे गये।
प्रधान मंत्री जी ने बहुत बड़ा ख़्वाब दिखया है लेकिन लोगों को भयंकर कष्ट का भी सामना करना पड़ रहा है। राजनैतिक दलों द्वारा सहयोग के स्थान पर अपनी पूरी ताकत विरोध में झोंक दी है। कुछ चैनल नकारात्मक खबरें अधिक परोस रहे हैं। सबकी मंशा यही लगती है कि आम आदमी तकलीफों से झुंझलाकर बगावत कर दे। समर्थन के स्थान पर विरोध करना शुरू कर दे। फैसला वापस लेना पड़े। दूसरी तरफ फैसला वापस लेने का मतलब मोदी जी का राजनैतिक सन्यास। फैसला वापस लेने का मतलब है लोगों के ख्वाबो का टूटना। जब ख़्वाब टूटते हैं तो दिल भी टूटते हैं। टूटे आदमियों की आँखों में नये ख़्वाब नहीं तैरते। कुल मिलाकर भारत एक कुरुखेत्र के मैदान में खड़ा है। जारी है संघर्ष। देखें..आम आदमी बच पाता है या ...मोदी जी के साथ आम आदमी भी टूट जाता है। अभी तो दांव पर आम आदमी ही लगा है। एक लाइन याद आ रही है...
जितने ऊँचे ख़्वाब दिखाओगे राजा, उतनी गहरी चोट लगेगी सीने में।
हमारी इच्छा है कि सत्ता हारे या विपक्ष आम आदमी टूटने न पाये। आखिर सभी आम आदमी के लिए ही तो परेशान हैं।
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भंडारी स्टेटशन पर #एटीएम आज भी चालू था। मात्र 10-12 लोग खड़े थे। अपनी #ट्रेन एक घण्टे लेट थी। समय ही समय था। मैंने सोचा आराम से 2000/- निकाल सकता हूँ। तभी याद आया...मैंने कल ही #जीन्यूज की रिपोर्टिंग देखी थी जिसमें एक गरीब चौकीदार गुल्लक फोड़कर निकाले 3000/-में से फुटकर 1500/-रुपये जिसमें 100,50,20,10 के नोट थे बैंक में जा कर इसलिए जमा कर देता है कि दुसरे जरूरत मंदों को मिल जाय।
मेरे मन में भी ख्याल आया... मुझे पैसे की अभी कोई ख़ास आवश्यकता तो है नहीं, क्यों निकाला जाए? मैंने लाइन लगाने का विचार त्याग दिया। दस रुपये का चीनीयाँ बादाम खरीदा और फोड़-फोड़ कर खाते हुये लोगों को पैसा निकालते और खुश होकर लौटते देखने लगा।
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मुझे नहीं लगता कि जितने पुराने नोट थे उतने ही नये नोट न छपे होने से भयभीत होने की जरूरत है। सभी नोट एक साथ प्रचलन में नहीं होते। प्रचलन में जितनी आवश्यकता होती है उतने छप चुके हैं। नोट कम देने का उद्देश्य भी यही लगता है कि लोग आवश्यकता के अनुरूप निकालें और बिना भय के खर्च करें। पूरे नोट छप जाते, ए टी एम सभी दुरुस्त हो जाते तब नोट बदलने की सोचते तो तब तक गोपनीयता भी नहीं रहती। 2000 के नोट छप रहे हैं यह जानकारी तो अखबार को हो ही गई थी। पुराने नोट बेकार हो जाएंगे यह भी जान जाते तो नोट बदलने का उद्देश्य कभी सफल न होता। मुझे तो जो प्रक्रिया सरकार ने अपनाई है वही बेस्ट विकल्प लगता है।
जनता को तकलीफ तो होनी ही थी। तकलीफ कम होती अगर सभी एक स्वर से साथ देते और इस पर राजनीति न होती। जितना विपक्ष राजनीति करता रहा, उतना ही मोदी जी आक्रामक होते गये। यह उनका अंदाज है जिसे आप जो नाम दें लेकिन शतरंज का खिलाड़ी होने के नाते मैं जानता हूँ कि अटैक इज द बेस्ट डिफेन्स।
एक चूक मुझे जो लगती है वह है समय का चुनाव। समय चुनते वक्त चार राज्यों में होने वाले चुनाव का नहीं, शादियों के मौसम और बोआई का ध्यान रखा जाना चाहिये था। एक महीने बाद या दो महीने पहले का समय अधिक उपयुक्त होता। विपक्ष को सरकार से यह प्रश्न पूछना चाहिए न कि विरोध के लिए विरोध करना चाहिए।
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#ट्रेन में फिर नोट बंदी की चर्चा। सुनते-सुनते कान पक गये। लोग बता रहे हैं किस नेता को नींद नहीं नहीं आ रही। किसने किस विभाग में कितना दबाव बनाया नोट बदलने के लिये। कौन नेता जोकरी कर रहा है, कौन हुकुर-हुकुर रो रहा है। लोग यह भी बता रहे हैं अब बैंक, एटीएम की लाइन बहुत कम रह गई। बहुत उत्साह है लोगों में। तरह-तरह के लोग तरह की बातें। इनको सुन कर किसी का नाम नहीं लिया जा सकता। कोई प्रमाण नहीं अपने पास। आम आदमी कह रहे है नेता रो रहे, उधर संसद में नेता कह रहे आम आदमी मर रहा। ये लोग पक्का झूठ बोल रहे होंगे। सही तो संसद में नेता लोग बोल रहे होंगे। बहुत कन्फ्यूजन है। सब #भक्त लग रहे हैं! लगता है ट्रेन से उतर कर दिया लेकर ढूंढना पड़ेगा विरोधियों को। जनता का दर्द जानने के लिए #ndtv देखना पड़ेगा या केजरी वाल जी का भाषण सुनना पड़ेगा। सबसे बड़ा, हिटलर और आतंकवादी जानने के लिये कांग्रेस के नेताओं को सुनना पड़ेगा। ये #लोहेकेघर के यात्री तो सभी #मोदी भक्त लगते हैं।
:) :) :)
ReplyDeleteहर क़दम की जाँच होनी चाहिए कि नहीं ? ८ नवेम्बर से पहले नोट बदलने वाली ख़बर कुछ पेपर मे कैसे आए ?
ReplyDeleteइतने सारे नये नोट छप गये थे ,सब गोप्यरूप से हो गया ? I think enquairy should must be done.