20.11.16

नोट बंदी से निकले दोहे


उजला काला हो गया, बंद हुआ जब नोट.
झटके में जाहिर हुआ, सबके मन का खोट..


चलते-चलते रुक गया, अचल हुआ धन खान.
हाय! अचल धन पर गड़ा, मोदी जी का ध्यान..


जोर-जोर से हो रहा, चोर-चोर का शोर.
कोई काजल चोर है, कोई अँखिए चोर..


लोभ लपक बच्चा बढ़े, बूढ़ा पकड़े मोह।
निरवंशी घातक बड़ा, व्यापे लोभ न मोह।।

दो पैग ने भुला दिया, मोदी जी का चोट.
चिल्लर-चिल्लर हो गया, दो हजार का नोट..


बिटिया की शादी पड़ी, सब प्रमाण तू ले.
ले! शादी का कार्ड ले, नयकी नोटिया दे..


चीर-फाड़ का दर्द है, अपनी आँखें मींच.
देख न अँधियारा सदा, उगता सूरज खींच..


सेवा बदले कर रहे, सोच-सोच कर चोट.
फिर जग में जाहिर हुआ, वाम सोच में खोट..


राजा चलनी तेज कर, ले ले सबकी वाह!
गेहूँ साथै घुन पिसे, मुख से निकसे आह!

......


8 comments:

  1. राजा जी बहुते तेज चले...उम्दा दोहे...

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  2. बहुत निकले तेरे अरमाँ मगर कम निकले (अरमाँ = दोहे :) ))

    हा हा ।

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  3. आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" सोमवार 21 नवम्बर 2016 को लिंक की गई है.... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  4. इन दोहों को टुकड़ों में पढने का सौभाग्य मुझे मिलता रहा है... कभी कुछ कहा भी था प्रत्युत्तर में अपने दोहे के मार्फ़त... लेकिन आपके दोहे आज की घटनाओं का आईना हैं. देश की हालत कमाल बयान की है आपने. टॉप ऊपर!! हैट्स ऑफ!!

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  5. वाह रहीम खानखाना जी, क्या खूब खनकते दोहे लिखे हैं!!

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  6. यही है जो सबके मन में है

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  7. नये कबीर का जन्म हो रहा है ।

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