बच्चों बताओ! बजट कौन बनाता है? कक्षा के सभी बच्चों ने उत्तर दिया-वित्त मंत्री । मगर एक ने हाथ उठा कर कहा-गृह मंत्री! उत्तर सुनते ही गुरूजी म्यान से बाहर! गृह मंत्री वाला जवाब उनकी कुंजी में नहीं था जिससे वो पढ़ाते थे और न उस तंत्र के पास था जिसने उन्हें गुरूजी बनाया था। सजा सुना दिया-दोनों हाथ उठाकर बेंच्च पर खड़े हो जाओ! लड़का विरोध में उस रिक्शे वाले की तरह हकलाने लगा जिसकी हवा बीच सड़क सिपाही निकाल दे-म..म..गर गुरूजी.. मैं..मैं..स..ही..। बच्चों के ठहाकों के बीच गुरूजी दारोगा की तरह गर्जे-चोप्प! कक्षा में ठहाके लगा रहे बच्चे गुरूजी का असली रूप देख, सहम कर चुप हो गये। कुछ देर बाद फिर खुसुर-पुसुर शुरू हुई। मॉनीटर ने खड़े होकर अनुरोध किया-'उसका जवाब तो सुन लीजिये गुरु जी!' दूसरे बच्चों में उम्मीद की किरण जागी। गुरूजी ने दोनों हाथ हवा में लहराया। बायें से मानीटर को बिठाया और दायें से लड़के को बोलने के लिये ललकारा-बक्को!
लड़के ने उत्तर दिया -देश का बजट कौन बनाता है यह तो सभी जानते हैं मगर घर का बजट गृह मंत्री बनाती हैं। यह बात मुझे पिताजी ने बताई थी। गलत है क्या सर? लड़के की मासूमियत ने गुरूजी के हृदय को छीलकर मुलायम कर दिया। हँसते हुए कहा-बैठो-बैठो। कक्षा में गुरूजी का और घर में बाउजी का हँसना माहौल को खुशनुमा बनाता है। गुरूजी की एक हंसी पर सभी मुर्झाये फूल झूम कर खिल उठे।
बच्चों की ये बातें तो मजाक में कही गयीं मगर इन बातों से एक बात यह समझ में आती है कि देश का बजट देश के वित्त मंत्री और घर का बजट घर की मालकिन बनाती हैं. साधारण शब्दों में कहें तो बजट का अर्थ होने वाली आय और किये जाने वाले खर्चों का पूर्वानुमान है. देश का बजट साल में एक बार और घर का बजट हर माह बनता है. यह पति के आय और गृहणी की कुशलता पर निर्भर करता है. जैसे भ्रष्टाचारी काला धन विदेशों में या पाताल खातों में जमा करते हैं वैसे ही महिलायें हर माह होने वाले आय का पहला हिस्सा गुप्त पोटली में जमा करती हैं और घर में आने वाले किसी बड़े आफत के समय साक्षात लक्ष्मी बन मुस्कुराते हुए प्रकट होती हैं! यह गुण भ्रष्ट नेताओं में नहीं पाया जाता. देश पर आने वाले आफत के समय ये बगलें झाँकने लगते हैं. छापे के समय ही इनकी कलई खुल पाती है. घर के बजट में महिलाओं का ध्यान सबसे पहले घर में राशन-पानी भरने में लगा रहता है. बच्चों की आवश्यकताओं के बाद उन पर ध्यान जाता है जिसके कठिन श्रम से प्रति माह घर में पैसा आता है. अक्सर वहां तक आते-आते धन ख़तम हो जाता है. बजट बनाने वाले के हिस्से में तो कुछ भी नहीं बचता. वे अपनी जरूरतों के लिए अतिरिक्त धन की मांग करती हैं और इन्हें नेताओं की तरह आश्वासन के सिवा कुछ नहीं मिलता. देश का बजट बनाने वाले भी इसी त्याग की भावना से देश का बजट बनायें तो कितना अच्छा हो!
देश का बजट बनाते समय सिर्फ पूर्वानुमान ही नहीं बल्कि लक्ष्य और उद्देश्य को भी ध्यान में रखना होता है. जिसे परफार्मेंस बजट या निष्पादन बजट कहते हैं. जनता का पैसा जनता के विकास में इस प्रकार लगाना कि देश के हित के साथ-साथ चुनाव के पूर्व किये गए वादे पूरे होते दिखाई दें यह वित्त मंत्री की आर्थिक नहीं राजनैतिक कुशलता पर भी निर्भर करता है. जनता से घुमा फिर कर कई प्रकार से टैक्स के रूप में लिए गए धन को देश हित में खर्च करना होता है. 'तेरा तुझको अर्पण, क्या लागे है मेरा!' वाले भाव में वित्तीय और राजनैतिक कुशलता झलके तो विपक्ष भले कोसे मगर पार्टी के लोग खुश हो जाते हैं. बजट के प्राविधान के साथ इसको क्रियान्वयन की व्यस्था भी पारदर्शी होनी चाहिये.अक्सर देखा गया है कि आम आदमी तक आते-आते उनके लिए आवंटित धन चुक जाता है. दुष्यंत कुमार ने इस दर्द को कुछ यूं बयां किया है.."यहाँ तक आते-आते सूख जाती हैं सभी नदियाँ, मुझे मालूम है पानी कहाँ ठहरा हुआ होगा!"
जैसे ही बजट की घोषणा होती है लम्बे बजट की मोटी-मोटी बातें जानकर सरकार के पक्षकार वाह! वाह! तो विरोधी हाय! हाय! करने लगते हैं. सरकार कितना ही अच्छा बजट पेश करे विरोधी को हाय-हाय करना है. विरोधी जब सरकार में आ जाते हैं तो लोगों के रोल बदल जाते हैं. हाय-हाय करने वाले वाह-वाह और वाह-वाह करने वाले हाय-हाय करने लगते हैं. सरकारी कर्मचारियों की नजर आयकर में मिलने वाले छूट पर होती है. सरकारी कर्मचारी हर साल चाहते हैं कि उनकी आय अधिक से अधिक बढ़े और आयकर कम से कम लिया जाय. हर साल आय में वृद्धि होती है और हर साल छूट की दर बढ़ती जाती है. सरकारें भी जीत कर आने के शुरू के वर्षों में अंगूठा दिखाने और मुँह चिढ़ाने वाला और चुनाव वर्ष से ठीक पहले आय में अधिक छूट देते हुए लोक लुभावन बजट पेश करती है.
आजकल आभासी दुनियाँ का बाजार प्रिंट मीडिया से तेज खबर देता है. इन पर भरोसा करना खतरे से खाली नहीं. अभी कुछ दिन पहले वाट्स एप में, आयकर में भारी छूट का मैसेज आया। पढ़ते ही लगा कि कोई #मामा बना रहा है। सरकार और इतनी उदार! कभी हो ही नहीं सकता। फिर याद आया कि 5 राज्यों में चुनाव होने वाला है, कौन जाने खबर सच ही हो! मन लड्डू बनाता, दिमाग फोड़ देता। हकीकत तो बजट आने के बाद ही पता चलेगा कि सच क्या है मग़र जिसने भी यह हवा उड़ाई है वो बड़ा शातिर है। सरकार के विरुद्ध राजनीति कर रहा है। इससे कम छूट मिला तो सरकार छूट देने के बाद भी आलोचना का शिकार होगी कि क्या देने वाले थे, क्या दिये! छूट मिला ही नहीं तो और बुरा होगा! आरोप लगते देर नहीं- सरकार तो बड़ी जालसाज निकली! ये भी कोई बजट है!