2.12.17

सुबह की बातें-6

साइकिल ले कर भोर में सैर को निकला तो मॉर्निंग हो ही रही थी और थोड़ा गुड-गुड लगना शुरू ही हुआ था।  पूरा गुड लगता कि सजे हुए मैरिज लॉन दिखने लगे। भीगी_पलकें का समय था। बिदाई की बेला थी। घर की अजोरिया परायों की होने वाली थी। अपना भी मन शोकाकुल हो इससे पहले तेज पैडिल मार कर आगे बढ़ गया। आगे दूसरा मैरिज लॉन दिखा। दरवाजे पर कुत्ते ही दिखे, पलकें भीतर भीगी हो रही होंगी। आगे पान की दुकान पर साइकिल खड़ी कर पैदल पैदल हो गया। पान वाले ने तपाक से उंगली करी..के के बोट देहला? हमने भी उंगली दिखाई.. जेहके देहले होई, जाई त तोहरे में! पता नहीं क्या समझा, जोर से ठहाके लगाने लगा। पता नहीं अपनी हर सही बात को लोग व्यंग्य क्यों समझ लेते हैं!

अब मॉर्निंग हो चुकी थी। सड़क की मरकरी लाइट के बिना भी लोग दिखने लगे थे। पटरी पर एक ठेले के पीछे तीन बुढ़िया मूंगफली बीन रही थीं। जमादार झाड़ू से धूल उड़ा रहा था। दो लड़के सड़क के किनारे खड़े हो सूखे पत्ते जला कर धुआँ उड़ा रहे थे। मॉर्निंग बैड हो, फेफड़ों में धूल घुसे इसके पहले नकपट्टी चढ़ा लिया। धूल/धुएं के पीछे लोग मॉर्निंग वॉक/जॉगिंग कर रहे दिखे।

बुद्ध_मन्दिर का द्वार खुल चुका था। ज्ञान लेने वालों को पंक्तिबद्ध लाइन में खड़ा कर हांकता, ज्ञान देने वाला अनुशासित हो कर मन्दिर में प्रवेश कर/करा रहा था। हम दोनों से बच कर, बगल से निकल लिए। आजकल इसी में बुद्धिमानी है। ज्ञान देने और लेने वालों से बच गए तो समझो आप बड़े भाग्यशाली हैं।

भगवान बुद्ध की मूर्ति चमक रही थी। फूल हंस रहे थे। हम आगे बढ़े तो पंक्ति में वर्षों से खड़े अशोक के कटिंग किए हुए छतरी आकार के बूढ़े वृक्ष हवा के झोंके लेते मिले। हलकी सी भी हवा चलती है तो पीपल के पत्ते बच्चों की तरह खुश हो, ताली पीटते से दिखते हैं लेकिन अशोक बड़के ज्ञानी की तरह अविचलित जस के तस खड़े रहते हैं। अक्सर ऐसा ही होता है। ज्ञानी बच्चों की तरह मिलते हैं, बुद्धिजीवी अकड़े-अकड़े।

अशोक के नीचे पत्थर के बेंच पर बैठे बूढ़े घूम घाम, थक थुका कर आपस में बतियाते दिखे। एक बूढ़ा झगड़ालू  महिला की तरह हाथ नचाकर कुछ कह रहा था बाकी लाचार पुरुष की तरह सुन रहे थे।

लॉन में बने मंच का प्रयोग स्थानीय युवा सुबह योग के लिए करते हैं। उसमें दरियां बिछाई जा रही थीं। हीरन पार्क के बगल वाला नहर नुमा तालाब मरम्मत के बाद सूखा पड़ा था। कमल उखाड़े जा चुके थे। जमीन दरकने लगी तो तालाब के सड़ रहे, ठहरे पानी को बदलने की आवश्यकता महसूस हुई होगी। नई जमीन पर नए पौधे लगेंगे तो यह चमन और भी खूबसूत होगा। यह बात सभी समझते हैं।

भगवान बुद्ध के उपदेश स्थल का चक्कर लगाते देखा बुद्ध और उनके पांचों शिष्य हमेशा की तरह मूक बैठे हैं। मूर्तियां बोल नहीं सकतीं पर इन्हे देख ऐसा लगता है कि कभी बुद्ध ने बोला होगा, कभी शिष्यों ने सुना होगा। आज भी गुरु बोलते हैं, शिष्य सुनते हैं मगर दुनियां पहले से अधिक दुखी है! कहीं ऐसा तो नहीं कि हमने बुद्ध के उपदेशों को एक कान से सुना और दूसरे से निकाल दिया! या फिर बुद्ध ने कहा कुछ और हमने कुछ और ही समझ लिया! कुछ तो लोचा है।

बुद्ध मन्दिर से लौटते समय जैन मन्दिर के विशाल चिर युवा बरगद की याद आई। सोचा चलकर उन्हें प्रणाम करते हैं और चिर युवा रहने का मंत्र पूछते हैं। आखिर कब तक नहीं बताएंगे? हाय! मन्दिर का द्वार ही अभी बन्द था। यहां लोग कम आते हैं शायद इसीलिए जाड़े में पुजारी जी ने भी सूर्योदय के हिसाब से समय बदल दिया होगा। जब खुद भूख लगे, प्रसाद चढ़ाओ। पत्थर की मूर्तियां कुछ खाती थोड़ी न हैं, वे तो भाव की भूखी हैं।

सारनाथ के धमेख स्तूप वाले खंडहर पार्क का द्वार खुल चुका था। अंदर घुसा तो खंडहरों के उस पार धमेख स्तूप के पीछे सूर्यदेव निकलते दिखे। मैंने प्रणाम किया और मोबाइल से उनकी तस्वीर ले ली। मुझे लगा अपनी सुबह की पूजा संपन्न हुई। एक चक्कर लगा कर जब स्तूप के पास पहुंचा तो भक्त पूजा/ध्यान में लीन दिखे। एक पहले से तैयार फोटोग्राफर भक्तों की हर एंगिल से तस्वीरें खींच रहा था। भक्त श्रद्धा भाव से कुछ मंत्र भी पढ़ रहे थे। मेरे दुष्ट मन को लगा वे कह रहे हैं.. खींच मेरी फोटो! खींच मेरी फोटो!

यहां से निकलकर अडी में हर हर महादेव हुआ, चाय पान हुआ और कोई खास बात नहीं हुई। साइकिल उठाया, नकपट्टी चढ़ाया और बिटिया की लेडिज साइकिल के हैंडिल कैरियर में गोभी के दो ताजे फूल रख कर घर वापस आ गया। अपनी उम्र अब गुलाब के फूल लेकर जाने वाली नहीं रही।

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