उस गली से
लगते थे नारे..
दो बैलों की जोड़ी है
एक अंधा एक कोढ़ी है।
इस गली से
लगते थे नारे...
जिस दिये में तेल नही है
वह दिया बेकार है।
पता नहीं
वे गर्मियों के दिन थे या जाड़े के
पर याद है
हम भी
निकलते थे घर से
इन्कलाब जिंदाबाद को
तीन क्लास जिंदाबाद कहते हुए
बनारस की गली में।
............................
लगते थे नारे..
दो बैलों की जोड़ी है
एक अंधा एक कोढ़ी है।
इस गली से
लगते थे नारे...
जिस दिये में तेल नही है
वह दिया बेकार है।
पता नहीं
वे गर्मियों के दिन थे या जाड़े के
पर याद है
हम भी
निकलते थे घर से
इन्कलाब जिंदाबाद को
तीन क्लास जिंदाबाद कहते हुए
बनारस की गली में।
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