ढेरा सारा
दाल-भात, साग-सब्जी खाकर
मस्त सांड़-सा
खिड़की के पास
पसर जाता था तोंदियल
भरता रहता था
जोर-जोर खर्राटे
पास बैठी उसकी पत्नी
निरीह गाय-सी
घुमाती रहती थी
गोल-गोल
घिर्रीदार हाथ का पंखा
पर्दा हटाकर
खिड़की से घर में
झांकना चाहता था
पूरा शहर
झांक पाते थे मगर
कुछ मेरी ही उम्र के
शरारती बच्चे
गर्मी की दोपहरी में
बनारस की गली में।
...............
दाल-भात, साग-सब्जी खाकर
मस्त सांड़-सा
खिड़की के पास
पसर जाता था तोंदियल
भरता रहता था
जोर-जोर खर्राटे
पास बैठी उसकी पत्नी
निरीह गाय-सी
घुमाती रहती थी
गोल-गोल
घिर्रीदार हाथ का पंखा
पर्दा हटाकर
खिड़की से घर में
झांकना चाहता था
पूरा शहर
झांक पाते थे मगर
कुछ मेरी ही उम्र के
शरारती बच्चे
गर्मी की दोपहरी में
बनारस की गली में।
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