26.9.09

फाइलें

फाइलें
टेबुल पर
बैठी नहीं रहतीं
आधिकारियों के घर भी
आया जाया करती हैं।
अलमारियों में जब ये बंद रहती हैं
अक्सर आपस में
बतियाया करती हैं।

एक पतली फाइल ने मोटी से कहा-
"यह क्या हाल बना रक्खा है, कुछ लेती क्यों नहीं !
धीरे-धीरे रंग-रूप खोती जा रही हो
देखती नहीं,
रोज मोटी होती जा रही हो।
मोटी फाइल ने एक लम्बी सांस ली और कहा-

"ठीक कहती हो बहन
मैं जिसकी फाइल हूँ
वह बी०पी०एल० कार्डधारी
एक गरीब किसान है
आर्थिक रूप से भरे विकलांग हो
किंतु विचारों से
आजादी से पहले वाला
वही सच्चा हिन्दुस्तान है।

धीरे-धीरे
कागजों से पट गई हूँ मैं
देखती नहीं कितनी
फट गई हूँ मै।
तुम बताओ
तुम कैसे इतनी फिट रहती हो ?
सर्दी-गर्मी सभी सह लेती हो
हर मौसम में
क्लीनचिट रहती हो!

पतली फाइल बोली-
मैं जिसकी फाइल हूँ
वह बुध्दी से वणिक
कर्म से गुंडा
भेष से नेता
ह्रदय का शैतान है
उसकी मुट्ठी में देश का वर्तमान है
वह आजादी से पहले वाला हिन्दुस्तान नहीं
आज का भारत महान है।

मैं भींषण गर्मी में 'सावन की हरियाली' हूँ
घने बरसात में 'फील-गुड' की छतरी हूँ
कड़ाकी ठंड में 'जाड़े की धूप' हूँ।
मैं भूखे कौए की काँव-काँव नहीं
तृप्त कोयल की मीठी तान हूँ
मैं टेबुल पर बैठी नहीं रहती
क्योंकि मैं ही तो सबकी

आन-बान-शान हूँ।

13 comments:

  1. वाह .......... . कमाल की अभिव्यक्ति है ......... फाइलों की गुफ्तागो सच बयान कर रही है ......... जीवन का कडुवा सत्य ......

    ReplyDelete
  2. Vah kya baat hai. Aapne to chand lino me poore desh ki sachchi tasveer kheench di. Lekin jab tak aap jaise logon ke man me ye bechaini rahegi kal achchi subah ki ummed baki hai

    ReplyDelete
  3. मैं जिसकी फाइल हूँ

    वह बी०पी०एल० कार्डधारी

    एक गरीब किसान है

    आर्थिक रूप से भरे विकलांग हो

    किंतु विचारों से

    आजादी से पहले वाला

    वही सच्चा हिन्दुस्तान है।

    बहुत खूब......!!

    कमाल की लेखनी .....!!

    ReplyDelete
  4. बहुत बढ़ियां...
    ऐसे ही लिखते रहियें.
    पढ़कर अच्छा लगा पहली ही बार में अपना पाठक बना लिया.

    ReplyDelete
  5. अब आया पतली और मोटी फाइलों का चक्कर समझ में..........
    फाइलों की भाषा की डिग्री किस विश्वविद्यालय से मिलती है, ज़रा हमें भी बताये ताकि हम भी उनकी बातें सुन और समझ पाएं......

    इस रचना की जितनी भी तारीफ की जाये कम है बहुत ही बेहतरीन रचना है.

    चन्द्र मोहन गुप्त
    जयपुर
    www.cmgupta.blogspot,com

    ReplyDelete
  6. चंद्र मोहन जी-
    यह तो बेचैन आत्मा ही समझ सकती है। इसके लिए आपको भी बेचैन आत्मा बनना पड़ेगा।

    ReplyDelete
  7. मेरे ब्लॉग पर आने के लिए और टिपण्णी देने के लिए बहुत बहुत शुक्रिया! विजयादशमी की हार्दिक शुभकामनायें!
    मुझे आपका ब्लॉग बहुत अच्छा लगा! बहुत ही ख़ूबसूरत और शानदार रचना लिखा है आपने जो काबिले तारीफ है!

    ReplyDelete
  8. फाइलों की चर्चा के बहाने व्यवस्था की पोल खोलने हेतु साधुवाद.

    ReplyDelete
  9. bahut hin badhiyan...sabhi bechain aatma ke dil ki baat aapne rakh di hai...

    ReplyDelete
  10. aap ki kabita bahut hi aachhi hai.
    Yah anubhav per aadharit hai. Aap ishi tarah likhate rai. Yahi meri ishwar se prathana hai.

    Pramod Kumar Gupta
    Asst. Commissioner Sale tax
    Bihar, Patna

    ReplyDelete
  11. aapkee lekhani esi tarah chalti rahe

    ReplyDelete
  12. ये रचना मैंने पहले भी कहीं पढ़ रखी है , शायद यही आपकी पहली रचना है जिसे मैंने पढ़ा है , शायद परिकल्प्ना ब्लोगोत्सव पर |
    खैर बहुत सुन्दर तरीके से अपनी बात कही गयी है |

    सादर

    ReplyDelete