नदी
अब वैसी नहीं रही
जैसी बन गई थी तब
जब आई थी बाढ़
वैसी भी नहीं रही
जैसी हो गई थी तब
जब हुआ था
देश का विभाजन
वैसी भी नहीं
जब पड़ोसी देश से
एक मुठ्ठी भात के लिए
आए थे शरणार्थी
वैसी भी नहीं
जब लगा था आपातकाल
या चला था
ब्लू स्टार ऑपरेशन
और वैसी भी नहीं
जब हुआ था
सन 84 का कत्लेआम
या फिर
अयोध्या में
निर्माण के नाम पर विध्वंस
अब तो
पुल बनकर जमे हैं
नदी के हर घाट पर
इसके ही द्वार बहा कर लाये गये
बरगदी वृक्ष !
जिसके हाथ पैर की उँगलियों में फंसकर
सड़ रहे हैं
न जाने कितने
मासूम
भौंक रहे हैं
पास पड़ोस के कुत्ते
फैली है सड़ांध
रुक सी गई है
नदी की सांस
मगर भाग्यशाली है नदी
आ रहे हैं
आमरण अनशन का संकल्प ले
कुछ गांधीवादी
धीरे-धीरे
काटकर जड़ें
मुक्त कर देंगे नदी को
बह जायेंगे शव
लुप्त हो जायेंगे पापी
वैसे ही
जैसे लुप्त हो गये
गिद्ध
गहरी सांस लेकर
अपनी संपूर्ण निर्मलता लिए
बहने लगेगी नदी
मगर क्या
नहीं बन जायेगी वैसी ही
जैसी बन गई थी तब
जब आई थी बाढ़ ?
..........
गिरगिट कहीं की....!
------------------------
अब वैसी नहीं रही
जैसी बन गई थी तब
जब आई थी बाढ़
वैसी भी नहीं रही
जैसी हो गई थी तब
जब हुआ था
देश का विभाजन
वैसी भी नहीं
जब पड़ोसी देश से
एक मुठ्ठी भात के लिए
आए थे शरणार्थी
वैसी भी नहीं
जब लगा था आपातकाल
या चला था
ब्लू स्टार ऑपरेशन
और वैसी भी नहीं
जब हुआ था
सन 84 का कत्लेआम
या फिर
अयोध्या में
निर्माण के नाम पर विध्वंस
अब तो
पुल बनकर जमे हैं
नदी के हर घाट पर
इसके ही द्वार बहा कर लाये गये
बरगदी वृक्ष !
जिसके हाथ पैर की उँगलियों में फंसकर
सड़ रहे हैं
न जाने कितने
मासूम
भौंक रहे हैं
पास पड़ोस के कुत्ते
फैली है सड़ांध
रुक सी गई है
नदी की सांस
मगर भाग्यशाली है नदी
आ रहे हैं
आमरण अनशन का संकल्प ले
कुछ गांधीवादी
धीरे-धीरे
काटकर जड़ें
मुक्त कर देंगे नदी को
बह जायेंगे शव
लुप्त हो जायेंगे पापी
वैसे ही
जैसे लुप्त हो गये
गिद्ध
गहरी सांस लेकर
अपनी संपूर्ण निर्मलता लिए
बहने लगेगी नदी
मगर क्या
नहीं बन जायेगी वैसी ही
जैसी बन गई थी तब
जब आई थी बाढ़ ?
..........
गिरगिट कहीं की....!
------------------------
वाह क्या बात है। बहुत खूब।
ReplyDeleteबहुत सुंदर,आभार.
ReplyDeleteबहुत गहन बात ... एक बार तो कचरा बहा कर ले ही जाए नदी ..
ReplyDeleteबह चले तो माने . अभी तो बहुते क्षीण आस है .
ReplyDeleteAji jo bach gaye hain --- unko magarmachchh kahin ka kahiye na...
ReplyDeleteभाग्यशाली है नदी
ReplyDeleteआ रहे हैं
आमरण अनशन का संकल्प ले
कुछ गांधीवादी
धीरे-धीरे
काटकर जड़ें
मुक्त कर देंगे नदी को
बह जायेंगे शव
लुप्त हो जायेंगे पापी
वैसे ही
जैसे लुप्त हो गये
गिद्ध
गहरी सांस लेकर
अपनी संपूर्ण निर्मलता लिए
बहने लगेगी नदी... kitna kuch samet liya
बेहद गहन अभिव्यक्ति।
ReplyDeleteआपकी रचना आज तेताला पर भी है ज़रा इधर भी नज़र घुमाइये
http://tetalaa.blogspot.com/
bahut khub sir ji...
ReplyDeletejai hind jai bharat
नदी
ReplyDeleteअब वैसी नहीं रही
जैसी बन गई थी तब
जब आई थी बाढ़
नदी के लिए गिरगिट की उपमा...बहुत खूब...लाजवाब...
bahut gahari bat behad saralta se kai hai aapne,bahut badhiya.aapko badhai
ReplyDeleteह्रदय के गहन एवं व्याकुल भावों की मार्मिक व प्रवाहमयी प्रस्तुति .....बिलकुल नदी के प्रवाह जैसी
ReplyDeleteइसको क्या कहें नदी की पीड़ा अथवा मानव की लापरवाही ..... बहुत प्रभावी .....
ReplyDeletenadiyan girgit बनी नहीं , बनाई गई हैं ।
ReplyDeleteवैसे यह खूबी तो नेताओं में होती है ।
गहन अभिव्यक्ति ।
बड़ी गहरी अभिव्यक्ति।
ReplyDeleteबेहद भावमयी और खूबसूरत अभिव्यक्ति. आभार.
ReplyDeleteसादर,
डोरोथी.
क्या कहने! आस निरास और जीवन का पूरा फलसफा लिए एक अभिव्यक्तिपूर्ण कविता !
ReplyDeletehmm.....बहुत गहन अभिव्यक्ति।
ReplyDeleteगहन अभिव्यक्ति.... खूब बिम्ब चुना आपने...
ReplyDeleteचकाचक है लेकिन गिरगिट और नदी में यह अंतर है कि गिरगिट अपने आप रंग बदलता है जबकि नदी का रंग लोग बदलते हैं। :)
ReplyDeleteउस नदी की कल्पना ही कीजिये बस
ReplyDeleteबहुत सुन्दर आशावादी कविता है.यैसा ही हो,सब पापी बह जायें,मगर फिर न जन्में.
ReplyDeleteमगर दो बातें मुझे ठीक नहीं लगीं-१)पापीयों की गिद्ध से तुलना,गिद्ध तो बहुत आवश्यक प्राणी हैं पर्यावरण के लिये,वो लुप्त हो गये हैं तो उन्हें बचाना चाहिए.वो वातावरण की सफाई करने का आवश्यक काम करते है.२)नदी को गिरगिट कहना भी कुछ जमा नहीं,इतनी सुन्दर कविता में गिरगिट लिखने की कोई आवश्यकता नहीं लगती.कोई दूसरा शिर्षक सोचना शायद अधिक उपयुक्त हो.
धीरे-धीरे
ReplyDeleteकाटकर जड़ें
मुक्त कर देंगे नदी को
बह जायेंगे शव
लुप्त हो जायेंगे पापी
वैसे ही
जैसे लुप्त हो गये
गिद्ध.
पर्यावरण के प्रदूषण का एक नया मानवीय पहलू प्रस्तुत किया है आपने सुंदर कविता के मध्यम से.
नदी और गिरगिट की तुलना. नदी का रंग तो दुसरे बदलते हैं जबकि गिरगिट स्वमेव ही.
बधाई.
अंतर्मन को उद्देलित करती पंक्तियाँ, बधाई.
ReplyDeleteBahut peeda samaee huee hai ise rachana me aur khatas bhee .Nadee ko girgit kah to diya par isaka jimmedar kaun ?
ReplyDeleteगहन अभिव्यक्ति...
ReplyDeleteप्रश्नों के घने वन में छोड़ जाती हुई...
सादर...
गिरगिटिया नदी ...
ReplyDeleteनवीन बिम्ब !
दिल को छू जाने वाली सुन्दर और सार्थक प्रस्तुति.
ReplyDeleteगहरी सांस लेकर
अपनी संपूर्ण निर्मलता लिए
बहने लगेगी नदी
मगर क्या
नहीं बन जायेगी वैसी ही
जैसी बन गई थी तब
जब आई थी बाढ़ ?
..........
गिरगिट कहीं की....!
नाज़ुक उलाहनों में रची बसी पोस्ट का शुक्रिया....
कहाँ से कहाँ तक नदी की आत्मकथा सी बयान कर दी है आपने.......बनारस में इस बार गंगा का उफान बहुत तेज़ था......सामायिक और शानदार पोस्ट|
ReplyDeleteबेचारी नदी भी क्या करे, अब वह पहले जैसी नहीं रही... गहन अभिव्यक्ति... सादर
ReplyDeleteबहुत सुंदर,आभार.
ReplyDeletebahut gahri baate kah di.
ReplyDeletesunder prabhavi abhivyakti.
अपनी चमड़ी भी देख रही हूँ.कहीं....
ReplyDeleteगहन ... और अंत तो दिल में सीधे उतर गया ...
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