सुबह का
समय था। सड़क पर तीन गधे दिखे। तीनो पूरे गधे थे। कृष्न चंदर के गधे का कोई भी गुण
उनमे नहीं था। न जिम्मेदार नागरिक की तरह चिंतित थे न राष्ट्र भक्त की तरह
उत्तेजित। एकदम महंगाई से त्रस्त तीन गरीब आदमियों की तरह ठंडे। मुझे उनके ठंडेपने
ने बेचैन कर दिया। वैसे बेचैन होने जैसी कोई बात नहीं थी। गधे होते ही ठंडे हैं।
लेकिन बेचैनी का क्या ? किसी बात पर भी हो सकती है। गधा ठंडा हो सकता है तो आदमी बेचैन क्यों
नहीं हो सकता ? कई प्रश्न खुद ही दिमाग में आने लगे। सड़क पर
बैल हो सकते हैं, शिकारी कुत्ते हो सकते हैं, भ्रष्टाचारी हो सकते हैं,
सदाचारी हो हो सकते हैं, नेता हो सकते हैं तो फिर गधे का होना कौन सी बड़ी बात है?
गधे का सड़क पर होना या धोबी घाट पर होना कोई आश्चर्य की बात नहीं
है। सड़क है तो जैसे आदमी हैं वैसे गधे हैं। गधे का घर पर होना भी बड़ी बात नहीं
है। अधिकांश तो घर पर ही रहते हैं। बड़ी बात तो गधे का दफ्तर में या स्कूल में होना है। लेकिन मुझे अफसोस तब होता
है जब इस खबर से भी लोग नहीं चौंकते! मैने अपने मित्रों से कहा,
“आज मैं अपने बच्चे के स्कूल गया था। जानते हो? वहाँ मैने एक गधे को पढ़ाते हुए देखा!” मेरी बात पर
दोस्तों की प्रतिक्रिया बड़ी ठंडी थी। अचरज के कोई चिन्ह उनके मुखड़े पर नहीं दिखे।
उन्होने मुझे ऐसे देखा जैसे मैं ही गधा हूँ! मैं दुखी हो
गया। मैने फिर अपने मित्रों से कहा, “जानते हो? आज दफ्तर में काम से गया था लेकिन कुर्सी पर बैठा वह शख्स मेरी बात समझ
ही नहीं रहा था, पूरा गधा था!” इस पर भी दोस्तों को कोई
आश्चर्य नहीं हुआ! उन्होने फिर मुझे उसी निगाह से देखा जिस
निगाह से गधे को देखते हैं। बात में जान डालने के लिए मैने झूठ बोला, “तुमको पता है? आज संसद में गधे दिखे!” दोस्तों की प्रतिक्रिया फिर भी वैसी की वैसी! पहले
की तरह ठंडी!! उनके चेहरे पर ऐसा भाव था जैसे वे जानते हों ! जबकि खुदा गवाह है, मैने झूठ बोला था।
पता नहीं
लोग चौंकते क्यों नहीं? बड़ी से बड़ी खबर सुना दो, लोगों में उत्तेजना नहीं होती। आप भी आजमा कर
देखिये। झूठ बोलिये। अपने पड़ोसी से सुबह-सुबह झूठ मूठ कहिये, “आज बिजली नहीं आयेगी।“ वह जरा भी नहीं चौंकेगा।
थोड़ा परेशान होकर पूछ सकता है, “अखबार
में दिया है क्या? कितनी देर नहीं आयेगी?” फिर ठंडी सांस लेकर कहेगा, “ई
तो रोज का चक्कर है।“ अभी उस दिन की बात है। बिजली का बिल
जमा कर के हाँफते-डाँफते घर आया और अपने पड़ोसी को उत्साह से बताया, “बहुत भीड़ थी। बिल एकदम गलत, लगभग दूना आ गया था। फ़जीहत करनी पड़ी लेकिन
सुधर कर जमा हो गया।“ उसने कोई आश्चर्य या सहानुभूति प्रकट
नहीं की। मुझे बधाई भी नहीं दिया। बस इतना
ही कहा, “मैं गया था तब भी बहुत भीड़ थी!“
बाहर
क्या, घर में भी हालात बद से बदतर होते जा रहे हैं। एकदम ठंडा सा माहौल मिलता है।
देर शाम घर लौटकर पत्नी से कहिए, “आज बहुत जाम था इसलिए आने में देर हो गई।” पत्नी कोई सहानुभूति प्रकट करने वाली नहीं। ठंडा सा जवाब होगा, “चाय अभी पीजियेगा या आराम करने के बाद ?” काम वाली
बाई के दिन भी आजकल बहुत बेकार कटते हैं। वह बड़े चटखारे लेकर सुनाती है, “फलाने की लड़की फलाने के साथ भाग गई!” और मालकिन के
चेहरे पर कोई आश्चर्य के भाव नहीं, “ठीक
है, लेकिन यह बता, तू कल कहाँ थी? ऐसे नहीं चलेगा।“ काम वाली बाइयाँ अब ऐसी खबरें
सुनाकर अपनी मालकिन का ध्यान जरा भी नहीं बटा पातीं।
अब तो
घोटाले की खबरें पढ़कर भी लोग ठंडे रहते हैं। एक नज़र दौड़ा कर तुलना करते हैं फिर
ठंडी सांस लेकर कहते हैं, “इससे बड़ा तो वो वाला था! इसमें कोई दम नहीं।“ पेट्रोल के दाम बढ़ने से भी लोग नहीं चौंकते। गैस सिलेंडर पर सब्सिडी कम
होने की खबर ने लोगों को थोड़ा विचलित किया था फिर बात आई गई हो गई। ममता जी के
समर्थन वापसी की घोषणा से भी लोग न चौंके न संशकित हुए कि सरकार गिरेगी। भारत बंद
को लोग ऐसे ठंडे होकर देख रहे थे जैसे मुफ्त में कोई बड़ी नौटंकी देख रहे हों। दूरदर्शन
के दर्शकों की मजबूरी छोड़ दीजिए तो मुझे नहीं लगता कि ‘बालिका
वधू’, क्रिकेट मैच या अपना कोई दूसरा प्रिय सीरियल देखना
छोड़कर सभी लोगों ने ‘प्रधान मंत्री का राष्ट्र के नाम संदेश’ सुना होगा। हाँ, खबरों में ‘पैसा पेड़ पर नहीं उगता’ इस एक वाक्य को पढ़कर सुबह मुँह बनाते जरूर देखे गये।
सुबह, जब
से सड़क पर खड़े तीन ठंडे गधों को देखा है तभी से मैं लगातार यह सोचता रहा कि आखिर
वे गधे इतने ठंडे क्यों थे ? गधे थे इसलिए ठंडे थे या ठंडे होने के कारण गधे हो गये ? क्या गधे होने से पहले वे आदमी थे ? क्या देश के
हालात ने उन्हें पहले ठंडा होने में फिर गधा होने के लिए मजबूर किया है ? गंधों के ठंडेपने के बारे में सोचते-सोचते दूसरे जानवरों और फिर आम
आदमियों के बारे में सोचता रहा कि क्या गधे ही ठंडे हैं या दूसरे सभी प्राणी ठंडे
हैं? क्या जो ठंडे नहीं हैं वे सभी आदमी हैं? क्या जो ठंडे नहीं हैं वे सभी शिकारी या आदमखोर हैं? क्या ऐसे भी आदमी हैं जो ठंडे नहीं हैं और आदमखोर से भिड़ने की ताकत रखते
हैं? क्या ऐसे भी आदमी हैं जो गधों को फिर आदमी बना सकते हैं? कभी-कभी मैं भी गधों की तरह सोचने लगता हूँ। क्या मेरे भीतर भी गधे के
जीवाणु विकसित हो रहे हैं ? हे भगवान ! यह हो क्या रहा है !
अच्छा तो आपने भी इस विषय पर लिख दिया.. ठीक ही लिखा है जैसा हमेशा लिखते हैं.. अब इस पर उत्तेजित होकर कमेन्ट करने जैसा कुछ नहीं लगता.. अब रोज-रोज अच्छा लिखियेगा तो हम कब तक कमेन्ट में उत्तेजना, उत्साह और उदगार भरते रहें.. अब हमको भी गधा मानकर एक फोटो हमरी भी लगा दीजिए उन तीनों के बीच!
ReplyDeleteहा हा हा....
Deleteमुझे नहीं लगता कि आज के हालात पर इससे अच्छा कटाक्ष हो सकता है. लेकिन होगा क्या गधे से आदमी बनाना इतना आसान है.
ReplyDeleteअब गधे और खच्चर का फर्क अगर कोई नहीं कर पाता तो उसे क्या कहेगें देवेन्द्र जी ?
ReplyDeleteआपने कही तो खरी-खरी लेकिन हैं दोनो खर ही।:) चित्र हटा दूँ?
Deleteजो अधिक जानता है, अधिक कष्ट पाता है। हम गधे ही अच्छे तब, कितना कम याद रखना पड़ेगा।
ReplyDeleteअगर गधे भी गर्म हो गए तब क्या होगा ...
ReplyDeleteआभार !
सच में यह ठंडापन इस कदर हावी हो गया है कि घोड़े,गधे,खच्चर सब एक से ही नजर आते हैं।
ReplyDelete*
अच्छा व्यंग्य है।
:) धन्यवाद।
Deleteइधर भी गधे हैं उधर भी गधे हैं
ReplyDeleteहम्म.. है तो सही ही बात
ReplyDeleteआज सच ही कोई बात उत्साहित नहीं करती और न ही चौंकाती है ... रोज़ का मामला है .... अब तो घोड़े गधे और खच्चर सब एक ही नज़र आते हैं .... बढ़िया कटाक्ष
ReplyDeleteधन्यवाद।
Deleteवाह!
ReplyDeleteआपकी इस ख़ूबसूरत प्रविष्टि को कल दिनांक 24-09-2012 को सोमवारीय चर्चामंच-1012 पर लिंक किया जा रहा है। सादर सूचनार्थ
धन्यवाद आपका।
Deleteआप मेरे शहर में कब आये थे? मतलब पढा़ते हुऎ कैसे देख गये?
ReplyDeleteअरे! आप तो चौंक गये!! मतलब जानदार हैं। वह आप हो ही नहीं सकते जिसे मैने देखा था।:)
Deleteस्वर्गीय ॐ प्रकाश आदित्य जी की कविता याद आ गई --
ReplyDeleteयहाँ भी गधे हैं , वहां भी गधे हैं
जहाँ भी देखिये , गधे ही गधे हैं .
यहाँ जो खड़े हैं , वे ठंडे गधे हैं
जहाँ में वर्ना , गर्म भरे पड़े हैं .
वाह! मैने यह कविता नहीं पढ़ी। कृष्ण चंदर की 'एक गधे की आत्म कथा' पढ़ी है। वह गधा खोलता तो जवाहर लाल नेहरू के समय के राज लेकिन आनंद आज भी आता है। अब वैसे गधे दिखते नहीं हैं।:)
Delete....हम तो गरमवाले हैं जी :-)
ReplyDeleteहां -हा-हा बस तीन ही दिखे ? यहाँ तो भरमार है भाई साहब :)
ReplyDeleteतीन में तेरह की संभावना तो हमेशा बनी रहती है।:)
Deleteशायद तीनों एक ही फेमिलि से होंगे ... ठन्डे हो गए या ठन्डे ही थे ....
ReplyDeleteकटु धार है व्यंग की ... पर हम भी ठन्डे हैं ... उठेंगे नहीं ... जागेंगे नहीं ...
बहुत मजा आया पढ़ कर |आपके प्रश्न बहुत अच्छे हैं उत्तर मिल जाए तो बताइयेगा जरूर |
ReplyDeleteआशा
:) धन्यवाद।
Deleteभाई साहब !उन जुडवा आलेखों को जिनके शरीर आपस में जुड़े हुए थे ,सर्जरी करके अलग कर दिया गया है आइन्दा ध्यान रखा जाएगा "राम राम भाई "पर सियामीज़ ट्विन्स "पैदा न हों .शुक्रिया आपका .ब्लॉग टेम्पलेट भी सुधारा जाएगा .आप सभी दोस्तों मेहरबानों का शुक्रिया .
ReplyDeleteनेहा एवं आदर से
वीरू भाई .
भारत में यह एक सहज जैविक उत्परिवर्तन और जीनीय (जीवन खंडों ) में आये बदलाव का नतीजा है -
ReplyDeleteइधर भी गधें हैं ,
उधर भी गधें हैं ,
जिधर देखता हूँ ,
गधे ही गधें हैं .
गत ६५ सालों का यही हासिल है .
महंगाई, भ्रष्टाचार, और सरकारी महकमों की स्वेदनहीनता के कारण बेचारे न घर के रहे न घाट के इसलिए ठंडे से बीच सड़क पड़े हैं, जि कभी बैसाख नंदन हुआ करते थे।
ReplyDeletegadhe bhi original rahte to kuch to bhojh halka karte ......kisi kam ke nahi hain ye gadhe bhi.....
ReplyDeleteबापू ने तीन बन्दर ठन्डे सुझाए थे, आपने तीन गधे ठन्डे बता दिए| हमने बापू की भी मान ली थी और अब आप की भी मान लेते हैं|
ReplyDeleteवैसे गधे ठन्डे ही अच्छे होंगे:)
भाई साहब एक किताब "गधा पचीसी" भी लिखी गई और "ग'र्दभ पुराण"/बा -तर्ज़ लालू पुराण /लालू चालीसा भी .बैशाख नंदन अब कहावतों तक सीमित नहीं हैं ,विस्तारित हैं इनकी सेवाएं. .
ReplyDeleteदुलत्ती झाड़ना कोई इनसे सीखे .कोई बे- सुरा/बे -ताला हो गाता हो, . और उसे गाने के लिए कहो तो कहता है -एक शर्त है पूरा गाना गाऊँगा .जो भी गधे(मेरे जात बिरादर,मेरी आवाज़ सुनके आयेंगे ,उन्हें भगाने नहीं दूंगा ),गधा कहीं का गधे का बच्चा किसी को कहना इस जीव का सरासर अपमान है .एक बार इसे बोझे से लाद कर रवाना कर दो ,बारहा आयेगा ,बिना प्रोटेस्ट ,जब तक काम पूरा नहीं होगा इसे दो -बारा समझाना नहीं पड़ता . कर्मठ ऐसे जीव को शतश :नमन .जै बैशाख नंदन .
लोक मानस में इसी लिए गधा रचा बसा है -कहा जाता है बेवकूफों के कोई सींग नहीं होते .ऐसी हरकतें करेगा बेटा तो ऐसे जाएगा जैसे गधे के सिर से सींग .
मतलब के लिए भाई साहब गधे को भी बाप बनाना पड़ता है .""मम्मी जी "(इसे सोनिया जीपढ़ें ) तो इससे बहुत आगे निकल गईं हैं .
निर्मूक प्राणि है गधा .
होली पर महा -मूर्ख सम्मलेन आयोजित किया जाता है -महा -मूर्ख को गधे पे बिठाकर उसकी सवारी निकाली जाती है .यह गधे का सरासर अपमान है .
एक बेमतलब का चुटकुला चलाया हुआ है ,ड्राइवर को सिखाया जाता है भैंस एक बार सड़क क्रोस करना शुरु कर दे ,पूरा करती है ,बच्चा डर के दौड़ लगाता है दूसरी पार जाने को ,गाय और स्त्री खड़ी रहती है सड़क क्रोस ही नहीं करती है बे -मौक़ा ,रुक जाती है. लेकिन कोई गधा बीच सड़क पे खड़ा हो ,तो गाडी रोक के उससे पूछ लो -भाई साहब किधर जाना है .
ये सब बे -सिर पैर की बातें हैं इस दौर में होर्स पावर की जगह अब शक्ति के मापक के रूप में गर्दभ -ऊर्जा /गर्दभ -शक्ति को पावर मापने का पैमाना बनाना चाहिए .निजी सेक्टर में १० -१२ घंटा लगातार काम करने वाले को क्या आप गधा कहने की अभी भी हिमाकत करेंगे ?
काल सेंटर वालो को कम्पू कूली कहेंगे ?
बस गर्धभ राज प्रसंग पे एक आप बीती और सुन लीजिए .हमारे एक मुंह बोले दादा हैं प्रोफ़ेसर शशि कान्त जी श्रीवास्तव.रोहतक सेक्टर १४ में हमारे पडोसी थे .बात २००४ की है .हमारी सर्जरी हुई .लम्बर स्पाइन की एक डिश्क (शायद एल -४ .एल ५ के बीच का छल्ला ,वाशर )सर्जन ने काट के फैंक दी .हमें बताया गया सर्जरी घोड़ा बनाके की गई (होर्स पोजीशन ),हमने जब यह बात शशि दा को बताई ,अपनी सहज मुद्रा में बोले होंठों में स्मित दबाए -गधे को घोड़ा कैसे बना दिया सर्जन आर की गुप्ता ने ?
ReplyDeleteतो साहब गधे का मायावी संसार बहुत व्यापक है .अपार संभावनाएं हैं गधे और गर्धत्व में .
सच में ! अब तो बम फूटने की घटनाएँ भी आक्रोशित/विचलित नहीं करती . इतना पका दिया गया है इस बेचारी जनता को !!
ReplyDeleteबहुत मजा आया,बहुत सुन्दर ब्यंग.आजकल जिसे देखो,जिस किसी से भी बोलो,बहुत ठंडा लगता है-आपके ठन्डे गधों की तरह.मैं खुद भी यैसा ही हो गया हूँ.
ReplyDeleteशुक्र है कि वे लड़ नहीं रहे थे कि मैं ही राजा .. अपनी इज्जत बचा कर..
ReplyDeleteबिलकुल सही कहा आपने गधे के जीवाणु आप में ही नहीं सभी मनुष्यों में विकसित हो रहे हैं......गधा ठंडा है या नहीं ये तो नहीं कहा जा सकता वो बेवकूफ हरगिज़ नहीं होता जैसा कि 'गधे' का आमतौर पर मतलब निकला जाता है वो उच्च कोटि का चिन्तक होता है जो समाज व आस पास होते घटनाक्रम के प्रति उदासीन हो जाता है और जो भी हो रहा है उसे नियति का निर्णय मान कर चुपचाप अपना लेता है......ठीक ऐसे ही आज के समय में मनुष्य कि खास कर हमारे मुल्क में लोगो की हालत है.....तो आखिर हम सब में वो जीवाणु बहुत तेज़ी से बढ़ रहे हैं ।
ReplyDeleteबहुत ही सटीक व सुन्दर लिखा हुआ व्यंग्य......शानदार।
ठन्डे है इसीलिये गधे कहलाते है,अगर गर्म होते तो क्या हम,,,,,,
ReplyDeleteRECENT POST समय ठहर उस क्षण,है जाता,
ॐ गधाय नमः ! ॐ गधेश्वराय नमः!! अहा क्या आनन्द है ...सम्पूर्ण वातावरण गधामय हो गया है। पूरे देश में गधात्व गुण व्याप्त हो गया है। गधात्व मेरे गधे का, जित देखूँ तित गधा। गधे निरखि दुःख मत करो, है सब पर भारी गधा॥
ReplyDeleteका हो मर्दे ! खच्चरवा के फुटुवा छाप के कहत हउआ के गधा हौ। हमरा के गधा बनावत हउआ का? बाकी बाजरा के खेतवा में राउर फुटुवा बड़ नीमन हौ।
ReplyDeleteअच्छा! तs गधवा कs फोटू पहिचान के बुद्धिमान हो गइला?:)
Deleteभाई ज्ञानी लोग ठंडे ही होते हैं. हल हाल में एक समान, बोले तो स्थितिप्रज्ञ. कृशन चंदर जी पहले ही बता गए हैं गधे ज्ञानी होते हैं. कम से कम उनके वाले तो थे.
ReplyDelete