इधर बहुत दिनो से कुछ अच्छा नहीं लिख पाया। थोड़ा बहुत फेसबुक में ही सक्रीय रहा। वहाँ लिखे अपने कुछ स्टेटस जो मुझे अच्छे लगे यहाँ सहेज रहा हूँ....
पतंग
पतंग
उड़ रही हैं पतंगें
लगा रही हैं ठुमके
लड़ रहे हैं पेंचे
कट रही हैं
गिर रही हैं
लूटने के लिए
बढ़ रहे हैं हाथ
मचा है शोर…
भक्काटा हौsss
लगा रही हैं ठुमके
लड़ रहे हैं पेंचे
कट रही हैं
गिर रही हैं
लूटने के लिए
बढ़ रहे हैं हाथ
मचा है शोर…
भक्काटा हौsss
जब नहीं होती
हाथ में कोई डोर
हाथ मलते हुए ही सही
आपने भी महसूस किया होगा...
कि उड़ने में
ठुमके लगाने में
पेंच लड़ाने में
कटने में
और
कटकर फट जाने/लुट जाने में
पतंग का कोई हाथ नहीं होता ।
.......................
हाथ में कोई डोर
हाथ मलते हुए ही सही
आपने भी महसूस किया होगा...
कि उड़ने में
ठुमके लगाने में
पेंच लड़ाने में
कटने में
और
कटकर फट जाने/लुट जाने में
पतंग का कोई हाथ नहीं होता ।
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अकेले में...
अकेले में
चीनियाँ बदाम
फोड़ता हूँ
कभी कोहरा
कभी
रजाई ओढ़ता हूँ।
तू
‘दिसम्बर’ की तरह
नहीं मिलती मुझसे
मैं
‘दिगम्बर’ की तरह
नाचना चाहता हूँ।
चीनियाँ बदाम
फोड़ता हूँ
कभी कोहरा
कभी
रजाई ओढ़ता हूँ।
तू
‘दिसम्बर’ की तरह
नहीं मिलती मुझसे
मैं
‘दिगम्बर’ की तरह
नाचना चाहता हूँ।
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बसंत की आहट
इस पार से उस पार तक
कोहरा घना था
सूरज का
आना-जाना मना था
उड़ रहे थे
साइबेरियन पंछी
सुन रहा था
मौन
आ रही थी
बसंत की आहट
बह रही थी नदी
कल-कल-कल।
........
कोहरा घना था
सूरज का
आना-जाना मना था
उड़ रहे थे
साइबेरियन पंछी
सुन रहा था
मौन
आ रही थी
बसंत की आहट
बह रही थी नदी
कल-कल-कल।
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