एक गाँव है
जहाँ सभी की
खाट खड़ी है
इक कुआँ है
जिसमें चउचक
भांग पड़ी है
कोई बांट रहा है लड्डू
कोई खील-बतासे
और जगत पर
डटे हुए हैं
जनम-जनम के प्यासे
मैं भी यहीं खड़ा हूँ।
हाथी
चुल्लू भर पानी तो
चीँटी
मांग रही तालाब
कौए
गीता बांच के बोले
पूरा है बकवास
कृष्ण
भगवान नहीं थे!
कोई खेले
कीचड़-कीचड़
कोई गा रहा
मल्हार
फागुन के मौसम में बारिश
कैसे न हो यार ?
‘होलिका’ भीग रही है।
..................
कविता के बाद....
कविता के बाद....
सारे जहाँ से अच्छा
है गाँव यह हमारा
हम चुलबुले हैं इसके
यह जान है हमारा
यहीं जमाओ डेरा-डंडा
यहीं जमाओ पाँव
इससे अच्छा इस दुनियाँ में
कहीं नहीं है गाँव
पानी मस्त है यार!
……………
फलसफा के साथ व्यंग का पुट लिए सुन्दर रचना
ReplyDeletenew postकिस्मत कहे या ........
New post: शिशु
पानी मस्त रचना जबरदस्त! :)
ReplyDeleteफागुन के असर में सराबोर रचना
ReplyDeleteअपना गाँव अपना घर अपना ही होता है - सबसे अलग
खटोला यहीं बिछेगा, जो सुख चाहा वह तो शहर में भी नहीं मिला। गाँव सजायेंगे।
ReplyDeleteउत्साहवर्धन के लिए आपका आभार।
ReplyDeleteबहुत सुंदर ,..... गाँव बुलाते हैं
ReplyDeleteभंग अपने रंग ले चुकी :)
ReplyDeleteमेरे गाँव के और बचपन के कुछ दृष्य आंखों के सामने झूल गये इस रचना को पढ़कर...सुंदर प्रस्तुति।।।
ReplyDelete:)
ReplyDeleteकबीरवाली उलटबाँसी शैली भी ...वाह !
ReplyDeleteधन्यवाद।
ReplyDeleteधो डाला :)
ReplyDeleteई कबित्त पर भैया हमका सूझे नाहिं बोल
ReplyDeleteब्यंग्य बान सब खोल रहिन हैं जैसे ढोल की पोल
कमेण्ट का खाक करोगे!!
:) वाह! लय पकड़ लिया आपने, कमाल है!!!
Deleteसुन्दर रचना
ReplyDeleteहोली पर वर्षा हो तो शिकायत कैसी पानी की कमी वैसे भी हो गयी है...यह है पहला फायदा, बादल के साथ भी होली खेलेंगे दूसरा फायदा...गाँव से मुलाकात बढ़िया है..
ReplyDeleteजबरदस्त ... असर होने लगा है होली का अभी से ... मस्ती छाने लगी है ...
ReplyDeleteजितनी जिसकी समझ , समझा !
ReplyDeleteमेरो मन अनत कहाँ सुख पावे
ReplyDeleteकल 28/02/2014 को आपकी पोस्ट का लिंक होगा http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर
ReplyDeleteधन्यवाद !
सुन्दर ....
ReplyDelete