22.2.14

गाँव


एक गाँव है
जहाँ सभी की
खाट खड़ी है
इक कुआँ है
जिसमें चउचक
भांग पड़ी है
कोई बांट रहा है लड्डू
कोई खील-बतासे
और जगत पर
डटे हुए हैं
जनम-जनम के प्यासे

मैं भी यहीं खड़ा हूँ।

हाथी
चुल्लू भर पानी तो
चीँटी
मांग रही तालाब
कौए
गीता बांच के बोले
पूरा है बकवास

कृष्ण
भगवान नहीं थे!

कोई खेले
कीचड़-कीचड़
कोई गा रहा
मल्हार
फागुन के मौसम में बारिश
कैसे न हो यार ?

होलिका भीग रही है।
..................

कविता के बाद....

सारे जहाँ से अच्छा
है गाँव यह हमारा
हम चुलबुले हैं इसके
यह जान है हमारा

यहीं जमाओ डेरा-डंडा
यहीं जमाओ पाँव
इससे अच्छा इस दुनियाँ में
कहीं नहीं है गाँव

पानी मस्त है यार!
……………


21 comments:

  1. फलसफा के साथ व्यंग का पुट लिए सुन्दर रचना
    new postकिस्मत कहे या ........
    New post: शिशु

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  2. पानी मस्त रचना जबरदस्त! :)

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  3. फागुन के असर में सराबोर रचना
    अपना गाँव अपना घर अपना ही होता है - सबसे अलग

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  4. खटोला यहीं बिछेगा, जो सुख चाहा वह तो शहर में भी नहीं मिला। गाँव सजायेंगे।

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  5. उत्साहवर्धन के लिए आपका आभार।

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  6. बहुत सुंदर ,..... गाँव बुलाते हैं

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  7. भंग अपने रंग ले चुकी :)

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  8. मेरे गाँव के और बचपन के कुछ दृष्य आंखों के सामने झूल गये इस रचना को पढ़कर...सुंदर प्रस्तुति।।।

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  9. कबीरवाली उलटबाँसी शैली भी ...वाह !

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  10. ई कबित्त पर भैया हमका सूझे नाहिं बोल
    ब्यंग्य बान सब खोल रहिन हैं जैसे ढोल की पोल
    कमेण्ट का खाक करोगे!!

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    1. :) वाह! लय पकड़ लिया आपने, कमाल है!!!

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  11. सुन्दर रचना

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  12. होली पर वर्षा हो तो शिकायत कैसी पानी की कमी वैसे भी हो गयी है...यह है पहला फायदा, बादल के साथ भी होली खेलेंगे दूसरा फायदा...गाँव से मुलाकात बढ़िया है..

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  13. जबरदस्त ... असर होने लगा है होली का अभी से ... मस्ती छाने लगी है ...

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  14. जितनी जिसकी समझ , समझा !

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  15. मेरो मन अनत कहाँ सुख पावे

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  16. कल 28/02/2014 को आपकी पोस्ट का लिंक होगा http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर
    धन्यवाद !

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