26.11.10

पंचगंगा घाट


काशी दर्शन-2

                       पंचगंगाघाट....गंगा, यमुना, सरस्वति, धूत पापा और किरणा इन पाँच नदियों का संगम तट। कहते हैं कभी, मिलती थीं यहाँ..पाँच नदियाँ..! सहसा यकीन ही नहीं होता ! लगता है कोरी कल्पना है। यहाँ तो अभी एक ही नदी दिखलाई पड़ती हैं..माँ गंगे। लेकिन जिस तेजी से दूसरी मौजूदा नदियाँ नालों में सिमट रही हैं उसे देखते हुए यकीन हो जाता है कि हाँ, कभी रहा होगा यह पाँच नदियों का संगम तट, तभी तो लोग कहते हैं..पंचगंगाघाट। यह कभी थी 'ऋषी अग्निबिन्दु' की तपोभूमी जिन्हें वर मिला था भगवान विष्णु का । प्रकट हुए थे यहाँ देव, माधव के रूप में और बिन्दु तीर्थ, कहलाता था यहाँ का सम्पूर्ण क्षेत्र। कभी भगवान विष्णु का भव्य मंदिर था यहाँ जो बिन्दु माधव मंदिर के नाम से विख्यात था। 17 वीं शती में औरंगजेब द्वारा बिंदु माधव मंदिर नष्ट करके मस्जिद बना दी गई उसके बाद इस घाट को पंचगंगा घाट कहा जाने लगा। वर्तमान में जो बिन्दु माधव का मंदिर है उसका निर्माण 18वीं शती के मध्य में भावन राम, महाराजा औध (सतारा) के द्वारा कराये जाने का उल्लेख मिलता है। वर्तमान में जो मस्जिद है वह माधव राव का धरहरा के नाम से प्रसिद्ध है। यहाँ चढ़कर पूरे शहर को देखा जा सकता है। महारानी अहिल्याबाई होल्कर द्वारा निर्मित पत्थरों से बना खूबसूरत हजारा दीपस्तंभ भी यहीं है जो देव दीपावली के दिन एक हजार से अधिक दीपों से जगमगा उठता है।

                       मोक्ष की कामना में काशीवास करती विधवाएँ, रोज शाम को आकर बैठ जाती हैं पंचगंगा घाट के किनारे। आँखें बंद किए बुदबुदाती रहती हैं मंत्र। एक छोटे से थैले के भीतर तेजी से हिलती रहती हैं अंगुलियाँ, फेरती रहती हैं रूद्राक्ष की माला....आँखें बंदकर...पालथी मारे... रोज शाम.....पंचगंगाघाट के किनारे। दिन ढलते ही, कार्तिक मास में, जलते हैं आकाश दीप....पूनम की रात उतरते हैं देव, स्वर्ग से...! जलाते हैं दीप...! मनाते हैं दीपावली...तभी तो कहते हैं इसे ‘देव दीपावली’ । देवताओं से प्रेरित हो, मनाने लगे हैं अब काशीवासी,  संपूर्ण घाटों पर देव दीपावली...आने लगे हैं विदेशी..होने लगी है भीड़...बनारस को मिल गया है एक और लाखा मेला...बढ़ने लगी है भौतिकता..जोर-जोर बजते हैं घंटे-घड़ियाल, मुख फाड़कर चीखता है आदमी,  जैसे कोई तेज बोलने वाला यंत्र, व्यावसायिक हो रहे हैं मंत्र...। आरती का शोर..! पूजा का शोर...! धीमी हो चली है गंगा की धार....पास आते जा रहे हैं किनारे...बांधे जा रहे हैं बांध...बहाते चले जा रहे हैं हम अपना मैल....डर है...कहीं भाग न जांय देव ..! भारतीय संस्कृति के लिए कहीं यह खतरे की घंटी तो नहीं…!

33 comments:

  1. मैं सोच ही रहा था कि कहाँ पढ़ा ऐसा जीवंत वर्णन (दूसरा पैरा):)
    खतरे की घंटी नहीं, गंगा उसे भी समो लेगी।
    बिन्धुमाधव मन्दिर को रज़िया ने तोड़ा था शायद?

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  2. आरती का शोर..! पूजा का शोर...! धीमी हो चली है गंगा की धार....पास आते जा रहे हैं किनारे...बांधे जा रहे हैं बांध...बहाते चले जा रहे हैं हम अपना मैल....डर है...कहीं भाग न जांय देव ..! भारतीय संस्कृति के लिए कहीं यह खतरे की घंटी तो नहीं…!
    जानकारी पूर्ण पोस्ट लिखी है.... आपने नदियों का क्या महत्व है ..हमारी संस्कृति में.... यह भी आपने बखूबी समझाया है ...अंत में आपने जो चिंता जाहिर की है वो आज के वातावरण को देखकर बाजिव है ...बहुत सुंदर ..शुक्रिया

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  3. मैली होकर सिकुड़ती गंगा की व्यथा का सही वर्णन किया है ।
    लेकिन इस व्यवसायिक युग में जहाँ पैसा ही भगवान है , कौन है सुनने वाला ।

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  4. देवेन्द्र भाई !
    नदियाँ भी बढती जनता और अज्ञान के चलते , बढ़ते प्रदूषण से परेशान होती हुई खुद मोक्ष मांग रही हैं ! मगर मानव आसानी से समझाता दिखाई नहीं पढ़ रहा ! ब्लॉग जगत में कितने लेख बढ़ते प्रदूषण पर लिखे जा रहे हैं ?
    आइये शुभकामना करने का प्रयत्न करें मानव जाति के लिए !

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  5. ज्ञानवर्धक पोस्ट, गंगा की व्यथा का सही वर्णन किया है

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  6. जागरूक करती पोस्ट ..संध्या पूजन वर्णन अच्छा लगा ..

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  7. जालिम औरंगजेब ने कहाँ कहाँ कितने मंदिर तुड़वाकर मस्जिदें बनवाईं ..उफ़ !
    इस बार की देव दीपावली पर मैंने ख़ास तौर पर पंचगंगा घाट देखा ...आनंद की यादों में कहें जिक्र आया था इसलिए ,हजारा दीप स्तम्भ भी देखा जो समग्रतः आलोकित था ...
    और हाँ जल्दियायिये नहीं ..आराम से लिखिए .....

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  8. जीवंत वर्णन, उपयोगी जानकारी, धन्यवाद.

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  9. abhi kal hi ADA jee ke blog pe padha tha Banaras ke baare me....ki Jesus chrisht bhi wahan aaye the...ab aapne bahut pyare dhang se rochak jaankari thi..............dhanywad..

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  10. वाह आज काशी की सैर करवा दी। कभी गयी नही लेकिन पोस्ट पढ कर लगता है कि जाना ही पडेगा। बहुत बहुत धन्यवाद शुभकामनायें।

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  11. आपकी आशंका अकारण नहीं है ,संस्कृति और नदियाँ दोनों ही खतरे में हैं !

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  12. इस घाट पर हम जा चुके हैं ।

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  13. जीवंत वर्णन !

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  14. बहुत अच्छी जानकारी....
    पर्यायवरण और संस्कृति का ह्रास होते देख बहुत दुःख होता है...
    ज्ञानवर्धक प्रस्तुति...

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  15. ... behad prabhaavashaalee abhivyakti ... saarthak post !!!

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  16. व्यावसायिक हो रहे हैं मंत्र...। आरती का शोर..! पूजा का शोर...! धीमी हो चली है गंगा की धार....पास आते जा रहे हैं किनारे...बांधे जा रहे हैं बांध...बहाते चले जा रहे हैं हम अपना मैल....डर है...कहीं भाग न जांय देव ..! भारतीय संस्कृति के लिए कहीं यह खतरे की घंटी तो नहीं…! sunder vardan.

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  17. गंगा कितनी ही पुण्याशायें और कितनी ही पापार्पण समेटे है।

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  18. देवेन्द्र जी,
    मैं समझ सकता हूँ कि आप ‘बेचैन आत्मा’ क्यों हैं...?

    गंगा-तट के जिन दृश्यों को आपने यहाँ शब्द-बद्ध किया है, वे सब मेरी स्मृति में ताज़ा हैं...मैं एक बार जब राजेन्द्र घाट पर कवि सम्मेलन में आया था, मैंने बहुत से दृश्य देखे...वे सब-के-सब आज भी मेरे सामने उभर आते हैं।

    आपका यह लघु लेख जानकारीपरक है...अंत में आपने जो प्रश्न किया वह महत्वपूर्ण है...ऐसे ही अन्यानेक प्रश्नों ने आपको ‘बेचैन आत्मा’ बनाया होगा...!

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  19. वर्तमान स्थिति और एतिहासिक जानकारी के लिये आभार

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  20. अच्छा लगा पंचगंगाघाटका वर्णन पढकर.
    लगभग एक महिने पहले मैंने भी गंगा के पानी में बहती हुई गंदगी को देखा था और सोच रहा था की ये तो कुछ वर्ष पहले से काफी गन्धी हो गई है.सुना था कि गंगा की सफाई के लिये सरकार बहुत बहुत धन खर्च कर रही है.क्या यह सत्य नहीं ?

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  21. गंगा की चिंता तो हम सबको सताने लगी है ! इस जयजय कार में कही विषाद भी है ! गंगा को याद करना तन मन का पुलकित हो जाना है !इस सुंदर पोस्ट के लिए बहुत बहुत बधाई !

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  22. काशी की सैर.... बहुत अच्छी जानकारी.ज्ञानवर्धक पोस्ट.

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  23. हज़ारों साल से चली आ रही संस्कृति को क्या कभी कोई पहले प्रभावित कर पाया ! पहले भी बहुत से लोग आते रहे हैं.

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  24. बहुत ही बढ़िया, महत्वपूर्ण और ज्ञानवर्धक जानकारी प्राप्त हुई! धन्यवाद!

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  25. नेता लोग अपने पाप धोने उधर से गुजरें तो शायद देखें की क्या हाल बना रखा है श्रद्धालुओं ने गंगा नदी का।

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  26. देवेन्द्र जी,
    आपने तो साक्षात् काशी-दर्शन करा दिया !
    मेरी BHU की यादें ताज़ा हो गयीं !
    बहुत बहुत धन्यवाद !
    ज्ञानचंद मर्मज्ञ

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  27. bade bhaiya,
    hum to yahi dua karenge ki aapki AATMA hamesha BECHAIN rahe........

    bechain na rahegi to hame itna sunder sunder kaha padhne ko milega bhala????

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  28. अपने देश में लोगों का गन्दगी प्रेम मुझे सचमुच बड़ा ही क्षुब्ध करता है...

    जहाँ आपके द्वारा इस पोस्ट में दी जानकारियों ने हर्षित किया वहीँ गन्दगी दुरावस्था और व्यावसायिकता के स्मरण ने दुखी भी कर दिया...

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  29. पंचगंगा के बारे मे आपकी जानकारी सार्थक लगी..और कई नई बातें भी पता चलीं..बनारस प्रवास के बावजूद पंचगंगा-घाट पर सूर्य को अर्ध्य न दे पाने का अफ़सोस और प्रगाढ़ हुआ..आपका सुगठित मगर निर्मल गद्य भी इसी घाट की तरह अपनी ओर आकृष्ट करता है..वैसे इस पौराणिक संगमस्थल के बारे मे और जानकारी उपलब्ध कराएं तो और अच्छा...:-)

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  30. अपूर्व भाई,
    ..और जानकारी देने का पूरा प्रयास करूंगा..'आनंद की यादें' में।

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