19.10.11

कैद हैं परिंदे


आज एक कविता और पोस्ट कर रहा हूँ। इस वादे के साथ कि अब कुछ दिन चैन से टिपटिपाउंगा। सुरिया जाता हूँ तो लिखने से खुद को रोक नहीं पाता। इसे पोस्ट करने की जल्दी इसलिए कि जब से  श्री अरविंद मिश्र जी की बेहतरीन पोस्ट मोनल से मुलाकात पढ़ी तभी से यह कविता बाहर आने के लिए छटपटा रही थी।  प्रस्तुत है कविता ...


कैद हैं परिंदे


मीठी जितनी बोली
ज़ख्म उतने गहरे
कैद हैं परिंदे
जिनके पर सुनहरे

चाहते पकड़ना
किरणों की डोर उड़कर
सूरज की पालकी के
ये कहार ठहरे

झील से भी गहरी
हैं कफ़स की नज़रें
तैरते हैं इनमें
आदमी के चेहरे

वे भी सिखा रहे हैं
गोपी कृष्ण कहना
जानते नहीं जो
प्रेम के ककहरे

आदमी से रहना
साथी जरा संभल के
ये जिनसे प्यार करते
उनपे इनके पहरे।
...................................

( चित्र भी वहीं से उड़ा लिया )

20 comments:

  1. अपने वादे के पक्के ...
    सूरज की पालकी के ये कहार ठहरे .....वाह कितना सुन्दर इन्द्रधनुषी बिम्ब .....
    कविता बहुत मार्मिक और पूर्णता लिए है ..सोदेश्य भी ..
    झील शब्द बदल कर अगर पाताल या कर दिया जाय तो ? ....

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  2. पक्षियों की कैद में होने का बड़ा ही मार्मिक चित्रण किया है।

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  3. पक्षियों की कैद का मार्मिक चित्रण.......

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  4. बहुत मार्मिक प्रस्तुति ||
    मेरी बधाई स्वीकार करें ||

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  5. गागर में सागर भर दिया है,

    पक्षियों के मौन को आवाज़ दिया है !

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  6. सार्थक एवं सुन्दर प्रस्तुति

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  7. बेहतर। अगर आप शब्‍दों के साथ थोड़ा और खेलें तो और बेहतर हो सकती है।

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  8. पक्षियों पर लिखा मुझे यूँ भी भाता है और आपकी कविता तो है भी बहुत सुंदर.सूरज की पालकी के ये कहार.... शब्द बहुत भले लगे.
    घुघूतीबासूती

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  9. देव बाबू.......शानदार लगी पोस्ट........आखिरी पंक्तियाँ तो बहुत ही पसंद आईं|

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  10. पक्षियों के दर्द और विवशता का सुन्दर चित्रण ...

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  11. बहुत सुन्दर प्रस्तुति ...

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  12. बहुत मार्मिक प्रस्तुति.

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  13. बहुत सुन्दर प्रस्तुति!
    --
    यहाँ पर ब्रॉडबैंड की कोई केबिल खराब हो गई है इसलिए नेट की स्पीड बहत स्लो है।
    सुना है बैंगलौर से केबिल लेकर तकनीनिशियन आयेंगे तभी नेट सही चलेगा।
    तब तक जितने ब्लॉग खुलेंगे उन पर तो धीरे-धीरे जाऊँगा ही!

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  14. कविता बहुत मार्मिक और पूर्ण है ......

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  15. मार्मिक प्रस्तुति, बधाई स्वीकार करें |

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  16. सही है, आदमी के लिए प्यार एक बंधन है, मुक्ति नहीं!

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  17. जैसा चित्र वैसी रचना - अति सुन्दर!

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  18. शुरु के दो छन्द बहुत सुन्दर है......चाहते ....ये कहार ठहरे - अतिसुन्दर.इसके बाद मेरे विचार से येक और छन्द कफस लिए हुए आदमी का वर्णन करता हुआ होता तो और अछ्छा लगता.

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