27.10.11

उल्लू



शहर में
या गांव में
कहीं नहीं दिखे
उल्लू
बिन लक्ष्मी के
फीकी रही दीपावली
इस बार की भी।

सोचा था
दिख जायेंगे
तो अनुरोध करूँगा
ऐ भाई !
उतार दे न इस बार
लक्ष्मी को
मेरे द्वार !

शहरों में
बाजार दिखा
पैसा दिखा
कारें दिखीं
महंगे सामानो को खरीदते / घर ले जाते लोग दिखे
रिक्शेवान दिखे
और दिखे
अपना दिन बेचने को तैयार
चौराहे पर खड़े
असंख्य मजदूर।

गांवों में
जमीन दिखी
जमींदार दिखे
भूख दिखी
और दिखे 
मेहनती किसान
सर पर लादे
भारी बोझ
भागते बदहवास
बाजार की ओर ।

न जाने क्यों
दूर-दूर तक
कहीं नहीं दिखे
लेकिन हर बार
ऐसा लगा
कि मेरे आस पास ही हैं
कई उल्लू !

जब से सुना है कि
लोभी मनुष्य
तांत्रिकों के कहने पर
लक्ष्मी के लिए
काट लेते हैं
उल्लुओं की गरदन
मेरी नींद
उड़ी हुई है।
..................................

46 comments:

  1. Hey relax !....darna to ulluon ko hai...Smiles.

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  2. बहुत सारी बात कहती यह रचना ... गहन सोच ..

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  3. गहरी बात.. गहरा चिंतन.. सादे कफज!!

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  4. कशमकश और असमंजस से, जिन्दगी अपनी घिरी |
    ढूंढते देवेन्द्र पांडे , इक अदद उल्लू सिरी |
    हैं बद्दुआएं फलक पर, दो चार मिलती फिरी |
    बाजार में कबिरा सिखाये, क्वालिटी कितनी गिरी |

    आपकी उत्कृष्ट पोस्ट का लिंक है क्या ??
    आइये --
    फिर आ जाइए -
    अपने विचारों से अवगत कराइए ||

    शुक्रवार चर्चा - मंच
    http://charchamanch.blogspot.com/

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  5. आपने मेरी नींद क्यों उड़ा दी...

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  6. बेहतरीन....लाजवाब.........शानदार......बहुत गहराई.........सुभानाल्लाह|

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  7. ज्यादा बेचैन न हों, देवेन्द्र भाई! उल्लू अमर है, अमर रहेगा। उल्लू की गर्दन काटने से उल्लू प्रजाति को नष्ट नहीं किया जा सकता...क्योंकि गर्दन काटने वाला उल्लू और गर्दन कटवाने वाला उल्लू तो जीवित ही बचा रहता हैं!!

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  8. ham hi hain ullu kyonki laxmi ko laade firte hain !

    badhiya rachna !

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  9. सुंदर प्रस्‍त‍ुति।



    *दीवाली *गोवर्धनपूजा *भाईदूज *बधाइयां ! मंगलकामनाएं !

    ईश्वर ; आपको तथा आपके परिवारजनों को ,तथा मित्रों को ढेर सारी खुशियाँ दे.

    माता लक्ष्मी , आपको धन-धान्य से खुश रखे .

    यही मंगलकामना मैं और मेरा परिवार आपके लिए करता है!!

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  10. संभलकर रहिए।
    *
    बहुत मारक कविता है।

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  11. नजर उठाईये आसपास ही मिलेंगे

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  12. सुंदर प्रस्‍त‍ुति।

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  13. बहुत सुन्दर कविता. काम, क्रोध, लोभ, मोह जो न करायें वह कम है!

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  14. गज़ब का लिखा है देवेन्द्र भाई। नींद तो हर उस आदमी की उड़ी हुई है जिसमें संवेदनायें बची हैं।

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  15. बड़ी ऊंची बात कही आपने! लेकिन आपने यह कहा था कि अब कुछ दिन कविता नहीं लिखेंगे! :)

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  16. अनूप शुक्ल...

    जी...कहना नहीं चाहिए था। लिखने या न लिखने वाले हम होते ही कौन हैं!

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  17. लक्ष्मी जी सदा सहाय ....
    शुभकामनायें आपको देवेन्द्र भाई !

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  18. खुबसूरत प्रस्तुति ||
    आभार महोदय |
    शुभकामनायें ||

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  19. उल्लू परिवर्धित हो रहे हैं - आदमी बन रहे हैं! :)

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  20. मनुष्य जितना आगे जा रहा है उतना पीछे भी जा रहा है ... ये त्रासदी है इंसान का पागलपन बड़ता जा रहा है ... प्रभावी रहना है ...

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  21. संगीता जी कि बात से सहमत हूँ कई सारी बातें कहती हुई और उन बातों पर विचार करने को मजबूर करती हुई रचना ...बहुत बढ़िया
    समय मिले कभी तो आयेगा मेरी पोस्ट पर आपका स्वागत है
    http://mhare-anubhav.blogspot.com/2011/10/blog-post_27.html

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  22. पते की बात..वो भी दूर की कही है.. टोना-टोटका में अगला बलि कौन होता है उसकी योजना भी बन गयी होगी..

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  23. आपको एक भी न दिखे पक्षी वाले ,यहाँ तो बस बस मनुष्य रूपी उल्लूओं की भरमार है!

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  24. बहुत सुन्दर कविता

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  25. इन गर्दन काटने वालों को ही उल्लू का पट्ठा कहा जाता है ।

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  26. uluon ko dhoondhte ullu ..ulluon se bachate ullu... ullu banate ullu aur ullu bante ullu behatareen kavita..

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  27. अन्ध विश्वास पर करारी चोट। शुभकामनायें।

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  28. देवेन्द्र जी,मेरे पोस्ट पर आने तथा हौसला बढाने के लिए आभार,....
    सुंदर प्रस्तुती अच्छी रचना...बधाई ...

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  29. रोज ही कोई न कोई उल्लू बनता , बनाता है ...
    डरना वाजिब है !

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  30. असली उलूक भोपाली मुद्रा बनाए छुट्टे घूम रहें हैं बगल में मंद बुद्धि बालक दबाए मम्मीजी को सर नवाए .

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  31. मज़ेदार, बेचारे उल्लू !

    http://mansooralihashmi.blogspot.com/search?q=%E0%A4%89%E0%A4%B2%E0%A5%8D%E0%A4%B2%E0%A5%82

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  32. khoobsoorat vyang badhai devendra ji

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  33. बहुत उम्दा रचना देवेन्द्र जी...बधाई

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  34. बेहतरीन व्यंग् ...लाज़वाब अभिव्यक्ति..

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  35. अच्छा लगा कुछ पल इन उल्लुओं के नाम करना

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  36. aapki kavita padhkar to hum sab bhi sakte me hain ..........
    aakhiri me jo punch mara hai,okar kono jawaab naahi ba .

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  37. उल्लू को काट डालते है लोग तान्त्रिक के कहने पर जानकर दुख हुआ,मगर इस दुनिया मे क्या नही होता !तान्त्रिक के कहने पर लोग इन्सानी बच्चे तक की बलि दे देते है.
    कविता अछ्छी लगी,मगर ये बात कि लछ्मी उल्लु पे वैठ आती है,कुछ जमता नहीं.जहा लछ्मी पूजा नही होती वही के लोग ज्यादे अमीर है.

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  38. इस कविता की यात्रा पहली पंक्ति से अंतिम पंक्ति पर अलग अलग दृश्य उपस्थित करती है.. झकझोरती है, सवाल पूछती है, गुदगुदाती है... लेकिन त्यौहारों को मनाया ही इसलिए जाता है कि हम उनका आनन्द उठायें. और कुछ पल को भूल जाएँ कि जीवन में कितनी विकृतियाँ है!! संवेदनशील कविता!!

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  39. बहुत गहरी व्यंजना समाई है सरल लगती पंक्तियों में .
    बहुत से उल्लू सामने न आ कर भी उजागर हो जाते हैं .

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  40. वाह!!!!!...सोचने को बाध्य करती है कविता........गहरी सोच!!!!

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  41. क्या नहीं है इस रचना में - कटाक्ष,दर्द,हास्य … सबकुछ

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