8.12.11

चुहल ही चुहल में...


अलसुबह
घने कोहरे में
सड़क की दूसरी पटरी से आती
सिर्फ सलवार-सूट में घूम रही कोमलांगना को देख
मेरे सर पर बंधा मफलर
गले में
साँप की तरह
लहराने लगा !

वह ठंड को
अंगूठा दिखा रही थी
और मैं
आँखें फाड़
उँगलियाँ चबा रहा था।
................................

चुहल ही चुहल में ये पंक्तियाँ बन गईं। कल कमेंट बॉक्स बंद होने से कुछ साथी नाराज थे कि हमें भी चुहल का अवसर क्यों नहीं दिया ? आज खोले दे रहा हूँ। कर लीजिए जो कर सकते हैं..!

37 comments:

  1. भाई,जब आप अंतरजाल में हो,सरे-आम हो,तो चुहल करने का अधिकार सीमित क्यों हो ?

    मेरी भी यही शिकायत थी कि हमें क्यों नहीं चुहल करने दिया जा रहा ?


    अब चुहलबाजी बाद में...!

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  2. साँप लहरा कर हृदय पर लोटने की बात क्यों छिपा ली?

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  3. यह चुहल कहाँ...???

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  4. जैसे स्विस आल्प्स की बर्फीली वादियों में हिंदी फिल्म की हिरोइन --आधे कपड़ों में और हीरो पूरा ढका हुआ .
    क्या खाका खींचा है भाई .
    अच्छा किया कमेंट्स ऑप्शन खोल दिया . वर्ना ऐसा लग रहा था जैसे जल बिन मछली .

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  5. क्‍या बात है....

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  6. लगता है उम्र की ढलान पे हैं आप और वो ... चढान पे ... क्या बात है देवेन्द्र जी ...

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  7. इसे कहते हैं जुडी का बुखार !

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  8. जुड़ी का या कुड़ी का ।

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  9. गरम आँसू और ठंडी आहें मन में क्या-क्या मौसम हैं
    इस बगिया के भेद न खोलो, सैर करो खामोश रहो
    (इब्ने इंशा)

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  10. क्या बात है त्यागी सर..! मस्त शेर।
    अनुरागी बतियाँ, त्यागी कैसे बूझ गये?

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  11. पांडे जी!
    सलवार सूट में भी आपने भांप लिया कि उसके अंग कोमल थे (कोमलान्गना) कमाल की नज़र पाई है..

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  12. उम्र मेरी जो रही हो पर सुबह को ताड़ कर
    देखता हूं उस बला को अपने दीदे फाड़ कर :)

    यूं घना कोहरा मुझे कुछ भी नज़र आता नहीं
    तौबा उसकी बेहिजाबी हुस्न छुप पाता नहीं :)

    जिस्म मेरा बे-हरारत गर्म कपड़ों पे यकीन
    वो गज़ब की खूबसूरत और कपड़े हैं महीन :)

    सैर को निकला तो हूं पर सैर उसके जिस्म की
    फ़िक्र-ए-सेहत जान लीजे है अलग ही किस्म की:)

    टिप्पणीकारों को क्या जलते हैं तो जलते रहें
    हम तो तापेंगे देविंदर हाथ वो मलते रहें :)

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  13. सलिल भैया, पढ़ लीजिए अली सा का कमेंट...
    ताड़ने वाले क़यामत की नज़र रखते हैं।

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  14. देवेन्द्र भाई!
    जब बिना देखे उन्होंने ताड़ ली युवती हसीन,
    यह भी कह डाला कि उसने कपडे पहने थे महीन.
    एक्स-रे सी नज़रें पाईं हैं अली साहब ने वाह,
    ताड़ ली एम्.पी.से लड़की, और बनारस में थी आह.
    आप तो 'सो स्वीट' कहते रह गए थे देखकर,
    वे कहें नमकीन है, नमकीन है ओ बेखबर!!

    पांडे जी, अपना पहला कमेन्ट खारिज माना जाए और इसे दाखिल करें!!

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  15. अली साब जहाँ पहुँचते ,वहीँ बहार आ जाती है,
    नदी उफनने लगती है,झील सूख-सी जाती है !

    कपडे उनके महीन हैं,जान इधर जाती है,
    वह बल खाके चलती है,ठण्ड सिकुड़ती जाती है !!


    अली साब और चला बिहारी ब्लॉगर बनने को न्योछावर !

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  16. क्या कन्ट्रास्ट है!!

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  17. ये शेर देवेन्द्र जी के लिए खास तौर पे :)


    देखता हूं जो उसे ,'बेचैन' नज़रे गाड़ के
    दोस्तों ने छुपके मारा टिप्पणी की आड़ से :)

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  18. अली सा...कल को लोग ये न कहें..

    मिर्जा को फाका मस्ती ने 'गालिब' बना दिया
    अली को शौक-ए-ब्लॉगरी ने शायर' बना दिया।

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  19. देवेन्द्र भाई!
    आज तो सचमुच ब्लॉग नाम सार्थक कर डाला आपने.. झेलिये भाई:
    अब नहीं ताड़ेंगे लडकी,कनखियों की आड़ से,
    ताड़ भी ली, तो कभी कविता नहीं लिखेंगे हम
    लिख भी ली कविता,तो यारो ब्लॉग में देंगे नहीं
    ब्लॉग में छापी भी तो टिप्पणी खुली होगी नहीं
    हों अली सैयद,सलिल,संतोष, इनको झेलना
    मेरे बस का है नहीं खतरों से ऐसे खेलना!

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  20. सलिल भैया...

    कर रहा था चुहल छुप के, गिर रही थीं बिजलियाँ
    खुल गई खिड़की अचानक, जल गईं सब बिजलियाँ

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  21. आप हैं इक नेक इंसां ताका कह के फंस गये
    वर्ना खांटी लोग कितने बनके मफलर डंस गये :)

    आपने रस्ते में ताका , कोई गुंजायश ना थी
    नंगे उनके घर घुसे और फिर वहीं पर बस गये :)

    आप घर की खिड़कियां खोले ,यही दरकार है
    शर्म उनको आये जिनकी टिप्पणियां व्यापार हैं :)

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  22. चुहलबजी बंद कर ,अब काम पर लग जाइए ,
    ब्लॉगरी को छोड़कर ,ठण्ड को गर्माइये !

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  23. @ अली साब


    आप भी खूब महफ़िल जमाये हैं,
    लगता है एक ज़माने से खार खाए हैं !!

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  24. वाह! वाह! वाह! तुसी ग्रेट! अली सा।

    जब चुहलबाजी में बनते शेर इतने मस्त हैं
    लोग नाहक क्यों भला चिंतन में व्यस्त हैं।

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  25. मानसिक द्वन्द का अद्भुत चित्र खींचा है आपने......
    ठण्ड में यूँ मुस्कुराना मफलर के साथ .... वाह क्या विम्ब है

    बहुत ही विचारोत्तेजक कविता....

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  26. जियो रजा बनारस........मजा आ गया कवियों की इस नोक झोक पर ... :)

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  27. ये तो अच्छा था कि आप मफलर लपेटे थे
    वरना आपको बुखार चढ जाता,..बढ़िया चुहल सुंदर पोस्ट,...
    मेरे नए पोस्ट में पढ़े ..............

    आज चली कुछ ऐसी बातें, बातों पर हो जाएँ बातें

    ममता मयी हैं माँ की बातें, शिक्षा देती गुरु की बातें
    अच्छी और बुरी कुछ बातें, है गंभीर बहुत सी बातें
    कभी कभी भरमाती बातें, है इतिहास बनाती बातें
    युगों युगों तक चलती बातें, कुछ होतीं हैं ऎसी बातें

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  28. कुहरा हो या बर्फबारी
    चाँद को क्या फर्क पड़ता है
    उन्हें तो बिजलियाँ गिराने से है मतलब
    कपड़े कम हों या पूरे क्या फर्क पड़ता है.
    यह तो गनीमत है
    कि पांडे जी पूरे पहन के निकले
    वरना किसी के ख़ाक होने से
    किसी को क्या फर्क पड़ता है.

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  29. चाचू मुझे पसीना क्यों आ रहा है...

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  30. प्रवीन पांडेजी की चुहल बहुत सटीक लगी.
    यहाँ पहाड़ों की ठंड में भी कुछ स्कूली लडकियां जब केवल फ्रॉक पहन,स्लैक्स बिना स्कूल जाती हैं तो वो गरीबी के कारण होता है.

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  31. चुहल पर सुपर चुहल ....क्या बात है :)

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