26.2.12

आयो रे बसंत चहुँ ओर



धरती में पात झरे
अम्बर में धूल उड़े

अमवां में झूले लगल बौर
आयो रे बसंत चहुँ ओर.

कोयलिया 'कुहक' करे
मनवां का धीर धरे

चनवां के ताकेला चकोर
आयो रे बसंत चहुँ ओर.

कलियन में मधुप मगन
गलियन में पवन मदन

भोरिए में दुखे पोर-पोर
आयो रे बसंत चहुँ ओर.

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इसका पॉडकास्ट सुनने के लिए यहां क्लिक करें....अर्चना जी का ब्लॉग...मेरे मन की।

31 comments:

  1. मन में भी बसंत है,तन में भी बसंत है,
    ऋतुराज दिग-दिगंत में छाय रहा हर ठौर !

    मादक प्रस्तुति !

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  2. :) बहुत सुन्दर!

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  3. बहुत सुन्दर प्रस्तुति ||

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  4. सुंदर प्रस्तुति ...बसंत के आगमन का सटीक चित्रण

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  5. कोयलिया कुहक करे
    मवना का धीर धरे

    बसंत का मोहक चित्र मन को भा गया !

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  6. सुंदर कविता ...!

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  7. हमके तो लागल कि छंद बढ़िया मिलौले हौआ.नये पत्तों की बात नहीं,पोर-पोर मा दर्द की बात करले हौआ.जाडे-पाले के बाद तो दर्द कम होला.

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  8. वाह भई द‍ेवेन्‍द्र जी बहुत बढ़‍िया

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  9. बहुत सुन्दर प्रस्तुति
    आपकी इस सुन्दर प्रविष्टि की चर्चा कल दिनांक 27-02-2012 को सोमवारीय चर्चामंच पर भी होगी। सूचनार्थ

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  10. बसंत पर बनारसी अंदाज में अति सुंदर प्रस्तुति।

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  11. अति उत्तम,सराहनीय मन को हर्षित करती प्रस्तुति,सुंदर रचना,....

    NEW POST काव्यान्जलि ...: चिंगारी...

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  12. पात झरे लागल धुरिया उडाय लागल ....त बुढौती मं हमहूँ बूझ गइलीं के बसंत आ गइल....और कइसे बूझीं हो ?

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  13. शब्द शब्द हर्ष लिए
    नया सा उत्कर्ष लिए
    पढ़ के मगन हुआ पोर पोर

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  14. वासंती फुहार की तरह भिगो गई यह रचना!!

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  15. भोरिये में दुःख पोर पोर -इस पर कवि प्रकाश डाले :)

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    1. :)टार्च लेकर तो आप बैठे हैं, प्रकाश हम डालें!

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  16. भोर को तो होना ही नहीं चाहिए... वसंत में तो हरगिज नहीं!

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    1. त्यागी जी से सहमत, बिल्कुल नहीं होन चाहिये जैसे रेल में आखिरी डिब्बा नहीं होना चाहिये:)

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  17. बसंत का आगमन कोयलिया के साथ ... मन का धीर तो खोना ही है ऐसे में ...
    सुन्दर गीत है ...

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  18. वसंत का असर इधर तो नहीं हो पा रहा पर आपकी ओर पूरा लग रहा है। अंतिम पंक्तियों में नहीं कह कर भी बहुत कुछ कह गए आप.:)

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  19. sabd sabd apne aap me paripurn
    behtreen prastuti

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  20. मादक और बासंती रचना

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  21. बा्ह्य एवं अंतः प्रकृति में वासंती वातावरण का संश्लिश्ट चित्रण -सुन्दर!

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  22. सब मामला लेट-लतीफ़ है। गर्मी आने पर बसंत आने का किस्सा पढ़ पा रहे हैं। :)

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