14.6.12

कंकरीट के जंगल से.....



आकाश से
झर रही है
आग
घरों में
उबल रहे हैं
लोग।

बड़की
पढ़ना छोड़
डुला रही है
बेना
छोटकी
दादी की सुराही में
ढूँढ रही  है
ठंडा पानी
टीन का डब्बा बना है
फ्रिज।

हाँफते-काँखते
पड़ोस के चापाकल से
पापा
ला रहे हैं
पीने का पानी
मम्मी
भर लेना चाहती हैं
छोटे-छोटे कटोरे भी।

अखबार में
छपी है खबर
शहर में
कम रह गये हैं
कुएँ
पाट दिये गये हैं
तालाब
नहाने योग्य नहीं रहा
गंगा का पानी
जल गया है
सब स्टेशन का ट्रांसफार्मर
दो दिन और
नहीं आयेगी
बिजली।
...........................

29 comments:

  1. नये तरह के चूल्हे बन गये है आधुनिक शहर..

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  2. ये सब तो वो है जो दिख जाता है कंक्रीट के जंगल में पर यह कविता हमें वहां भी लेजाती है जो नहीं दिखता -- जैसे सूख चुकें हैं संवेदना के जल, जल गया है मानवता का पेड़ और मर चुकी है इंसानियत की जड़।

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  3. मगर हम समझने को तैयार नहीं ....

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  4. सच्ची................
    पढ़ कर और भी गर्मी लगने लगी....

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  5. कई शहरों का सच...
    आनेवाले दिनों में और बुरे हाल होंगे..

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  6. बिजली न आने की त्रासदी बखूबी बयान हो रही है ...

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  7. ऐसे में पहाड़ों की वादियों का ध्यान करें , कूल कूल महसूस करने लगेंगे ,यह गारंटी है . :)

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  8. और आप घर से भी गायब रहने लगे :(
    फोन करने पर पाटा लगता है हुजुर पड़ोसी के घर गए हैं
    क्या बात है उधर कोई ठंडई है क्या ?

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  9. दुखद लेकिन वास्तविक शब्द चित्र!

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  10. मानसून का इंतज़ार कीजिये कुछ और दिन। भगवान पर भरोसा करना ज्यादा लाभदायक है :)

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  11. गर्मी में इंसानी बेबसी और जीवन की जिजीविषा को क्या अद्भुत तरीके से व्यक्त किया है. पोस्ट दिल को छू गयी

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  12. परेशानियों का सबब दूसरी दुनिया से आये कोई लोग तो हैं नहीं हैं ?

    ये सब हमारा ही किया धरा है !

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  13. बहुत दिनों बाद रूबरू हुआ 'चापाकल' और 'बेना' शब्द से
    आपकी कविताओं में क्षेत्रीय शब्द (आंचलिकता) दर्शनीय होती है.
    बहुत खूबसूरती से हालात का जायजा लिया है ...
    बहुत सुन्दर

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  14. सटीक चित्रण |
    इस बार तो कहर बरपा रही है यह गर्मी |
    १४ जून तक झारखण्ड में आ जाता था मानसून |
    पर लगता है ऐसे ही बीत जाएगा जून |

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  15. बहुत ही शानदार पोस्ट।

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  16. हम्म ..घर फोन करती हूँ तो यही सब सुनने को मिलता है.

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  17. बिल्‍कुल सच ... बहुत ही अच्‍छी प्रस्‍तुति।

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  18. बहुत सुन्दर प्रस्तुति!
    आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि-
    आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल शनिवार (16-06-2012) के चर्चा मंच पर भी होगी!
    सूचनार्थ...!

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  19. बहुत खूब, उम्दा काव्याकृति

    मिलिए सुतनुका देवदासी और बनारस के देवदीन रुपदक्ष से
    रामगढ में,
    जहाँ रचा गया मेघदूत।

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  20. Oopar wale ke Saath ye concrete ka jangal Bhi aag ugalta hai ...Mahanagar ki trasadi ko ujagar kiya hai aapne ...

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  21. बहुत बढिया.......

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  22. गरमाई अभिव्यक्ति...
    दो-चार दिन से माताजी ने रट लगा राखी है फ्रिज पानी ठंडा नहीं कर रहा है इसे दिखवा ले... इतनी गर्मी में बेचारा फ्रिज क्या करे....

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  23. कितना खूबसूरत चित्र खींचा है गर्मी का, जब बिजली नहीं होती!
    वैसे दिल्ली आकार मैंने झेला है ऐसा एक अनुभव,..कुछ दिन पहले दिल्ली में जिस मोहल्ले में मैं रहता हूँ, वहाँ दो दिन बिजली नहीं आई थी.

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  24. कंक्रीट के जंगलों की हालात बहुत बुरी है.

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