30.12.14

नई सुबह कभी तो आएगी

वे पहले
हाथ मलते हैं
फिर अपनी
चाल चलते हैं

इधर कोशिश
अपनी दाल गल जाये
उधर उम्मीद
बकरा हलाल हो जाये

हम सोचते हैं
नई सुबह
कभी तो आएगी
वे सोचते हैं
बकरे की अम्मा
कब तक खैर मनाएगी!

5 comments:

  1. सार्थक प्रस्तुति।
    --
    नव वर्ष-2015 आपके जीवन में
    ढेर सारी खुशियों के लेकर आये
    इसी कामना के साथ...
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  2. हम सुबह का इंतजार करते रहेंगे और वे बकरा हलाल करते रहेंगे . नववर्ष मंगलमय हो .

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