9.6.15

धूप

लोहे के घर में
खिड़की से बाहर
धूप है,
प्रचण्ड धूप....

झील-झरने, ताल-तलैया, नदियाँ-समुंदर
सब मिलकर भी
नहीं बुन पा रहे
बादलों की चादर
नहीं टाँक पा रहे इंद्रधनुष
बेलगाम हो चुकी हैं
आवारा किरणें

सूखी बंजर धरती और
खेतों में उग रहे कंकरीट के मकानों के बीच
भयभीत खड़े हैं
घने वृक्ष!

नीचे
कसाई वक़्त से बेखबर
उछल रही हैं
छोटी बकरियाँ। 

10 comments:

  1. धुप का लगना बेहद जरूरी है ,यही तो कारण बनेंगे बादलों से आसमां छाने के लिये.आयेंगे बादल वर्षा की फुहारें लेकर - कुछ दिन और करना है इंतज़ार.

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    1. ईश्वर करे पूरी धूप पोखरा पहुँच जाए। :)

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    2. हा हा हा ,मजा आ गया !

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  2. अब तो देश में मानसून आ ही गया है..यहाँ तो मूसलाधार बरस रहा है..चारों तरफ पानी ही पानी है....

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    1. मानसून आ गया ! कहाँ है मानसून !!! :(

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  3. कामचोर हो गए/ हड़ताल पर जा बैठे नदी, तालाब, झील झरने और समंदर!
    क्या बात....कसाई वक़्त!!

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  4. कामचोर हो गए/ हड़ताल पर जा बैठे नदी, तालाब, झील झरने और समंदर!
    क्या बात....कसाई वक़्त!!

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  5. धूप की कविता नहीं आज की वास्तिविकता लिख दी आपने ..

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  6. सुन्दर व सार्थक रचना प्रस्तुतिकरण के लिए आभार..
    मेरे ब्लॉग की नई पोस्ट पर आपका इंतजार...

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