4.10.15

मोबाइल

सभी जानते हैं कि मोबाइल की बैटरी खत्म होती है तो मोबाइल स्विच ऑफ हो जाता है सिवाय उनके जिनको काम के समय आपका मोबाइल  स्विच ऑफ मिलता है।  देर शाम  घर पहुँचने से पहले मोबाइल स्विच ऑफ हो जाय तो खाली-खाली, भयावह-सा लगने लगता है। ऐसा लगता है जैसे चलते-चलते यकबयक कहीं भटक गए हों। मन तमाम आशंकाओं से घिरने लगता है। अधिकारी ने किसी जरूरी काम से फोन किया और मोबाइल स्विच ऑफ पाया तो? घर वाले फोन कर रहे हों और बात न होने से परेशान हो रहे हों तो ? आपसी विश्वास का जमाना गया। स्विच ऑफ मतलब आप बहाने बना रहे हैं, काम से जी चुरा रहे हैं और सही भी कह रहे हैं तो क्या, आप 'एक नंबर के लापरवाह' तो हैं ही। 

एक वर्ष पहले दिल्ली वाले मित्र ने मोबाइल बैकअप का सुझाव दिया था। ऑनलाइन तुरत मंगा भी लिया। कुछ दिन सुख से चली जिंदगी फिर बैकअप भी खराब। अब कितनी बार खरीदा जाय बैकअप ! और किस-किस का रखा जाय बैकअप! मैं यह हर्गिज नहीं कह रहा कि मोबाइल की बैटरी खतम होना मतलब जिंदगी समाप्त होना है लेकिन कुछ समय के लिए जिंदगी के रुक से जाने का आभास तो हो ही जाता है।  

एक दिन तो हद ही हो गया । मोबाइल को ऐसे साँप सूंघ गया जैसे किसी बड़े आदमी को हार्ट अटैक हो जाता है! न बोले, न बतियाये। कितना भी प्रेम से टच करो, कोई संवेदना नहीं।  बैटरी पूरी तरह से चार्ज थी। मोबाइल की गर्मी बता रही थी कि मरा नहीं है, जिंदा है। दौड़े-दौड़े मोबाइल डाक्टर के पास भागे तो पता चला आज रविवार है। पूरे एक दिन मोबाइल की विरह वेदना में जलते रहे। उस दिन पता चला मैं मोबाइल का कितना बड़ा रोगी हो चुका हूँ! सब कुछ मोबाइल से करने की आदत पड़ चुकी है। मित्रों से बात, फोटोग्राफी, फेसबुक, ब्लॉग लेखन , व्हाट्स एप आदि-आदि ।  दूसरे दिन मोबाइल के डाक्टर ने बताया आपका मोबाइल हैंग हो गया है! अभी तक तो लैपटॉप हैंग होता था, अब यह भी!!! खैर रोग पता चला तो इलाज भी हो गया। डाक्टर ने मोबाइल ठीक कर के दे दिया मगर हाय! मित्रों के मोबाइल नंबर्स, एप्स सभी गुम। एक-एक कर सभी फीचर फिर से आने लगे और अपनी रुकी जिंदगी फिर से रफ्तार पकड़ने लगी।

अब सोचता हूँ वो भी क्या दिन थे, जब मोबाइल नहीं था। कितना समय रहता था अपने पास! सुबह घर से निकलने के बाद श्रीमती जी और शाम दफ्तर से निकलने के बाद साहब के चंगुल से पूर्ण आजादी। जब खेलने खाने, इश्क लड़ाने की उम्र थी तब तो हम पुर्जी बनाया करते और एक संदेश पहुंचाने के लिए घंटो जुगत भिड़ाया करते थे और अब जब हर ओर टुकड़े-टुकड़े जिंदगी का बयाना लिखा गया तो बैल के गले में फंसे जुए की तरह मोबाइल जेब में आ गया! दिन का चैन और रातों की नींद, दोनों हराम। आप कहेंगे मोबाइल के बड़े फायदे भी हैं। अरे! इन्हीं फ़ायदों के कारण ही तो हम इसके गुलाम बन गए। फायदे न होते सिर्फ खराबियाँ ही होतीं तो कौन इसे अपने पास फटकने भी देता?  लेकिन आप यह तो मानेंगे न कि मोबाइल ने मालिक के फ़ायदों मे इजाफा किया है तो नौकरों की मुश्किलें बढ़ा दी हैं? 

6 comments:

  1. अभी बचे हैं इस बीमारी से देखें कब तक बचते हैं :D

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  2. समय के साथ बदलना होगा .... मंगलकामनाएं आपके मोबाइल को !

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  3. हां सही है। मोबाइल की इस दीवानगी से बेहतर मुझे कम्प्यूटर का समय लगता था लेकिन क्या करें...अब हम भी इसी लत के शिकार हैं।

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  4. मोबाइल से इश्क करने को तो हम सब करने को मजबूर है.

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  5. mobile ya iPhone aaj ki basic need ban chuki hai, magar jaise

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  6. ऐसे ही किसी दिन मैंने लिखे था - "सालों से सहेजी गयी फाइलों वाला हार्डडिस्क चुपके से पत्थर हो गया। ...मेरी जगह दत्तात्रेय होते तो उस हार्डडिस्क को पक्का गुरु बना लेते ! :)"

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