8.1.17

लोहे का घर-25


'हाय! ललमुँही, आज तो बड़ी रफ्तार से चल रही हो!' 40 मिनट में जौनपुर से खालिसपुर आ गई!!!'..हवा ने ट्रेन को छेड़ा।
दून ने लम्बी सीटी बजाई और खालिसपुर से भी चल दी। 'चुप री पगली हवा! बहुत लेट हो चुकी हूँ पहले से ही। कुछ तो समय कवर करने दे। मुझे जौनपुर दिन में 2 बजे ही पहुँचना था, शाम हो गई। तुम्हें पता है? जौनपुर से एक बेचैन आत्मा चढ़ता है। लेट हुआ और किसी ने जरा भी कोसा/गाली दिया नहीं कि झट से लिखकर फेसबुक में छाप देता है।
अच्छा! बड़ा बदमास है तब तो! एक दिन गिरा क्यों नहीं देती?
अरे! वो अकेला थोड़ी न मरेगा। वो नहीं तो कोई और लिखेगा। किसी का मुँह थोड़ी न बंद कर सकते हैं। कुछ झूठ तो लिखता नहीं। किसी की आलोचना से घबराकर और गलत काम नहीं करना चाहिए। खुद को सुधारना ही सबसे बढ़िया विकल्प है। आलोचना करने वाला तुहारा शत्रु नहीं, सदैव मित्र होता है।
वाह री ललमुँही! बड़ी ज्ञानी बन गई हो नये साल में!!!
मैं तो हमेशा से ज्ञानी हूँ पगली हवा! सब मुसीबत तेरे और कंट्रोलर के कारण है।
मेरे! अब मैंने क्या किया?
तू ही तो हिमालय से लाती है ठंडी हवा और घना कोहरा। तेरे कारण न मुझे कुछ दिखाई देता है और न कंट्रोलर को। भागूँ तो कैसे भागूँ?
दूसरे पर आरोप मढ़ने को कह दो। अब यहाँ वीरापट्टी में क्यों खड़ी हो गई? यहाँ तो तेरा स्टापेज नहीं है। घना कोहरा भी नहीं है!
देखती नहीं सिगनल लाल है! मेरी सारी तेजी बेकार कर दिया इस स्टेशन मास्टर ने। वो भी क्या करे! कंट्रोलर ने सिग्नल ही नहीं दिया होगा। चाय पीने चला गया होगा। देख! सिग्नल ग्रीन हो गया। अब मुझे बातों में मत उलझा। तुझसे बतियाने के चक्कर में सिग्नल दिखाई नहीं दिया तो नाहक मारा जाएगा एक एक बेचैन आत्मा. 
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तेरा नाम #दून किसने रख दिया लालमुँही! तू तो खून कर देगी कितनों का। आज फिर लेट!!! बेचैन आत्मा छोड़ेगा नहीं। मैंने उसे टेशन पर देखा था। काँधे पर झोला लटकाये, मूँगफली फोड़ रहा था और तुम्हारा मजाक उड़ा रहा था।
अच्छा! क्या कह रहा था?
मुझसे तो कुछ नहीं मगर अपने साथियों से कह रहा था कि इससे अच्छी तो #गोदिया है। राइट टाइम है और आगे चलकर दून को पीटेगी। तुम गोदिया से पिटाओगी क्या जानेमन?
मुझे बनारस तक 4 स्टेशन रुकना है और वो नान स्टॉप #ट्रेन है, इसलिये ऐसा बोल रहा होगा मगर उसके आने में तो अभी 30 मिनट देर है! तब तक तो मैं पहले पहुँच जाऊँगी बनारस। लो! अभी #जफराबाद से चली हूँ और किसी ने मेरी चेन खींच ली!!! यही हाल रहा तो मैं क्या कर सकती हूँ भला! पहले चेन छुड़ाऊँ फिर चलूँ।
तू तो आज गई काम से।
चेनपुलिंग के बाद रुकी दून ने जोर की सीटी बजाई और हवा से बातें करते हुये कहा-चुप रे पागल हवा! उसे मेरे ऊपर भरोसा ही नहीं तो क्यों बैठता है मेरी गोदी में? चले जाना था न अपनी गोदिया के पास।
वो तो नहीं मान रहा था दुन्नी! उसके दोस्तों ने यह कहते हुए बिठा दिया कि गोदिया राइट टाइम है लेकिन आधे घण्टे में तू बहुत आगे ले जाएगी और रुकने के बाद भी पहले पहुँचेगी बनारस।
छुक छुक छुक उसके दोस्त ज्यादा समझदार हैं। अब कोई चेन पुंलिंग न करे तो मैं अभी भी गोदिया को क्रास न होने दूँ। जा! ज़रा देख कर बता तो, गोदिया अब जौनपुर पहुँची की नहीं?
ठीक है। बताता हूँ। तू ज़रा संभलकर चल। आगे जलालगंज का पुल आने वाला है।
उधर हवा, गोदिया का हाल लेने गई और इधर दून ने अपनी चाल से जलालगंज पुल को थरथरा दिया। अंग्रेजों के जमाने का मजबूत पुल काँप सा गया। आगे दून धीरे हो, जलालगंज में मात्र एक मिनट के लिये रुकी फिर हारन जोर की सीटी मार पटरियों पर दौड़ने हुये भुनभुनाने लगी-'पता नहीं हवा कहाँ मर गया! नाम हवा और चाल कछुए जैसी।' दून अभी बड़बड़ा ही रही थी कि हवा ने पीछे से उड़ते हुए आकर ट्रेन के कान में कहा- गोदिया सही समय पर छूट गई जौनपुर से। तू अपनी चाल बढ़ा, वरना आगे तुझे रोक देगा स्टेटशन मास्टर और तू खड़ी-खड़ी सीटी बजाती रह जायेगी।
ओह! मैं तेज दौड़ने के सिवा और अधिक कर भी क्या सकती हूँ भला!!! आगे कंट्रोलर की मर्जी। हानी, लाभ, जीवन, मरण, यश , अपयश, सब कंट्रोलर के हाथ है। मैं तो निमित्त मात्र हूँ। मेऱा काम बस कंट्रोलर की इच्छानुसार रुकना या पटरी पर चलते चले जाना है। जा! देख तो जरा। बेचैन सो गया या मोबाइल में उँगलियाँ चला रहा है?
उसके दोस्त तो ऊपर बर्थ में चैन से सो रहे हैं लेकिन वो जब से बैठा है, कुछ न कुछ लिखे जा रहा है।
इसीलिये तो उसका नाम बेचैनआत्मा है। सबका मन बेचैन होता है, इसकी तो आत्मा भी बेचैन है! इसके अलावा किसी की आत्मा बेचैन हो ही नहीं सकती दुनिया में।
तू क्यों खालिसपुर में ही खड़ी हो गई? यहीं पिटायेगी क्या गोदिया से!
चलती हूँ। हरा सिगनल हो गया। कहीं बेचैन आत्मा हमारी-तुम्हारी सब बातें तो नहीं सुन लेता!
मैं क्या जानू? अब यह मत कहना कि क्या लिखा है, पढ़ कर आ। मुझे दो पायों की बातें समझ में नहीं आती। दुनियाँ में जहाँ भी जाती हूँ, इनकी चाल-ढाल, भाषा-बोली में गहरी भिन्नता है।
यहाँ, लोहे के घर में बैठा, सुन रहा हूँ ट्रेन और ठंडी हवा की गरमा गरम बहस। अपने घर में टी.वी. के सामने बैठ कर टी.वी. एंकर और बुद्धिजीवियों की राजनैतिक काँव-काँव सुनने से तो अच्छा है इनकी बातें सुनना। उसी टाइप के कुछ लोग यहाँ इसी बोगी में आगे बैठकर झगड़ रहे हैं। उनके झगड़ने की आवाजें यहाँ तक आ रही हैं। बड़ी देर से रुकी है #बाबतपुर में बेचारी दून। गोदिया से पिटने ही वाली है। सुनना बंद कर दिया है अब मैंने हवा से इसकी बातें। आ रही है गोदिया जोर से हारन बजाते हुये। धक्क! से बैठ गया दून के साथ मेरे साथियों का भी दिल।

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