2.7.17

बारिश में भीगे?

सुहानी शाम आई
मन सशंकित हो गया
तेरे शहर में
आज बारिश हुई होगी!

खुद से खपा
दिन भर का तपा
ठंडी हवाओं के स्पर्श से भी
चकरा जाता है

बारिश में भीगे?
माटी की सोंधी सुगन्ध पा आल्हादित हुए?
या तपते रहे मेरी तरह
दिन भर?

लोहे के घर की खिड़कियों से
आ रही है ठंडी हवा
घास के बोझ का गठ्ठर सर पर लादे
पगडण्डी-पगडण्डी
चल रही दो महिलाओं के साथ
दो बच्चियाँ भी हैं
बच्चियों के सर पर भी
उठा सकने वाला गठ्ठर है
चारों खुश दिख रही थीं
मन वांछित बोझ
मिल गया होगा आज! 

खुशी
ठंडी हवाओं की मोहताज थोड़ी न है 
चुहचुहाते पसीने में भी 
दिखती है हंसी!

सूखे खेत मे
दौड़ा-भागा जा रहा है
एक कुत्ता
दूर झुग्गी से
उठता धुँआ देख लिया होगा!

इधर रोशनी कम हुई
उधर जलने लगे बल्ब
निःसन्देह
धरती पर
मनुष्यों का राज है।

10 comments:

  1. वाह ! जहां चाह वहां राह , मानो तो गंगा माँ न मानों तो बहता पानी ...खुशी किसी की मोहताज नहीं

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  2. खुश रहने की कला है उन मेहनतकशों के पास...सुन्दर अभिव्यक्ति !

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  3. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल सोमवार (03-07-2016) को "मिट गयी सारी तपन" (चर्चा अंक-2654) पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  4. फूस की कुटिया में बैठा साधु अपनी तपस्या में कितना ज्ञान प्राप्त करता है पता नहीं. लेकिन लोहे की कुटिया में बैठकर आप जिस अवस्था को उपलब्ध हुए हैं उसे क्या कहूँ. बस यही कहूँगा कि जीते रहिये!!

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  5. वाह क्या बात है।
    रामराम

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  6. सहजता से गूढ़ प्रश्न उकेरे हैं और सरलता से कही मन की बात !! साधुवाद !

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  7. वाकई खुशी किसी भी शै की मोहताज नहीं..बल्कि जो मोहताज हो वह ख़ुशी नहीं कुछ और होगा..

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  8. उत्साह बढ़ाने के लिए सभी का आभारी हूँ.

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