पटरी के किनारे
मालगाड़ी से
सीमेंट की बोरियाँ उतारकर
बीड़ी, खैनी के साथ
बतकही कर रहे हैं
ढेर सारे मजदूर
मालगाड़ी से
सीमेंट की बोरियाँ उतारकर
बीड़ी, खैनी के साथ
बतकही कर रहे हैं
ढेर सारे मजदूर
चीखता है
ट्रेन का इंजन
घबरा कर उड़ते हैं
खेतों में
चुग रहे पँछी
खुश होते हैं हम
लोहे के घर की खिड़की से
इन्हें देखकर!
ट्रेन का इंजन
घबरा कर उड़ते हैं
खेतों में
चुग रहे पँछी
खुश होते हैं हम
लोहे के घर की खिड़की से
इन्हें देखकर!
खेतों में
जमा हो रहा है
बारिश का पानी
किसी ने करी है गुड़ाई
कहीं जमा हैं
घास
जमा हो रहा है
बारिश का पानी
किसी ने करी है गुड़ाई
कहीं जमा हैं
घास
कहीं-कहीं
दिख जाते हैं
धान के बीज वाले
चौकोर टुकड़े
दिख जाते हैं
धान के बीज वाले
चौकोर टुकड़े
बाँसवारी में
लटके हुए बांस की टहनी पकड़कर
ऊपर चढ़ने का प्रयास कर रही है
एक बकरी
बगल में
आम के पेड़ पर चढ़कर
झूला झूल रही है
एक लड़की
लटके हुए बांस की टहनी पकड़कर
ऊपर चढ़ने का प्रयास कर रही है
एक बकरी
बगल में
आम के पेड़ पर चढ़कर
झूला झूल रही है
एक लड़की
मेढ़-मेढ़
पुराना टायर लुढ़काता
भागा जा रहा है
एक लड़का
पुराना टायर लुढ़काता
भागा जा रहा है
एक लड़का
दूर-दूर तक फैली है
बारिश के बाद की
चटक धूप
अभी कुम्हलाए नहीं हैं
नेनुआ के पीले फूल
अभी
खिलखिला कर
हंस रहा है
सूरजमुखी
बारिश के बाद की
चटक धूप
अभी कुम्हलाए नहीं हैं
नेनुआ के पीले फूल
अभी
खिलखिला कर
हंस रहा है
सूरजमुखी
खेतों के बीच से
बिछाई जा रही है
गैस की मोटी पाइप लाइन
जिसके मुँह में
ताक/झाँक रहे हैं
गदेले
विकास की अंधेरी सुरंग का रास्ता
ये क्या जाने!
इन्हें तो मजा आ रहा है
एक कदम चढ़कर घुसने
फिर धप्प से कूद कर
ताली बजाने में
बिछाई जा रही है
गैस की मोटी पाइप लाइन
जिसके मुँह में
ताक/झाँक रहे हैं
गदेले
विकास की अंधेरी सुरंग का रास्ता
ये क्या जाने!
इन्हें तो मजा आ रहा है
एक कदम चढ़कर घुसने
फिर धप्प से कूद कर
ताली बजाने में
पटरी पर
चल रही मेरी गाड़ी
बैठे-बैठे देख रहा हूँ
बाहर का संसार।
चल रही मेरी गाड़ी
बैठे-बैठे देख रहा हूँ
बाहर का संसार।
बहुत ही लाजवाब देवेंद्र जी.
ReplyDeleteरामराम
#हिन्दी_ब्लॉगिंग
आभार।
Deleteमनोरम
ReplyDeleteधन्यवाद।
Deleteसारे दृश्य को समेट लिया ।
ReplyDeleteफिर भी छूट गये बहुत।
Deleteबहुत ही सुन्दर...।
ReplyDeleteधन्यवाद।
Deleteबहुत सुंदर दृश्य चित्र
ReplyDeleteधन्यवाद।
Deleteवाह, साक्षी भाव तो आप साध रहे हैं रोज-रोज..सब कुछ देखा और जस का तस उतार दिया शब्दों में..मन का कागज कोरा का कोरा..
ReplyDeleteआभार आपका...।
Deleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (04-07-2017) को रविकर वो बरसात सी, लगी दिखाने दम्भ; चर्चामंच 2655 पर भी होगी।
ReplyDelete--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
हिन्दी ब्लॉग जगत के लिए आपका योगदान स्तुत्य है।
DeleteBahut Badhiyan...
ReplyDeleteबढ़िया !
ReplyDelete