27.7.18

बारिश और मेरा मन

होने को
हो रही है बारिश
मन
न बूंद से जुड़ता है
न मिट्टी से
और न पौधों से।

ए सी बन्द कमरा नहीं है
खिड़की खुली है
सुनाई और दिखाई भी दे रही है बरसात
बूंदों के थपेड़ों से
हिल रहे हैं
नींबू और कदम के पत्ते
पूरे जोर शोर से

मन
न तुमसे जुड़ता है
न खुद से
और न औरों से।

हो रही है बारिश
एक शोर
बादलों में है
एक दिल में
दामिनी
उधर भी है
इधर भी
मन
न बाहर झांकता है
न भीतर
और न शून्य में।
................
@देवेन्द्र पाण्डेय।

3 comments:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (28-07-2018) को "ग़ैर की किस्मत अच्छी लगती है" (चर्चा अंक-3046) पर भी होगी।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  2. बहुत बढ़िया

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