21.1.23

लोहे का घर 67

आज ताप्ती अपने समय से लेट, मेरे सही समय पर मिली है। रोज के यात्री भण्डारी प्लेटफार्म पर मूँगफली फोड़ कर खा रहे थे, अलग-अलग डिब्बों में चढ़े हैं। अलग-अलग इसलिए कि ट्रेन में भीड़ है। इतनी बर्थ नहीं खाली कि सब एकसाथ बैठ सकें। हमारे साथ एक ही रोज के यात्री बैठे हैं, शेष सभी अलग बोगी में चढ़े हैं। मैं साइड लोअर बर्थ में दो यात्रियों के साथ बैठा हूँ। एक को सूरत जाना है, दूसरे को जलगाँव जाना है। मेरे बाईं ओर बैठे एक यात्री बड़े उत्साह से भारत-न्यूजीलैंड का क्रिकेट मैच मोबाइल में देख रहे थे, बड़े उत्साहित थे। अब नहीं देख रहे। पूछने पर बता रहे हैं, हो गया खेल, भारत ने 349 बना दिया है। अब दूसरी पाली न्यूजीलैंड को खेलनी है। दाईं ओर बैठे सूरत जाने वाले यात्री खामोशी से खिड़की से बाहर देख रहे हैं। अभी अँधेरा नहीं हुआ, गोधूलि बेला है। मुझे क्रिकेट में अब कोई रुचि नहीं है।


मेरे सामने लोअर बर्थ पर कुछ बच्चे और एक महिला बैठी हैं। बच्चे दाना चबाकर थक चुके लगते हैं, अभी खामोश हैं। वेंडर आ/जा रहे हैं। बाईं ओर बैठे मौलाना किसी से मोबाइल में बात कर रहे हैं, बड़े खुश हैं, खुशी से बता रहे हैं, "349 बनाइस इंडिया! #शुभमन_गिल 208 बनाइस है, देखे हो?" उधर से क्या आवाज आई नहीं पता लेकिन ये अपने देश के प्रदर्शन से बहुत खुश दिख रहे हैं। खुश होने वाले को खुश होने के बहाने चाहिए, मातम तो बिन बात के भी मना लेता है आम आदमी।


बीरापट्टी से रेंग रही है ट्रेन, रुकी नहीं है। अभी अंडा ब्रेड वाला निकला है, मैने पूछा, कितने का है? मुझसे कहा, "नहीं है!" मौलाना को बताया, "20 रुपए का दो!" शायद उसने समझा हो, यह नहीं खरीदेगा, टोपी देखकर सोचा हो, मौलाना खरीदेंगे, इसीलिए हमको नहीं बताया, उनको बताया, खरीदा तो उन्होंने भी नहीं। अब मन कर रहा है, फिर आए तो खा कर दिखाऊँ और बताऊँ, "बेटा! मैं भी खा सकता हूँ।" 


ट्रेन बढ़िया चल रही है, आगे शिवपुर स्टेशन है, रुकती है तो उतर जाता हूँ। हाय! नहीं रुकी शिवपुर स्टेशन पर। तेजी से आगे बढ़ गई, अब कैंट स्टेशन के आउटर पर रुकेगी। आउटर आते ही ट्रेन को कोमा में छोड़कर बहुत से यात्री पैदल ही चल देंगे। मेरी हिम्मत पटरी-पटरी पैदल चलने की नहीं है। आउटर आ गया, इत्मिनान से रुक गई ट्रेन। मेरे बगल के यात्री ने अब क्रिकेट देखना शुरू कर दिया है। न्यूजीलैंड की पारी शुरू हो चुकी है।

...@देवेन्द्र पाण्डेय।

2 comments:

  1. आप शायद ट्रेन से अप डाउन आते जाते हैं . और रोज के सफर के समय को मुट्ठी में कर लेते हैं . गज़ब आदत है यह . मैं टेम्पो से स्कूल जाते हुए सोचती रहती थी कि लिखना चाहिये यह रोज का सफर ..पर नहीं लिखा . आपसे बहुत लोग प्रेरणा लेंगे .

    ReplyDelete