13.5.24

पुत्र रत्न

मित्र ने बताया, "ईश्वर की कृपा से पुत्र को 'पुत्र रत्न' की प्राप्ति हुई है, मैं दादा बन गया, कोई अच्छा सा नाम बताइए। "

मैने कहा, "आपको रत्नो की इतनी अच्छी पहचान है! माणिक, हीरा, नीलम, पन्ना, लाल मूंगा, मोती, पुखराज, लेहसुनिया मुख्य रत्न माने गए हैं, आप यह भी पता लगा लीजिए, कौन सा रत्न हुआ है।" पता चल जाय तो आगे 'लाल' लगा दीजिएगा। जैसे मानिक लाल, पन्ना लाल...

अबे! नीलम तो नीला होता है, लाल कैसे लगाएंगे?

पक्का हो गया कि नीलम ही है? पहले पक्का तो कर लो, पुखराज भी अच्छा नाम है। ऐसा न हो कि रत्न पुखराज मिला और तुमने नीलम नाम रख दिया।

तुम भी हमेशा मजाक करते हो। हमने कहा, पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई है तो तुम रत्नो के नाम गिनाने लगे! अरे पुत्र को सभी रत्न और पुत्री को लक्ष्मी कहते हैं तो हमने भी कह दिया!!! क्या गलत किया?

बहुत गलत किया भाई, बहुत गलत किया। आखिर हम पुत्र को रत्न और पुत्री को लक्ष्मी कब तक समझते रहेंगे? ये रत्न और लक्ष्मी हमारे बच्चों से मूल्यवान क्यों हैं? 100 रत्नो के बदले भी क्या एक पुत्र ला सकते हैं? लाखों रुपयों के बदले क्या पुत्री को बेच सकते हैं? नहीं न? फिर क्यों हम अपने बच्चों की तुलना रत्न और लक्ष्मी से करें? हम क्यों नहीं पुत्र का नाम आज की तारीख पर ही रख दें...लड़का-9 मई, 2024, लड़की- 9मई 2024 अब बड़ा होकर लड़का/लड़की अपने कर्मों से खुद को जैसा सिद्ध करें, वैसा नाम हो जाएगा। लड़के ने मिसाइल बनाया तो आदरणीय राष्ट्रपति जी की तरह उसके नाम के आगे 'मिसाइल मैन' जुट जाएगा, चोर निकला तो चोर। लड़की धावक निकली तो उड़न परी, घर में काम करने वाली हुई तो गृहणी। जिसका जैसा कर्म, वैसा नाम जुड़ जाएगा। न जाति न धर्म, न अगड़ा न पिछड़ा सब भेदभाव समाप्त। हाँ, विकलांग हुआ तो दे देंगे आरक्षण। जन्म से ही क्यों मान लें कि यह रत्न है, यह दीन। इसे आरक्षण मिलना चाहिए, इसे नहीं! ईश्वर ने तो सभी मानवों को एक जैसा बनाया है, हम भेदभाव क्यों करते हैं? इतना भेदभाव करते हैं और अपने को बुद्धिमान भी समझते हैं!

हा.. हा.. हा... मतलब तुम आरक्षण विरोधी हो!

मेरे इतने लम्बे भाषण का तुमने यही अर्थ निकाला! इसीलिए यह भेदभाव नहीं खतम हो रहा है। आरक्षण दो न भाई, मैने कब मना किया है? गरीब को आरक्षण दो, विकलांग को आरक्षण दो, दीन हीन को आरक्षण दो....। धार्मिक और जातिगत भेदभाव मिटाने का कोई तो तरीका बताओ? एक तरफ कहते हो भेदभाव बुरा है, दूसरी तरफ भेदभाव की बुनियाद मजबूत करते हो! दोनो संभव नहीं है। अब तुमको पोते का नाम ही रखना है तो उसी पंडित जी के पास जाओ, जिनका तुम विरोध करते हो। यही न करते आए हो? कर्मकांड का मजाक उड़ाना और फिर उसी के शरण में जाना! जय राम जी की।.

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