11.10.25

उल्लू पुराण 3

पोस्ट 2 से आगे....

उल्लू प्रेम निस्वार्थ होते हुए भी मोह जगाता है। जबसे पढ़ा है छोटे उल्लुओं की उम्र 2 से 4 वर्ष होती है, इनसे बिछड़ने की आशंका होती है। प्रातः उद्यान में प्रवेश करते ही इन्हें देखने की इच्छा होती है। 

आज दशहरा है। मित्रों ने वाट्सएप में नीलकंठ की तस्वीरें भेजी हैं। ऐसा माना जाता है कि नीलकंठ पंछी के दर्शन शुभ होते हैं। नीलकंठ को साक्षात भोलेनाथ का अवतार माना जाता है। रावण से युद्ध के लिए जाते हुए भगवान राम को नीलकंठ के दर्शन हुए थे मतलब इस पंछी का दर्शन विजय का प्रतीक है। इतना ही नहीं यह भी माना जाता है कि नीलकंठ के दर्शन मात्र से धन की प्राप्ति होती है। 


आजकल खुद वन-वन, बाग-बाग, ताल-तलइया घूमना तो होता नहीं, वाट्सएप खोलो और धड़ाधड़ नीलकंठ की तस्वीरें मित्रों को फॉरवर्ड करो! यदि वास्तव में नीलकंठ की तस्वीर देखना इतना लाभकारी होता तो यह भी पंछी की तरह दुर्लभ हो जाता। जिसे मिलता वह तस्वीर मढ़ा कर सात तालों में सुरक्षित रखता और रोज सुबह उठकर दरवाजा बन्द कर, अकेले तस्वीर निहारता रहता। यहाँ तो "हर्रे लगे न फिटकिरी, रंग भी चोखा होय!" वाला हाल है। मित्रों को मुफ्त में बताना है कि हम कितना तुम्हारा भला चाहते हैं। हकीकत में तो लोग 100 रुपिया मित्र पर खर्च करने से पहले सौ बार सोचते हैं, यह 100 रुपए की कृपा पाने लायक मित्र है भी कि नहीं? कहीं मेरा रुपिया व्यर्थ तो नहीं खर्च हो रहा है?


आज वन विभाग से सटे धमेख स्तूप पार्क में घूमते समय नीलकंठ तो नहीं, अनुज को एक नया उल्लू दिखा। उसने मुझे बुलाया, "भैया! उल्लू!!!" यह आकार में पहले की तरह छोटा ही था लेकिन दूसरा था। मित्र जान चुके हैं कि मैं उल्लू प्रेमी हूँ इसलिए कहीं उल्लू दिखा तो मुझे बता देते हैं। मैने देखा तो मुझे यह मेरी पुरानी उल्ली की तरह चंचल लगा। मैने सोचा इसका साथी भी कहीं होगा लेकिन खूब ढूंढने के बाद भी नहीं दिखा। इसे देख मुझे इस बात की खुशी हुई कि सारनाथ की धरती से जहाँ भगवान बुद्ध ने सबको उल्लू से बुद्धिमान बनाने का प्रयास किया, पूरी तरह सफल नहीं हुआ है। अभी भी उपदेश स्थली में बहुत से उल्लू रहते हैं। जब प्रथम उपदेश स्थली सारनाथ में इतने उल्लू हैं तो हमारे देश में कितने होंगे! जब हमारे देश में इतने उल्लू हैं तो विश्व में कितने होंगे!!! नहीं, नहीं खाली अमेरिका और ट्रम्प को याद मत कीजिए, हर देश, हर शहर क्या हर शाख में उल्लू बैठे हैं। ऐसे ही विश्व का माहौल खराब नहीं चल रहा। कुछ और नीलकंठ पैदा हों, कुछ और सिद्धार्थ बुद्ध बनें तो विश्व का कल्याण हो। 

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आज बारिश हो रही है। कल से बारिश हो रही है। आज जब नींद खुली तो देखा, बारिश हो रही थी। कल शाम, सोने से पहले देखा था, बारिश हो रही थी। कल सुबह पार्क घूमकर, उल्लू देखकर आए, बारिश नहीं हो रही थी। कल दिन हुआ ही नहीं, बारिश शुरू हो गई। आज सुबह हुई है लेकिन दिन की संभावना नहीं दिखती। कभी टिप-टिप, टिप-टिप, टपकतीं हैं बूंदें, कभी झर-झर, झर-झर झरती हैं बूंदें। 


मैं आज उल्लू देखने नहीं गया। बारिश ने मुझे उल्लू बनाकर घर के दरवाजे के भीतर, झूले में बिठा रक्खा है। आँगन के सब पेड़ पौधे मुझे ही देख रहे हैं। अमरुद, अशोक, नीबू की शाखें तो लचक मटक कर देख ही रही हैं, गमले के सभी पौधे मुझे ही देख रहे और हँस रहे हैं। कह रहे होंगे, "आज यह उल्लू देखने नहीं जा पाया, खुद ही उल्लू बना बैठा है।"


बारिश में भीग रहा होगा उल्लू का जोड़ा। कोटर में दुबक गया होगा या किसी शाख के बीच में सटा/चिपका पत्तों से बूँद-बूँद टपकते पानी का मजा ले रहा होगा, कह नहीं सकते। यहाँ तो पंछी सब दुबके पड़े हैं, दिख नहीं रहे। कभी-कभी एक गिल्लू तना पकड़ ऊपर नीचे कर रही है। 


मेरे घर में श्री विनोद कुमार शुक्ल के काल्पनिक घर की तरह दीवार में एक खिड़की नहीं रहती। आज इस मौसम में उस खिड़की की बहुत याद आ रही है। होती तो कूदकर बाहर चला जाता जहाँ तालाब किनारे खिली-खिली धूप बिछी होती। बुढ़िया दादी गरम चाय लेकर आतीं और कहतीं, "पहले चाय पीलो, ठण्डी हो जाएगी, फिर नहाना।" दादी की बात सुनकर मेरे उल्लू हँसने लगते और आपस में दुबक जाते। हाय! मेरे घर के किसी दीवार में ऐसी एक भी खिड़की नहीं है। 🤔

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आज उल्ली अपने कोटर में अकेले बैठे मिली। उसका साथी उल्लू नहीं दिखा। कहीं शिकार में गया होगा या उल्ली से झगड़कर  ऊपर शाख में पत्तों के बीच छुप गया होगा। उल्ली से बहुत बात करने का प्रयास किए लेकिन वह समझ गई लगी कि यह आदमी किसी काम का नहीं है। प्रकाशक ने हमें उल्लू बनाया तो यह मजे ले रहा है। आजकल दोस्त ऐसे ही होते हैं, अपना दर्द सुनाओ तो थोड़ी सहानुभूति प्रकट करेंगे लेकिन बहुत दिनों तक चटखारे लेकर मित्र की दुर्दशा का बखान करते हुए मजे लेंगे। प्रकाशक ने उल्लू बनाया और यह वीडियो बना रहा है! बेकार ही इसे अपना दर्द साझा किया। 


मुझे उल्ली की बेरुखी से ऐसा ही प्रतीत हुआ। यह मेरा 'चोर की दाढ़ी में तिनका' वाला वहम भी हो सकता है। हो सकता है ऐसा कुछ भी न हो। कवि तो ठीक लेकिन उल्ली क्या जाने  की वीडियो क्या होता है!


इसे छोड़ आगे बढ़े तो एक दूसरे घने नीम की शाख पर दूसरा उल्लू बैठा था। आकार में थोड़ा बड़ा था लेकिन अकेले था। कुछ दिनों पहले दिखे चंचल उल्ली का साथी लग रहा था। इससे मैने बहुत पूछा कि तुमको उल्लू किसने बनाया? प्रकाशक ने या किसी नेता ने? इसने कुछ नहीं बताया। हो सकता है इसे शासक दल के किसी बड़े नेता ने उल्लू बनाया हो और मुझे नाम बताने से डर रहा हो! कहीं नाम बताया तो मेरा एनकाउंटर न हो जाय!!! कुछ भी हो सकता है। आज इससे पहली मुलाकात थी, कल फिर प्रयास करेंगे। अभी तो यह निरीह जनता की तरह मुझे नेता समझ कर मुझे ही घूर रहा था। 🤔

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क्रमशः





3 comments:

  1. हमें तो 75 वाले उल्लू का पता है एक | 2-4 साल वाले तो होते ही होंगे | :) वाह |

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    1. आप लगातार ब्लॉग से जुड़े ही नहीं हैं, प्रतिक्रिया भी देते हैं, यह वंदनीय है, आभार 🙏

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    2. उलूक टाइम्स के लिए बढ़िया खबर है। 😃

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