बनारस की एक गली में चीखते-चिल्लाते लड़कों का एक झुण्ड करीब आ रहा था। आगे-आगे एक विक्षिप्त बुढ़िया भागे जा रही थी। लड़के पास आते तो वह जमीन से उठाकर झुण्ड की ओर एक पत्थर फेंकती, लड़के बचते हुए जोर से चीखते...आधी रोटी चोर!!!
गली से गुजर रहा कोई आदमी लड़कों को डांट कर भगाता, "क्यों परेशान कर हो?" लड़के इधर-उधर गली में बिखर जाते। बुढ़िया संभलती, आदमी को हाथ जोड़ती (शायद शुक्रिया अदा करने का उसका यही अंदाज हो), वहीं एक चबूतरे में थक कर बैठ जाती। पोटली से रोटी निकालकर खाती। ऐसा महीने में कई बार होता!
एक दिन मैने एक सरदार से पूछ ही लिया, "कौन है यह?"
सरदार बोला, "पागल है, इसका कोई नहीं है। वर्षों पहले गंगा घाट में कहीं से आ गई थी। जब आई थी, जवान थी। पूछने पर कुछ नहीं बता पायी। गली/घाट में कहीं पड़ी रहती। घरों में बरतन साफकर कर अपना गुजारा करती। एक बार गर्भवती हुई! लोगों ने इसको खूब गालियाँ दी। बुरा/भला सब कहा। कोई इसे घर में बुलाने को तैयार नहीं हुआ। गोद में एक बच्चा भी आ गया लेकिन टिका नहीं। बच्चा मर गया तब इसका मानसिक संतुलन और भी बिगड़ गया। लड़के यह सब नहीं जानते, इसको परेशान करने में उनको मजा मिलता है। समय बीतता गया, ऐसे ही मांगते-खाते बूढ़ी हो गई। आप परेशान मत होइए, ऐसे ही मर जाएगी एक दिन।
मैं दुखी होकर घाट की सीढ़ियाँ उतरने लगा। तट पर घण्टों बैठा माँ गंगा से एक प्रश्न पूछता रहा..परेशान होने के लिए इससे बड़ी बात और क्या हो सकती है? ऐसा लगा जैसे माँ मुझ पर ही हँस रही हों! कह रही हों,"तुम जानो, तुम्हारा समाज जाने, मुझे क्यों माँ कहते हो? लड़की की यह हालत क्यों है? इसका उत्तर तो तुम्हें ही देना होगा।
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29.5.22
आधी रोटी चोर!
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