1.4.12

मूर्खता


मूर्ख भी कई प्रकार के होते हैं। घरेलू, सरकारी, बाजारी, मोहल्लाधारी, गंवई, शहरी, प्रादेशीय, राष्ट्रीय या फिर अंतर्राष्ट्रीय।  साधारण मनुष्य तो अपनी औकात झट से पहचान लेते हैं मगर कोई भी ब्लॉगर खुद को अतंराष्ट्रीय फेम से कम का नहीं समझता। यही कारण है कि अंतराष्ट्रीय मूर्ख दिवस में हमें भी अपनी मूर्खता सिद्ध करने का मन हो रहा है। जब बाबा राजनीति में टांग फंसा कर अपनी मूर्खता सिद्ध कर सकते हैं। नेता घूसखोरों के चक्कर में पूरी पार्टी को मूर्ख बना सकते हैं। अधिकारी यह जानते हुए भी कि सत्ता बदलते ही उन्हें उनके किये की सजा मिल सकती है, जनता को लूट सकते हैं। मंत्री सत्ता के मद में यह भूल सकते हैं कि उन्हें फिर जनता के बीच जाना है तो हम किसी से किस मामले में कम हैं ? आखिर हम भी तो इसी धरती के ब्लॉगर हैं !

मूर्खता सिद्ध करना कोई कठिन काम नहीं है। रात भर जाग कर, दूसरों के ब्लॉग में घूम-घूम कर बहुत सुंदर..! बहुत खूब..! वाह..! वाह..! आपकी प्रस्तुति बहुत अच्छी है। आदि लिखने से भी सभी समझ जायेंगे कि हम कितने उच्च कोटि के हैं ! मगर महामूर्ख सिद्ध करने के लिए इतना ही काफी नहीं हैJ वैसे भी हम ऐसे वैसे तो हैं नहीं, अंतर्राष्ट्रीय हैं। आखिर आज के दिन हमारी प्रतिष्ठा भी दांव पर लगी है। हमको इतनी घटिया कविता लिख कर दिखानी है जिसे पढ़कर श्रेष्ठ कोटि के ब्लॉगरों को भी वाह! वाह! लिखने में किसी प्रकार के शर्म का एहसास ना हो। तो लिखना शुरू करता हूँ एक उच्च कोटि की घटिया कविता जिसका शीर्षक पहले ही लिख देता हूँ.. मूर्खता ! यकीन मानिए अभी तक कविता का कोई प्लॉट मेरी उल्टी खोपड़ी में नहीं आया है। बस अपनी मूर्खता पर इतना विश्वास है कि मैं मूर्खता शीर्षक से कोई मूर्खता पूर्ण कविता तो लिख ही सकता हूँJ

मूर्खता

एक तमोली ने
उगते सूरज को देखा
और देखते ही समझ गया
कि सूरज
पान खा कर निकला है !

दिन भर
इस चिंता में डूबा रहा
कि सूरज ने पान
किसकी दुकान से खरीदा होगा ?

पान के पत्ते कतरते वक्त
क्रोध में डूबा
यही भ्रम पाले रहा
कि वह
पान के पत्ते नहीं
सूरज के
पंख कतर रहा है !

उसने
जब मुझे अपना दर्द बताया
तो मुझे लगा
उसके हाथ में
कैंची नहीं, कलम है !
और वह
सूरज का नहीं
कागज पर
किसी भ्रष्ट नेता का
पंख कतर रहा है !!

कहीं वह
पिछले जनम में
कवि तो नहीं था !
आखिर इतनी मूर्खता
दूसरा
कौन कर सकता है !!
……………………………..

मैं कह रहा था न ! मैं लिख सकता हूँ ? अब तो आप मान ही गये होंगे कि इस अंतराष्ट्रीय मूर्ख दिवस में अपनी भी कोई हैसियत है

43 comments:

  1. बिलकुल ।

    आज तो ठिठोली का दिन है ।

    आप क्या , बेचैन आत्मा भी तृप्त हो जाएगी ।
    http://dcgpthravikar.blogspot.in/

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  2. मन तृप्त हुआ ... शायद कवी होना मुर्खता की निशानी है , हास्य, व्यंग ...पता आपने एक ही बार समेत लिया ... मुर्क दिवस पर आपकी जय हो

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  3. "होने को सिद्ध करना पड़ता है" अत्यन्त चिंतनपरक और सार्थक बात कही आपने ! जो नहीं है उसका नहीं होना सिद्ध करने से पहले होने को सिद्ध करना अदभुत एवम न्यायप्रद तर्कसंगत विचार है !

    आपकी शिक्षा कितनी महीन / सूक्ष्म और कितनी गहरी चोट करती है ! संसार में चहुँदिश व्याप्त अज्ञान , जिसे आप मूर्खता कहते हैं , पर गंभीर आघात करता हुआ आलेख !

    आपके संकेत कितने 'अर्थ'प्रद हैं ! यह हम भी जान चले हैं ! एक तो यह कि ब्लागर उर्फ मनुष्य जोकि है और नित्यप्रति अपना होना सिद्ध करता है उसे पढ़ने के बजाये अज्ञानी जन ( आप कृत मूर्ख ) नहीं होने वाले ईश्वर के पीछे पड़े रहते है ! अर्थात यह संसार होने वाले भौतिक सत्य की तुलना में नहीं होने वाले अभौतिक सत्य को पूजता है ! अभौतिक सत्य का नहीं होना कहने से आशय यह है कि यदि वह होता तो ब्लागर की तरह स्वयं को सिद्ध करने का यत्न करता !

    आपके संकेतों का अर्थ प्रद होना इस तरह से भी सिद्ध है कि होने वाले ब्लागर की सिद्धता की तुलना में नहीं होने वाले ईश्वर की सिद्धता पर अधिकाधिक धन (अर्थ) बरसता है ! सो आपका कथन भाषा के लिए भी लाभकारी है और वित्त संसार के लिए भी !

    आपकी कविता में भी गहन निहितार्थ है ! एक लघु व्यवसायी तम्बोली ( आप ब्लागर मान सकते हैं ) अपने पड़ोसी सूरज (ऊर्जा / टीप देने वाला दूसरा ब्लागर) को किसी दूसरे की दुकान पर पान खाने की कल्पना में व्यग्रता / ईर्ष्यावश लाल लाल देखता है...वाह ! निश्चय ही पान खाना सिद्ध होने वत कृत्य है !

    सूरज / पान का पत्ता / कागज़ और ब्लागरी की नेतागिरी के पंख कतरने से आपका आशय यही है कि सभी अपनी मर्यादा में रहें तो हर ब्लागर आपने पंख बचा सकता है ! कैंची और कलम और कवि को होना सिद्ध करना है कि तुलना में एक बार आपने पुनः पुनर्जन्म का नहीं होना ला खडा किया यानि कि आपने कहा कि अमर्यादित ब्लागर को पंख कतरे जाने की पीड़ा से गुज़र कर अपने नहीं होने की कल्पना और दंड स्वरुप , नहीं होने में कवि होने को भुगता होगा ! यहां नहीं होने में कवि होने से आशय पुनर्जन्म जिसका होना अनिश्चित है के उपरान्त तुकांत कथन करने वाले अव्यक्ति से है ! अव्यक्ति इस लिए क्योंकि वह व्यक्ति है ही नहीं और अपना व्यक्ति होना सिद्ध करने के बजाये अव्यक्ति होना सिद्ध करने में लगा हुआ है !

    बाबा देवेन्द्र नाथ पाण्डेय बेचैन बनारासत्मा की ...

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    1. वाह! वाह! आप जैसे दो चार व्याख्याता और मिल जांय तो हम सर्वश्रेष्ठ महर्षि मूर्खानंद महाराज के नाम से जग विख्यात हो जांय। किसी शास्त्रार्थ में एक उंगली और दो उंगली का किस्सा सुना था। भूल गया। उसमें भाव यही था कि शास्त्रार्थ करने वाले की विजय में उन्हीं व्याख्याता का एकमात्र योगदान था।

      अब मैं कह सकता हूँ कि किसी को मेरा आलेख ठीक से नहीं समझ में आया हो तो वह मेरे बड़े भाई सा का कमेंट पढ़ सकते हैं।

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  4. कृपया अंतिम पंक्ति के पहले 'सिद्ध' और अंत में 'जय' जोड़े कर पढ़ें :)

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  5. सूरज पान खाकर निकला है! वाह क्या बात है।
    आप अपने इरादे में नाकाम हो गये। कोई नहीं फ़िर प्रयास कीजियेगा। शायद सफ़ल हो सकें। :)

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  6. अन्तर्राष्ट्रीय मूर्खता दिवस पर मूर्खता विषय पर कविता. क्या बात है... अब चिंता तो यह हो चली है कि सूरज पान तो खा के निकला है, पीक मार के धरती को गन्दा ना कर दे.

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  7. वाह जी
    बहुत बढ़िया ............मुर्ख दिवस की शुभ कामनाए

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  8. बहुत बढ़िया....................

    आपके लेखन की दाद देती हूँ....आपकी हैसियत पर कोई संदेह नहीं :-)

    सादर.

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  9. वाह वाह वाह !!!
    हमारी वाह वाह पर अब हमें श्रेष्ठ कोटि के ब्लोगर मत समझ लीजियेगा । :)
    वैसे अली जी ने सारा खुलासा कर ही दिया है । साधुवाद !

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  10. आप मूर्ख दिवस में इतनी गम्भीर रचना लिख कर परम्पराओं को तोड़ रहे हैं।

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    1. इसमें मेरा कोई दोष नहीं है। सूरज को पान खिलाकर शुरूआत करी थी कवि जी सवार हो कर सत्यानाश कराये हैं।:)

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  11. ha ha ha ...hmmm....oh!!!!!
    moorkhdiwas ki badhai aapko ....bhi :)

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  12. कहीं वह
    पिछले जनम में
    कवि तो नहीं था !
    आखिर इतनी मूर्खता
    दूसरा
    कौन कर सकता है !!... मान गए , इस दिवस में हम भी कहीं हैं

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  13. लगया तो नहीं की आज मूर्ख दिवस है कमसे कम आपकी रचना पढ़ के तो बिलकुल ही नहीं ... अब ये साबित कीजिये की आज के दिन के असली हकदार आप हैं या हम ...

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  14. अब क्या कहूँ, हम ठहरे निरा मूरख,पर आपने इत्ता सारा मजाक-मजाक में लिख मारा है कि आप हमारी बिरादरी के तो कतई नहीं लगते.
    ...बकिया अली साब ने इत्ती बखिया उधेड़ दी है कि सारा सर झन्नाय गवा है.

    कम से कम यह कविता आज के दिन ठीक नहीं लगती !

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  15. बहुत सुन्दर प्रस्तुति...
    आपकी यह प्रविष्टि कल दिनांक 02-04-2012 को सोमवारीय चर्चामंच पर लिंक की जा रही है। सूचनार्थ

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  16. वाह ! ! ! ! ! बहुत खूब सुंदर रचना,मुर्ख दिवस पर बेहतरीन प्रस्तुति,....

    MY RECENT POST...काव्यान्जलि ...: तुम्हारा चेहरा,
    MY RECENT POST ...फुहार....: बस! काम इतना करें....

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  17. भूमिका और कविता दोनों अत्यंत विद्वतापूर्ण तरीके से लिखी गई हैं।

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    1. धत्त तेरे की! हम तो मूर्खता का प्रदर्शन करना चाहते थे।:(

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  18. वाह भाई ! कमाल की कल्पना है !

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  19. ओशो कहते हैं कि आम तौर पर लोगों को यह कहते सुना जाता है कि यह तो आपका बड़प्पन है कि मुझ जैसे व्यक्ति को सम्मान दे रहे हैं. वरना मैं किस काबिल हूँ. उसी समय यदि आप उस व्यक्ति से कहबस दें कि सचमुच आप किसी योग्य नहीं बस आपका मन रखने के लिए आपकी प्रशंसा कर दी तो वह नाराज़ हो जायेंगे.. क्योंकि उनके स्वयं को अयोग्य घोषित करने में भी यह भावना होती है कि लोग उन्हें योग्य समझें..
    कहीं इसीलिये तो आपने स्वयं को मूर्ख घोषित करने का मन बना लिया.. वैसे आज सुबह सुबह ही मैंने यह काम कर डाला है, फेसबुक पर:
    जो बन चुका है मूर्ख तुम्हारे ही प्रेम में,
    अब फूल, बेवकूफ कहों कुछ नहीं होगा!!
    आई है ये तारीख गुज़र जायेगी सलिल,
    ये शख्स तो बुडबक था औ'बुडबक ही रहेगा! (सलिल)
    आपकी कविता तो प्रशंसा से परे है, पांडे जी!!

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    1. बनारस में आज के दिन राजेन्द्र प्रसाद घाट पर मूर्ख मेला लगता है। आज के दिन लोग मूर्ख कहने से अधिक मूर्ख कहाने में गर्व महसूस करते हैं। शाम 7 बजे से रात्रि 12 बजे तक कवि लोग अपनी कविता सुना कर महामूर्ख उपाधि हथियाने का प्रयास करते हैं। इस पोस्ट में भी वही भाव है।

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  20. कहीं से टीप लिया क्या -यह आपका लिखा नहीं हो सकता :)

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    1. पहिले बताइये अच्छा है या खराब तब हम बतायें हमारा लिखा है या किसी और का:)

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    2. हाहाहा! On a serious note, बहुत ही अच्छी कविता है।

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  21. वह तमोली आप ही रहे होंगे।

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  22. वाह ! कविता में इतनी बुद्धिमत्ता(नई उद्भावनाएँ) ढाल कर आप मूर्ख ख़ुद को कहलाना चाहें, हम सबको बुद्धू बना रहे हैं ?

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  23. मूर्ख बनाने की चतुरता ,कहीं मूर्ख बनने की प्रवीणता में अन्तर्निहित होते हैं जो आप कर रहे हैं ...सुखद सफल रचना .....बधाईयाँ जी /

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  24. कविता आप कैसी भी लिखो, लेकिन व्‍याख्‍या करनेवाले ऐसी व्‍याख्‍या करेंगे कि आप भी चकरघिन्‍नी खा जाएं कि ऐसा तो हमने सपने में भी नहीं सोचा था। वैसे सूर्य का पान खाकर उदित होना अच्‍छा लगा।

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  25. पान खाए सूरज हमारो -

    धरती के कुरते पे छींट लाल लाल -

    हाय हाय महोबाई पान ,

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  26. मूर्खता पर इतना गंभीर शोध...... प्रस्तुति मजेदार है.... !!!

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  27. बिलकुल मान गए हैं जी.......सूरज ने पान कहाँ से खरीदा होगा ....वाह :-))

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  28. duniya badi jalim hai ,ab dekho na pandey chale murkh banne aur log unki vidwta ki dad de rahe . aakhir ek murkh chain se post bhi nhi likh sakta, aur khud ko murkh bhi nhi kah sakta . samajh hi nhi aata ki koun murkh hai.

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  29. बहुत अच्छा लगा सूरज का पान खाकर निकलना...मान गए ऐसी कल्पना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन थी... :)

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  30. सूरज का पान खाना....
    सूरज के पंख कतरना...

    वाह! अद्भुत बिम्ब संयोजन कर खूबसूरत रचना रची है आदरणीय देवेन्द्र भाई जी....
    सादर साधुवाद।

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  31. paise ke lalach mei or blog traffic badane ke chakkar mei murkh ban rahein hai hum.

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  32. काश मैं भी आप सा मूर्ख होता जो ऐसी रचना रच पाता...नमन करता हूँ ऐसी विलक्षण मूर्खता को ...

    नीरज

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  33. हाँ सूरज मेरे सामने सामने ही पान ले गया
    पनवाड़ी बोल रहा था पैसे भी नहीं दे गया।

    उम्दा !!

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  34. अद्भुत
    सहमत सुशील कुमार जोशी जी से

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    1. चलिये दो दो गवाह मिल गये। वरना लोग समझते कि मैं वैसे ही हांक रहा था।:)

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