18.1.13

घोंघा

कुछ घालमेल हो रहा है। चित्रों का आनंद लेते-लेते कविता बन जा रही है। अपने ब्लॉग "चित्रों का आनंद" में गंगा जी की कुछ तस्वीरें लगाने लगा तो एक कविता अनायास बन गई। अब उसे यथा स्थान यहाँ पोस्ट कर रहा हूँ।


घोंघा

कभी
तुममे था
जीवन !
रेत कुरेदने पर 
निकल आये हो 
बाहर।

अब खाली हो
असहाय
खालीपन के
एहसास से परे

बन चुके हो
खिलौना
खेलते हैं तुम्हें
रेत से बीन-बीन
बच्चे

ढूँढता हूँ तुममें
जीवन
काँपता हूँ
भरापूरा
अपने  खालीपने के
एहसास से!

मैं
घोंघा बसंत।
...............

20 comments:

  1. बहुत ही अच्छे प्रतीक का प्रयोग किया सार्थक रचना....

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  2. अच्छी प्रस्तुति....बहुत बहुत बधाई...

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  3. और कभी मुझे ईर्ष्या थी
    उस घोंघे से
    जो फिरता है
    अपना घर साथ लिए
    कभी न होता बेघर.....

    सुन्दर चित्र...सुन्दर कविता...
    अनु

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  4. कोई और नहीं मिला ,अपने पर ही ले लिए ? :-)

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  5. घोंघे को अपने में रहना तो आता है, पार्टी के लिये उसका मन कहाँ मचलता है?

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  6. ...मैं हूँ घोंघा बसं...गंभीर भाव देता लघु जीव ।

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  7. आपके बिम्ब अलबेले-
    साधुवाद-

    सीमांकन क्यूँ ना किया, समय बिताता प्रौढ़ |
    यत्र-तत्र घुसपैठ कर, कवच-सुरक्षा ओढ़ |
    कवच-सुरक्षा ओढ़, चढ़ा है रंग बसंती |
    वय हो जाती गौण, रचूँ मैं एक तुरंती |
    यह है सुख का मूल, चला चल धीमा धीमा |
    घोंघा बने उसूल, चैन की फिर क्या सीमा ??

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  8. घोंघे के दिल को लिख दिया है आपने ... मस्त रचना है ...

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  9. कांपता हूं अपने खालीपन के अहसास से मैं........।


    खाली घोंगा लकी है असमें अहसास जो नही है ।

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  10. बहुत बहुत सुन्दर..........एक पंथ दो काज होते हैं तो क्या हर्ज है :-)

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  11. http://lalitdotcom.blogspot.in/2013/01/blog-post_2.html

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  12. निरा घोंघू नहीं होता घोंघा :)

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  13. लाजवाब,पढकर वाह ! कर उठा मन.घोंघे को एहसास नहीं खालीपन का मगर कवि को हो रहा है,और शायद यही जीवन का संकेत है.

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  14. सुन्दर प्रस्तुति

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  15. अच्‍छी लगी कवि‍ता...इंसान जब कि‍सी चीज के साथ गहराई से जुड़ता है तो भावनाएं खुद ब खुद उभर आती हैं...

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  16. अच्छी रचना

    सादर

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