अगस्त का महीना है। आजकल मौसम आदमी की जिंदगी की तरह तेजी से रंग बदलता है।
कभी तेज धूप तो कभी जोरदार बारिश। यकबयक चलती है तेज पुरवाई और झरने लगते हैं कंदब
से पीले पत्ते, पके फल। सागवान भी जोर-जोर सर हिलाता है। उसके पत्ते भी झरते हैं
मगर उतने नहीं जितने कदंब के। बिचारा 'सागवान'! इसे क्या पता कि काटने के लिए लगाया है मालिक ने। वैसे ही जैसे
पाली जाती हैं भेड़, बकरियाँ। मालिक इंतजार कर रहा है, कब मोटी होगी इसकी साख? देखता है रोज हसरत भरी निगाहों से..थोड़ी मोटी तो हो चुकी है मगर दो चार साल और प्रतीक्षा की जाये तो कुछ और मोटी हो जायेगी। अच्छे पैसे मिलेंगे तब इसके।
कोई किसी को प्रेम से नहीं पालता। पालने से पहले देखता है फ़ायदा। गाय पालता है दूध के लालच में। बहलाता है मन को...गाय हमारी माता है। यह अलग बात है कि माँ दूध
सिर्फ अपने बच्चे के लिए देती है। कोई माँ दूसरे के बच्चों को लिए दूध नहीं देती।
आप उसकी भूख का फायदा उठाकर छीन लो यह अलग बात है। सभी भूख का फायदा उठाते हैं।
भूखा भी पेट भरने के बाद कपड़े और मकान की चिंता करता है। कपड़े मकान के बाद कुछ
और..यह चक्र चलता रहता है।
लेकिन मैं इस भूख और लालच की बात करने के मूड में कत्तई नहीं था। माफ करना
थोड़ा बहक गया। मैं तो इस अगस्त के गिरगिटिया मौसम की बात कर रहा था। दिन ढल रहा
था। झूमती डालियों को देख इच्छा हुई, देखी जाय बादलों की आवाजाही। छत पर चढ़ा तो
देखा पश्चिम में खुली है बादलों की एक खिड़की। झांक रही है तेज धूप। नज़र मिलाने
का साहस नहीं हुआ। धूप अधिक प्यासी लग रही थी। मैंने झट से खुद को छांव में कर लिया। जब कोई अधिक प्यासा हो तो यथासंभव
सामने से हट जाना चाहिए या ओढ़ लेनी चाहिए छतरी। प्यासे का क्या ठिकाना..पानी के
साथ चूस ले खून भी।
प्रेम के अनोखे रंग दिखते हैं इन बादलों में। कभी लगता है दो प्रेमी भागे
जा रहे हैं किसी बड़ी गुफा में। कभी लगता है कोई बादल किसी बदली को पास बुला रहा
है। बदली भी पास आने के लिए मचल रही है। दोनो पास आते जा रहे हैं। धीरे-धीरे मिल
जाते हैं एक दूसरे से। अब आप नहीं पहचान सकते कि दोनो पहले कैसे थे! एक नये बादल का रूप सामने आता
है। अब वह लड़ रहा है तेज धूप से। वाह! प्रेमी हों तो ऐसे
हों। मिलें तो खुद की खुदी, खुद ही मिटा दें। पुनर्जन्म हो। नहीं, मैं कोई नया
दर्शन नहीं समझा रहा। अर्ध नारीश्वर, शिव शक्ति का दर्शन पुराना है। मैं तो बस
बादलों को देख उस दर्शन को थोड़ा महसूस कर पा रहा हूँ। पढ़ने से अधिक अच्छा है,
थोड़ा सा महसूस करना।
देखते ही देखते कसता ही चला गया काले बादलों का घेरा। ढल गया सूरज। धूप
अपनी प्यास बुझाने धरती के किसी दूसरे कोने में झांक रही होगी। होने लगी बारिश।
चलता हूँ..फिर आऊँगा रात में। जब काले बादलों को देख एहसास होगा बिखरी
जुल्फों का और हँस रहा होगा पूनम का चाँद।
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बेहतरीन पांडेय जी, गोया भावों का सुंदर व मोहक इंद्रजाल रच दिया आपने लेख में ।
ReplyDeleteसुंदर चित्रण प्रकृति का ...
ReplyDeleteवाह !!
कभि कभि ये बादल रंगों का यैसा नजारा दिखाते हैं कि दिल खुस हो जाता है.
ReplyDeleteकितने रंग बदलते हैं , कितनी तस्वीरें बनाते हैं ये बादल !
ReplyDeleteबादलों की सैर भली लगी !!
ReplyDeleteपाण्डेय जी , बादलों का इतनी गहराई से अध्ययन करेंगे तो ये छाना ही छोड़ देंगे ! :)
लेकिन छत पर खड़े होकर , कैमरा हाथ में लेकर , बादलों का अध्ययन एक कवि ही कर सकता है.
सुन्दर आलेख।
बहुत खूब
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