21.9.13

भूख का सौंदर्य



इस चित्र को ध्यान से देखिये। पूरी कविता, कथा या दर्शन इसी पर आधारित है। अब इसमें कविता, कहानी ढूँढिये। मैं फोटोग्राफर की हैसियत से नहीं, बल्कि एक लेखक की हैसियत से कह रहा हूँ कि यह चित्र बहुत सुंदर है। आप सभी अच्छे लेखक, विचारक हैं। मेरी ख्वाहिश है कि आप बतायें कि  इस चित्र में वह क्या है जो दिख नहीं रहा ? फिर मेरा प्रयास पढ़ने का कष्ट कीजिए....



भूख का सौंदर्य

सुबह-ए-बनारस है
गंगा जी हैं
सामने उत्तर दिशा में
धनुषाकार फैले
गंगा जी के घाट हैं
नाव हैं
पूरब में उगता हुआ सूरज है
पीछे पश्चिम में
महाराजा तेजसिंह के किले के नीचे
घाट की सीढ़ियों पर बैठा
परिंदों को निहारता
ठिठका हुआ
एक युवक है
उसके हाथों में बांसुरी है
और दूर गगन में
ढेर सारे उड़ रहे परिंदे हैं।

दक्षिण दिशा में खड़े फोटोग्राफर ने
चित्र सुंदर खींचा है
मगर
वह नहीं खींच पाया
जो हकीकत है!

चलिए!
मैं आपकी मदद करता हूँ
क्योंकि
वह फोटोग्राफर मैं ही हूँ....

ठिठकने से पहले
युवक बासुंरी बजा रहा था
गंगा
कल-कल बह रही थीं
नावें
आ-जा रही थीं
परिंदे
सबसे बेखबर
गुटुर-गुटुर करते
लड़ते-झगड़ते
उड़ते-बैठते
घाट की सीढ़ियों पर बिखरे
दाने चुग रहे थे
फोटोग्राफर पोज़ बना रहा था
इतने में
एक बाज़ ने झपट्टा मारा
उनके एक साथी को अपने मजबूत पंजों में दबोचकर
पलभर में गायब हो गया!

शेष बचे कबूतर
डर के मारे झटके से उड़ने लगे
बेतहासा भागते
कबूतरों की आवाज ने युवक का ध्यान भंग किया
कौतूहल से देखने लगा...
ये माज़रा क्या है!
फोटोग्राफर का क्या!
जो दृश्य
खूबसूरत दिखा
वही खींच लिया।

अब आप भी
मेरी कुछ मदद कीजिए
कुछ और हकीकत से पर्दा उठाइये
कुछ रहस्य हैं
जिन्हें सुलझाइये....

दाने तो आज भी बिखरे दिखते हैं
घाट की सीढ़ियों पर
परिंदे
आज भी दिखते हैं
बेखबर
चुगते हुए
बाज भी
आते ही होंगे
रोज़!

भूख
आदमी की हो
या परिंदों की
अपने साथी की मौत का मातम भी
नहीं मनाने देती
अधिक दिन!

तो फिर क्यों न मैं
संसार के संपूर्ण सौंदर्य को
भूख का सौंदर्य मान लूँ  ?


...............................

29 comments:

  1. आह से उपजा होगा गान ...

    ReplyDelete
  2. मूड मूड की बात है,कभि-कभि यैसी बात मन में आ सकती है.मगर भूख जीवों की केवल येक आधारभूत आवश्यकता है.मगर आधारभूत के अलावा और बहुत सी बातें हैं.जीवों के अलावा भी प्रकृति में सौंदर्य है.

    ReplyDelete
    Replies
    1. आधारभूत है तो केवल एक क्या? जो आधार भूत है वह केवल कैसा? आधारभूत आवश्यकता भूख ही चिंतन का कारण बनी है। हां, यह सही है कि प्रकृति उतना ही ग्रहण करती है जितनी कि भूख। मनुष्यों की तरह इनकी भूख होती तो नष्ट हो जाती कभी की। जीवन के अलावा भी प्रकृति में सौंदर्य है..इससे इनकार नहीं किया जा सकता। लेकिन जीवन ही न होता तो फिर सौंदर्य क्या, कुरूपता क्या? कौन देखता उसका सौंदर्य? कौन कहता कि तू सुंदर है प्रकृति! जीवन के बिना सुंदरता का मूल्य ही क्या है?

      Delete
    2. मेरा मतलब और भी आधारभूत आवश्यकतायें हैं भूख के अलावा.जब पेट भर जाता है तो मानसिक आवश्यकतायें महसूस होती हैं,और उनके कारण भी सौंदर्य की सृष्टि होती है.
      हाँ,यह बात तो सोरह आने सही है कि बिना भोजन जीव ही नहीं होता,और तब सौंदर्य की बात ही न उठती.यहाँ पर बांसुरी बजाता हुवा युवक भी सौंदर्य में चार चाँद लगा रहा है.

      Delete
  3. दिल को छूते गहरे अहसास...बहुत सशक्त प्रस्तुति...

    ReplyDelete
  4. वाह......
    बढ़िया...बेहद गहन....

    अनु

    ReplyDelete
  5. और क्या ...
    सच्चाई तो यही है भाई !!

    ReplyDelete
  6. सृष्टि में जीवन का चलना इस भूख पर ही तय है
    पेट , तन मन , सौंदर्य , यश आदि -आदि-आदि की !

    ReplyDelete
  7. प्रश्न अनुत्तरित है.

    ReplyDelete
  8. वाह पाण्डेय जी ! आपका दार्शनिक रूप , क्या खूब !
    बढ़िया !

    ReplyDelete
  9. जीवन कि यही सच्चाई है... आज हर व्यक्ति भूख का गुलाम है.. भूख सब कुछ भुला देती है.
    बहुत ही बढ़िया और गहरी प्रस्तुति..
    prathamprayaas.blogspot.in-

    ReplyDelete
  10. देवेन्द्र जी ,चित्र बेहद खूबसूरत है । युवक संगीत प्रेमी है, कलाकार है । मेरे विचार से एक कलाकार के लिये कला और सौन्दर्य ही सर्वोपरि होता है । उसके लिये जीवन में सौन्दर्य है और सौन्दर्य में जीवन है । बाकी चीजें गौण हैं ।

    ReplyDelete
    Replies
    1. यह भी एक दृष्टि है। सुंदर है।

      Delete
  11. बेसक अन्न की भूख ऊपर है लेकिन सर्वोपरि नहीं...... मुझे तो इसी यथार्थ का ये सुन्दर चित्रण लगा...... शायद आपका भूख इसी सौन्दर्य को कैद करना है ..

    ReplyDelete
  12. ह्म्म्म ……. इतनी गहनता में पहुँचना हर किसी के बस का नहीं सच में एक दर्शन है |

    ReplyDelete
  13. भूख में यदि सौन्दर्य होता तो वह युवक ठिठक न जाता...परिंदे यूँ डर से न फड़फड़ाते, इससे पहले जो दृश्य था वह भी कम सुंदर नहीं रहा होगा..क्योंकि सौन्दर्य तो उस चेतना में है जो स्वयं को भिन्न-भिन्न माध्यमों से प्रकट कर रही है, कहीं बाज के रूप में कहीं कबूतर के..

    ReplyDelete
    Replies
    1. जी, यह सही है कि परिंदे का यूँ डर से फड़फड़ाना, युवक का ठिठक जाना सौंदर्य नहीं है भले ही चित्र में सौंदर्य झलकता हो। सौंदर्य उस चेतना मे हैं जो स्वयं को भिन्न-भिन्न माध्यमो से प्रकट कर रही है लेकिन क्या ऐसा नहीं है कि हर चेतना की चैतन्यता भूख पर निर्भर करती है ? इससे पहले वाले दृश्य में परिंदे वहाँ थे क्योंकि दाने बिखरे थे, बाज वहाँ आया क्योंकि भूख मिटाने के लिए परिंदे थे।

      Delete
  14. बड़ा फिलासफी वाला सवाल उठा दिया है -चित्र सुन्दर है बस इतना ही कहना है !

    ReplyDelete

  15. पाण्डेय जी चित्र की आत्म कथा आपने सही सुनाया -बहुत सुन्दर
    Latest post हे निराकार!
    latest post कानून और दंड

    ReplyDelete
  16. काश! मैं अपनी मर्ज़ी से उड़ सकता .....अनदेखे पिंजरे की कैद में मैं ????

    ReplyDelete
  17. कल 26/09/2013 को आपकी पोस्ट का लिंक होगा http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर
    धन्यवाद!

    ReplyDelete
  18. सब गतिमय हैं, भूख चलाती।

    ReplyDelete
  19. बहुत बढ़ि‍या अभि‍व्‍यक्‍ति

    ReplyDelete
  20. photograph bahut shaandaar lagaa.. aage padhne se pahle kaafi der sochti rahi ki aashawad nirashawaad .. ya koi rahasya .. bahut kam shabdon mein aapne seedhi sateek baat kah di hai.

    ReplyDelete
  21. बातों ही बातों में गहरा मोड़ दे दिया रचना ने ... सोचने को विवश कर दिया ...

    ReplyDelete