2.10.14

बंदर प्रवृत्ति

बंदर
भूल चुके हैं
सुग्रीव,बाली या हनुमान की ताकत
छोड़ चुके हैं
पहाड़
नहीं भटक पाते
कंद मूल फल के लिए
वन वन।

सभी बंदर
नहीं जा पाते
संकट मोचन
सबको नहीं मिलते
भुने चने या
देसी घी के लड्डू!
अधिकांश तो
मारे-मारे भटकते फिरते हैं
छत-छत, सड़क-सड़क, टेसन-टेसन...
घुड़की देते हैं
भीख मागते हैं
छिनैती करते हैं
फंस गए तो
नाचते भी हैं
मदारी के इशारे पर।

बापू!
जन्म दिन पर ही नहीं
कभी-कभी
एक पंक्ति में बैठे
दिख जाते हैं
तीन बंदर
तो भी तुम्हारी
बहुत याद आती है।

हा..हा..हा...
तुम वाकई महान आत्मा थे!
तीन बंदरों के सहारे बदल देना चाहते थे
सम्पूर्ण मानव समाज की
बंदर प्रवृत्ति!
........

10 comments:

  1. सच सभी बंदरों की एक सी किस्मत नहीं होती ..उनकी किस्मत दूसरों की किस्मत से बंधी जो रहती हैं
    ..बहुत बढ़िया सामयिक प्रस्तुति

    ReplyDelete
  2. आपकी यह उत्कृष्ट प्रस्तुति कल शुक्रवार (03.10.2014) को "नवरात महिमा" (चर्चा अंक-1755)" पर लिंक की गयी है, कृपया पधारें और अपने विचारों से अवगत करायें, चर्चा मंच पर आपका स्वागत है, धन्यबाद।दुर्गापूजा की हार्दिक शुभकामनायें।

    ReplyDelete
  3. बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
    अष्टमी-नवमी और गाऩ्धी-लालबहादुर जयन्ती की हार्दिक शुभकामनाएँ।
    --मान्यवर,
    दिनांक 18-19 अक्टूबर को खटीमा (उत्तराखण्ड) में बाल साहित्य संस्थान द्वारा अन्तर्राष्ट्रीय बाल साहित्य सम्मेलन का आयोजन किया जा रहा है।
    जिसमें एक सत्र बाल साहित्य लिखने वाले ब्लॉगर्स का रखा गया है।
    हिन्दी में बाल साहित्य का सृजन करने वाले इसमें प्रतिभाग करने के लिए 10 ब्लॉगर्स को आमन्त्रित करने की जिम्मेदारी मुझे सौंपी गयी है।
    कृपया मेरे ई-मेल
    roopchandrashastri@gmail.com
    पर अपने आने की स्वीकृति से अनुग्रहीत करने की कृपा करें।
    डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक"
    सम्पर्क- 07417619828, 9997996437
    कृपया सहायता करें।
    बाल साहित्य के ब्लॉगरों के नाम-पता मुझे बताने में।

    ReplyDelete
    Replies
    1. धन्यावाद। मेरा आ पाना संभव नहीं। कृपया शैलेश भारतवासी से स्म्पर्क्क करें।

      Delete
  4. खूबसूरत और अद्भुत अंदाज़. बहुत सुंदर.

    ReplyDelete
  5. बहुत सुंदर

    ReplyDelete
  6. बन्दर बदल जायें ,ये तो इनकी फितरत नहीं ,बहुतों ने बहुत कोशिश की है बदलने की.

    ReplyDelete